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1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति पर सिख परिवारों की चिंता, कहा- इस फैसले से वे होंगे प्रभावित

पलामू में करीब 300 सिख परिवार रहते हैं. इन परिवारों का कहना है कि ये दूसरे विश्व युद्ध और भारत के बंटवारे के दौरान यहां आए और बस गए. अब अगर 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति (1932 Khatiyan Based Sthaniya niti) लागू होती है तो फिर उनके लिए परेशानी बढ़ जाएगी (Concern in Sikh Families of Palamu).

Concern in Sikh Families of Palamu
Concern in Sikh Families of Palamu
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Published : Sep 16, 2022, 7:18 PM IST

Updated : Sep 16, 2022, 7:42 PM IST

पलामू: कई पीढ़ियां गुजर गई, जल जंगल जमीन में रच बस गए, लेकिन अब उन्हें चिंता सताने लगी है स्थानीयता को लेकर. झारखंड सरकार की कैबिनेट ने 1932 के खतिहान आधारित स्थानीय नीति को पास कर दिया है (1932 Khatiyan Based Sthaniya niti). इसके अनुमोदन के लिए केंद्र सरकार को भेजा जा रहा है. 1932 खतिहान के विवाद के बीच वैसे लोगो को चिंता सताने लगी है जो आजादी के दौरान हुए बंटवारे में झारखंड के इलाके में पंहुचे थे (Concern in Sikh Families of Palamu).

ये भी पढ़ें: 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं, विधानसभा में बिल पर होगी चर्चा: मंत्री आलमगीर आलम

द्वितीय विश्वयुद्ध और बंटवारे के दौरान झारखंड में करीब 250 सिख और नामधारी परिवार पलामू के इलाके में पंहुचे थे. पलामू में रहने वाले सिख परिवार झारखंड की राजनीति में टॉप तक भी पंहुचे हैं. झारखंड के पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी का परिवार भी बंटवारे के वक्त पलामू पंहुचा था. इंदर सिंह नामधारी बताते हैं कि स्थानीयता अगर 1932 के खतियान पर आधारित होती है तो उन जैसे लोग बाहर हो जाएंगे. वे 75 वर्षों से झारखंड में रह रहे हैं, स्थानीयता के लिए यह आधार विवादित है.

देखें वीडियो




ये सभी सिख परिवार पलामू के मेदिनीनगर के इलाके में बसे हैं और उस वक्त मोहल्ले का नाम बेलवाटिकर हुआ था. इससे पहले भगवान सिंह, कुंवर सिंह, अहुवालिया समेत छह 6 परिवार ही पलामू में थे. जबकि एक परिवार गढ़वा के इलाके में रहता था. इन्ही परिवारों में से एक छत्तरपुर के इलाके में कुलवंत सिंह भी थे. कुलवंत सिंह छतरपुर के इलाके में मुखिया भी बने थे. इंद्रजीत सिंह डिंपल बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने भारत में सबसे बड़े बरवाडीह चिरमिरी रेल लाइन प्रोजेक्ट को शुरू किया था. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी ढील्लर एंड कंपनी को मिली थी. कंपनी के प्रोजेक्ट इंचार्ज सुरजीत सिंह चन्नी की पहल पर इस प्रोजेक्ट में काम करने के लिए बड़ी संख्या में सिख परिवार यहां पहुंचे थे. इस दौरान लोग पाकिस्तान के बलूचिस्तान, सिंध, गुजरात के इलाके से यहां पहुंचे थे.


पलामू में मौजूद हैं 300 से अधिक सिख परिवार: पलामू में 300 के करीब सिख परिवार मौजूद हैं. 1960 में गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा का गठन हुआ था. सिख परिवार पलामू के बेलवाटीकर और रेड़मा के इलाके में रह रहे हैं. अधिकतर परिवारों का अपना कारोबार है. इंद्रजीत सिंह डिंपल बताते हैं कि वे गर्व से कहते है कि वे झारखंडी हैं. इससे पहले जो नीति आई थी उसमें कहा गया था 1970, 1981 में जो यहां रह गया और उसके पास स्थानीय प्रमाण पत्र है उसे झारखंडी कहा गया है. उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसले से बहुत सारे लोग प्रभावित होंगे. यह सवाल सिर्फ सिख परिवार का ही नही है, बल्कि सैकड़ों लोग हैं जो बंटवारे के वक्त पहुंचे थे.

पलामू: कई पीढ़ियां गुजर गई, जल जंगल जमीन में रच बस गए, लेकिन अब उन्हें चिंता सताने लगी है स्थानीयता को लेकर. झारखंड सरकार की कैबिनेट ने 1932 के खतिहान आधारित स्थानीय नीति को पास कर दिया है (1932 Khatiyan Based Sthaniya niti). इसके अनुमोदन के लिए केंद्र सरकार को भेजा जा रहा है. 1932 खतिहान के विवाद के बीच वैसे लोगो को चिंता सताने लगी है जो आजादी के दौरान हुए बंटवारे में झारखंड के इलाके में पंहुचे थे (Concern in Sikh Families of Palamu).

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द्वितीय विश्वयुद्ध और बंटवारे के दौरान झारखंड में करीब 250 सिख और नामधारी परिवार पलामू के इलाके में पंहुचे थे. पलामू में रहने वाले सिख परिवार झारखंड की राजनीति में टॉप तक भी पंहुचे हैं. झारखंड के पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी का परिवार भी बंटवारे के वक्त पलामू पंहुचा था. इंदर सिंह नामधारी बताते हैं कि स्थानीयता अगर 1932 के खतियान पर आधारित होती है तो उन जैसे लोग बाहर हो जाएंगे. वे 75 वर्षों से झारखंड में रह रहे हैं, स्थानीयता के लिए यह आधार विवादित है.

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ये सभी सिख परिवार पलामू के मेदिनीनगर के इलाके में बसे हैं और उस वक्त मोहल्ले का नाम बेलवाटिकर हुआ था. इससे पहले भगवान सिंह, कुंवर सिंह, अहुवालिया समेत छह 6 परिवार ही पलामू में थे. जबकि एक परिवार गढ़वा के इलाके में रहता था. इन्ही परिवारों में से एक छत्तरपुर के इलाके में कुलवंत सिंह भी थे. कुलवंत सिंह छतरपुर के इलाके में मुखिया भी बने थे. इंद्रजीत सिंह डिंपल बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने भारत में सबसे बड़े बरवाडीह चिरमिरी रेल लाइन प्रोजेक्ट को शुरू किया था. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी ढील्लर एंड कंपनी को मिली थी. कंपनी के प्रोजेक्ट इंचार्ज सुरजीत सिंह चन्नी की पहल पर इस प्रोजेक्ट में काम करने के लिए बड़ी संख्या में सिख परिवार यहां पहुंचे थे. इस दौरान लोग पाकिस्तान के बलूचिस्तान, सिंध, गुजरात के इलाके से यहां पहुंचे थे.


पलामू में मौजूद हैं 300 से अधिक सिख परिवार: पलामू में 300 के करीब सिख परिवार मौजूद हैं. 1960 में गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा का गठन हुआ था. सिख परिवार पलामू के बेलवाटीकर और रेड़मा के इलाके में रह रहे हैं. अधिकतर परिवारों का अपना कारोबार है. इंद्रजीत सिंह डिंपल बताते हैं कि वे गर्व से कहते है कि वे झारखंडी हैं. इससे पहले जो नीति आई थी उसमें कहा गया था 1970, 1981 में जो यहां रह गया और उसके पास स्थानीय प्रमाण पत्र है उसे झारखंडी कहा गया है. उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसले से बहुत सारे लोग प्रभावित होंगे. यह सवाल सिर्फ सिख परिवार का ही नही है, बल्कि सैकड़ों लोग हैं जो बंटवारे के वक्त पहुंचे थे.

Last Updated : Sep 16, 2022, 7:42 PM IST
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