जमशेदपुरः जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर सरजामदा के जसकंडी गांव में कभी पानी की भयंकर किल्लत थी. भूजल स्तर इतना नीचे चला गया था कि हैंडपंप से पानी की एक बूंद भी नहीं निकलती थी. गर्मी के दिनों में कुएं सूख जाते थे. पानी के लिए लोगों को हर दिन लंबा सफर तय करना पड़ता था. लेकिन अब यहां की तस्वीर बदल चुकी है. ग्रामीणों ने बारिश के पानी को सहेज कर अपनी मुश्किलों को खत्म कर दिया. आखिर उन्होंने ये कमाल किया कैसे, ये जानने के लिए आगे पढ़ें.
जसकंडी के ग्रामीण हेम्ब्रम बताते हैं कि उन्होंने बचपन में पानी की बड़ी दिक्कत देखी थी. पानी के लिए उनकी मां और बहनों को कोसों दूर जाना पड़ता था. गांव के लोगों को की परेशानी बढ़ी तो लोगों ने पानी की कीमत समझी और फिर इसे बचाने की कोशिश शुरू हुई. इस कोशिश में साथ दिया टाटा स्टील रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी ने. ग्राम प्रधान राम हांसदा ने बताया कि टीसीएस ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए ग्राम सभा का आयोजन किया और जल संचय के बारे में बताया ताकि भविष्य में पानी की परेशानी न हो.
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टाटा के सहयोग से जल सरंक्षण
ग्रामीणों ने ग्रामसभा कर पानी की हर बूंद बचाने की ठान ली. टाटा के सहयोग से ग्रामीणों ने बारिश के पानी को बर्बाद होने से रोकने के लिए योजना बनाई. इसके लिए झोपड़ीनुमा खपरैल घरों की छत के चारों ओर डक्ट लगाए गए. बारिश का पानी खपरैल से होते हुए डक्ट में आता है, फिर पाइप के जरिए पानी को पुराने बोरवेल के गढ्ढे या सूखे कुएं में ले जाया जाता है. इस तरह बारिश का पानी बर्बाद होने के बजाए सीधे जमीन के अंदर चला जाता है, जिससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज होता रहता है. छात्र रोहन कुमार ने बताया कि पहले गांव के कुएं-तालाब सूख जाते थे. अब टाटा के सहयोग से संसाधन लगाया गया है. इससे पानी नहीं सूखता. गांव के लोगों को फायदा हो रहा है.
डेढ़ हजार का जुगाड़
इस विधि में हर घर पर लगभग डेढ़ हजार रुपए खर्च हुए. टाटा ने इसके लिए लोगों को फंड मुहैया कराया. जसकंडी में करीब 20 मकान हैं. दैनिक मजदूरी करके जिंदगी बसर करने वालों यहां के लोगों के लिए शुरू में ये बेहद उत्साहजनक नहीं रहा. लेकिन अब इस गांव के कुएं और हैंडपंप में सालोभर पानी रहता है. यहां तक की गर्मियों में पड़ोसी गांव के लोग भी यहां पानी लेने आते हैं. पेयजल विभाग के कार्यपालक अभियंता ने बताया कि फिलहाल गांव में भूगर्भ जल स्तर 30 फीट है जबकि गर्मियों में 40 फीट तक चला जाता है. स्थानीय निवासी प्रिया कहती हैं कि पहले हैंडपंप कम से कम एक मिनट चलाने पर पानी आता था, अब जल्दी आता है. इससे बड़ी राहत मिली है.
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आसपास के गांवों में भी पहल
बूंद-बूंद सहेजने की इस पहल का नतीजा ये है कि अब जसकंडी की महिलाओं को पानी के लिए भटकना नहीं पड़ता. रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए ये गांव एक मिसाल बन चुका है और इसे अपनाकर आस-पास के कई गांवों के लोग न केवल पानी की समस्या से निजात पा चुके हैं बल्कि हर साल बारिश का लाखों लीटर पानी बर्बाद होने से बच रहा है. जो गांव कभी बूंद-बूंद को मोहताज था आज वहां के नलों से पानी की धार बही जा रही है. वहीं. जसकंडी से ही सटे इलाके जुगसलाई, बागबेड़ा, मानगो और गोविंदपुर के लोग आज भी पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. गर्मी की शुरुआत होते हीं यहां के नल, कुएं सब सूख जाते हैं.
हम पानी बना नहीं सकते लेकिन बचा तो सकते हैं. यदि हर व्यक्ति ऐसा सोच ले, तो हरेक गांव की तस्वीर बदल सकती है. छोटे से गांव में अपनाई गई इस सूझबूझ को यदि दूसरे लोग भी अपनाएं तो पानी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है.