जमशेदपुर: कोरोना काल में आम लोगों की जिंदगी के साथ कई व्यवस्थाएं भी बदली हैं. वहीं, इस महामारी के दौर में छात्रों के पठन-पाठन पर भी असर पड़ा है. शिक्षण संस्थान बंद हैं, जबकि कई ऐसे शिक्षक हैं, जो कोरोना काल में राष्ट्र निर्णाण में अलख जगाने का काम कर रहे हैं. जमशेदपुर शहर से 9 किलोमीटर दूर मतलाडीह गांव में रहने वाले 44 वर्षीय सिकंदर कुदादा बच्चों में अलख जगाने का काम कर रहे हैं.
राज नगर के रहने वाले सिकंदर कुदादा बीकॉम की पढ़ाई करने के बाद निजी स्कूल में हेडमास्टर बनकर बच्चों को पढ़ाने का काम करते थे. 2010 में अचानक बीमार पड़ने के बाद उनके पैर में गंभीर बीमारी होने से डॉक्टरों ने उनके दोनों पैर को काटकर अलग कर दिया. इसके बाद सिकंदर पूरी तरह से असहाय होकर घर में बैठ गए. पूरी तरह दिव्यांग होने के कारण उनका कहीं भी आना जाना बंद हो गया. कुछ समय बाद किसी की मदद से उनके दोनों पैर में कैलिपर लगाया गया, जिसके बाद सिकंदर खड़े हुए. उनमें बच्चों को पढ़ाने का जूनून था, लेकिन वक्त और हालात से मजबूर सिकंदर के पांव चले जाने के बाद कोई भी उनके पास नहीं आता था. छोटी बहन और छोटा भाई के सहारे वो रहने लगे.
130 बच्चों को पढ़ा रहे ट्यूशन
सिकंदर कुदादा बताते हैं कि कुछ समय बाद ठेकेदारी में मजदूरी का काम करने वाले ग्रामीणों के बच्चे को वो पढ़ाने के लिए कई ग्रामीणों से बात की, जिसके बाद बच्चे उनसे ट्यूशन पढ़ने उनके घर आने लगे. दिव्यांगता पेंशन राशि से सिकंदर ने बच्चों के लिए टेबल बेंच खरीदा और आज गांव के 130 बच्चों को वह पढ़ा रहे हैं. फीस सौ रुपये से 150 रुपये तक है. सिकंदर मास्टर नर्सरी से क्लास 10वीं तक के बच्चों को अलग-अलग समय में पढ़ाते हैं. वो बताते हैं कि कोरोना काल मे संक्रमण के कारण बच्चों का आना बंद हो गया और फिर से उनकी जिंदगी में अंधेरा छा गया, लेकिन उन्हें इस बात की चिंता थी कि बच्चे अगर घर में रहेंगे तो कैसे पढ़ेंगे. कोरोना काल में स्कूल बंद है. ऐसे में बच्चे पढ़ना भूल जाएंगे.
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कोरोना काल में भी बच्चों को मिली शिक्षा
इस दौरान कुछ गांव वाले उनके पास आए और बच्चों को पढ़ाने के लिए कहा, लेकिन एमएचए की गाइडलाइन के तहत यह नामुमकिन था, लेकिन एक चुनौती के रूप में उन्होंने बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के तहत बैठा कर पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. वह बताते हैं कि बच्चे जब आते हैं तो उनके हाथ में सेनेटाइजर दिया जाता है और सभी बच्चों को मास्क पहनकर आने के लिए कहा गया है. इस बात का ध्यान रखते हैं कि कोविड-19 के गाइडलाइन का उल्लंघन न हो. सिकंदर का कहना है कि पैसा कमाना मेरा उद्देश्य नहीं. मेरा सबसे बड़ा धन मेरे छात्र की सफलता है और इसी जुनून के साथ मैं अपने छात्रों को पढ़ाता हूं.
पढ़ाने वक्त सोशल डिस्टेंसिंग का पालन
सिकंदर मास्टर जी से पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं ने बताया कि उन्हें मालूम है कि उनके सर के दोनों पांव नहीं हैं, लेकिन उनमें हिम्मत है और वे उन्हें अच्छे से पढ़ाते हैं. कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग के तहत बैठाकर पढ़ाते हैं. बच्चों का कहना है कि हमें अपने सर पर गर्व है. गांव के ग्रामीण भी सिकंदर मास्टर से पूरी तरह संतुष्ट हैं. उन्हें अपने गांव के इस मास्टर पर गर्व है कि उनके बच्चे को कम पैसे में अच्छी शिक्षा मिल रही है. बहरहाल, पूरी तरह से दिव्यांगता होने के बावजूद अपनी हिम्मत और जुनून के बल पर समाज को शिक्षित करने का बीड़ा उठाने वाले मास्टर सिकंदर कुदादा कोरोना काल मे गांव में शिक्षा के पहिये में गति देने का काम कर रहे हैं, जिसकी रफ्तार से गांव में शिक्षा की रौशनी बिखर रही है.