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जमशेदपुर के चौक-चौराहों पर 'सुनो द्रौपदी', 'डंडे' से किया जा रहा महिलाओं को जागरूक - Atal Bihari Vajpayee

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की कविता सुनो द्रौपदी पर आधारित नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन जमशेदपुर के चौक-चौराहों पर किया जा रहा है. इस नुक्कड़ नाटक को नया प्ररूप के रुप में देखा जा रहा है. इसमें नाटक टीम के सदस्यों के पास डंडे रहना अनिवार्य होता है. देखें पूरी रिपोर्ट...

street play in jamshedpur
सुनो द्रौपदी नुक्कड़ नाटक
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Published : Feb 12, 2020, 12:30 PM IST

जमशेदपुर: भले ही निर्भया कांड के दोषियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी गई है. लेकिन जमशेदपुर के कलाकारों ने इसी मुद्दे पर एक नुक्कड नाटक तैयार कर शहर के चौक-चौराहों और गली-मोहल्लों में दिखा रहे है. यह नाटक अन्य नुक्कड़ नाटकों से पुरी तरह से अलग है.

वीडियो में देखिए पूरी रिपोर्ट

नुक्कड़ नाटक के इस प्रारुप को मुर्त रुप देने के लिए कालाकार लगातार अभ्यास करते हैं. यह नाटक भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की कविता सुनो दौपद्री पर आधारित है. इसका निर्देशन झारखंड राज्य काला एवं संस्कृति सम्मान और मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ रंगकर्मी और टीवी व फिल्म अभिनेता रविकांत मिश्रा कर रहे हैं.

पढ़ें- पुलिस-पब्लिक में हो बेहतर संबंध, पुलिसकर्मियों को दी जा रही ट्रेनिंग

रविकांत मिश्रा के अनुसार निर्भया जैसी घटनाओ को नाटक में रेखांकित किया गया है और यह विचार दिया गया है कि नारी को अपनी रक्षा अब खुद करनी होगी. रविकांत मिश्रा ने बताया कि यह नाटक जर्मन डायरेक्टर उल्फफार्म मैंरिग के टोटल एक्टर कंसेप्ट पर आधारित है. इस नाटक में मार्शल आर्ट, एनिमल एटीट्यूट का भी प्रयोग किया गया है. उन्होंने कहा कि फिलहाल यह नाटक जमशेदपुर के चौक-चौराहो में किया जा रहा है. लेकिन जल्द ही अन्य शहरो में करने की योजना है.

डंडा रखना होता है अनिवार्य

वहीं नुक्कड़ नाटक में 12 कालाकारों की एक टीम होती है. टीम में शामिल सभी कालाकारों को डंडे रखना आनिवार्य होता है. उन्हें इस प्रकार के नाटक के पूर्व अभ्यास करना पड़ता है. अभ्यास के दौरान यह ध्यान रखना पड़ता है कि नाटक के समय साथी कालाकार और सामने खड़े दर्शक को डंडे से चोट न लगे. क्योकि यह नाटक का आयोजन गली मोहल्ला, चौक-चौराहों में होता है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली चुनाव परिणाम : आम आदमी पार्टी ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की

इस प्रयोग के पीछे रविकांत का मानना है कि आज-कल ऑडिटोरियम में नाटक करने के काफी पैसे लगते है, और नाटक के प्रति लोगों की दिलचस्पी कम होने से नाटक के लिए ऑडिटोरियम बूक करने में असर्मथ होते है. पहले दर्शक ऑडिटोरियम तक आते थे, लेकिन अब रंगकर्म दर्शक के पास आ रहा है. उद्देशय़ साफ है कि अधिक से अधिक संख्या में दर्शको को रंगकर्म के साथ जोडा जाए. उसी कड़ी में यह नुक्कड नाटक का नया प्रयोग है.

जमशेदपुर के चौक-चौराहों पर 'सुनो द्रौपदी', 'डंडे' से किया जा रहा महिलाओं को जागरूक

जमशेदपुर: भले ही निर्भया कांड के दोषियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी गई है. लेकिन जमशेदपुर के कलाकारों ने इसी मुद्दे पर एक नुक्कड नाटक तैयार कर शहर के चौक-चौराहों और गली-मोहल्लों में दिखा रहे है. यह नाटक अन्य नुक्कड़ नाटकों से पुरी तरह से अलग है.

वीडियो में देखिए पूरी रिपोर्ट

नुक्कड़ नाटक के इस प्रारुप को मुर्त रुप देने के लिए कालाकार लगातार अभ्यास करते हैं. यह नाटक भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की कविता सुनो दौपद्री पर आधारित है. इसका निर्देशन झारखंड राज्य काला एवं संस्कृति सम्मान और मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ रंगकर्मी और टीवी व फिल्म अभिनेता रविकांत मिश्रा कर रहे हैं.

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रविकांत मिश्रा के अनुसार निर्भया जैसी घटनाओ को नाटक में रेखांकित किया गया है और यह विचार दिया गया है कि नारी को अपनी रक्षा अब खुद करनी होगी. रविकांत मिश्रा ने बताया कि यह नाटक जर्मन डायरेक्टर उल्फफार्म मैंरिग के टोटल एक्टर कंसेप्ट पर आधारित है. इस नाटक में मार्शल आर्ट, एनिमल एटीट्यूट का भी प्रयोग किया गया है. उन्होंने कहा कि फिलहाल यह नाटक जमशेदपुर के चौक-चौराहो में किया जा रहा है. लेकिन जल्द ही अन्य शहरो में करने की योजना है.

डंडा रखना होता है अनिवार्य

वहीं नुक्कड़ नाटक में 12 कालाकारों की एक टीम होती है. टीम में शामिल सभी कालाकारों को डंडे रखना आनिवार्य होता है. उन्हें इस प्रकार के नाटक के पूर्व अभ्यास करना पड़ता है. अभ्यास के दौरान यह ध्यान रखना पड़ता है कि नाटक के समय साथी कालाकार और सामने खड़े दर्शक को डंडे से चोट न लगे. क्योकि यह नाटक का आयोजन गली मोहल्ला, चौक-चौराहों में होता है.

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इस प्रयोग के पीछे रविकांत का मानना है कि आज-कल ऑडिटोरियम में नाटक करने के काफी पैसे लगते है, और नाटक के प्रति लोगों की दिलचस्पी कम होने से नाटक के लिए ऑडिटोरियम बूक करने में असर्मथ होते है. पहले दर्शक ऑडिटोरियम तक आते थे, लेकिन अब रंगकर्म दर्शक के पास आ रहा है. उद्देशय़ साफ है कि अधिक से अधिक संख्या में दर्शको को रंगकर्म के साथ जोडा जाए. उसी कड़ी में यह नुक्कड नाटक का नया प्रयोग है.

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