जमशेदपुरः झारखंड का कई इलाका दुर्गम और सुदूर है, कई इलाकों में आज भी लोग नए जमाने के साथ मिलकर नहीं चल पा रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में लोगों की आस्था और उनका अंधविश्वास (Superstition) कभी-कभी उनके लिए जान का खतरा भी बन जाता है. फिर भी वो इसी उपाय पर आज भी चल रहे हैं.
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पूर्वी सिंहभूम जिला (East Singhbhum District) में एक ऐसा ही मामला देखने को मिला है. जिसमें 14 साल की बच्ची को आधी रात के वक्त करैत सांप (Krait snake) के काटने के बाद रातभर गांव में झाड़-फूंक किया गया, जब बच्ची की हालत गंभीर हो गई तब आनन-फानन में उसे सदर अस्पताल (Sadar Hospital) लाया गया, जहां आईसीयू में उसका इलाज कर डॉक्टरों ने बच्ची की जान बचाई.
सदर अस्पताल के आईसीयू (ICU) के डॉक्टर अंशु माली (Dr. Anshu Mali) बताते हैं कि गांव में ओझा से झाड़-फूंक कराने के बाद बच्ची की स्थिति गंभीर हो गई थी, उसे सांप काटने के 8 घंटे बाद अस्पताल लाया गया. बच्ची का ऑक्सीजन लेवल (Oxygen level) काफी कम हो गया था, वो पूरी तरह अचेत थी, उसे आईसीयू में रखकर इलाज किया गया. डॉ. अंशु माली ने बताया कि करैत सांप जहरीला होता है, उसके काटने के बाद सांस लेने में परेशानी होती है, शरीर में पैरालाइसिस के सिम्टम्स (Symptoms of Paralysis) बनने लगते हैं, मरीज की आंखों पर असर होता है. ऐसे हालात में सही समय पर इलाज होने से जान बचाई जा सकती है.
बरसात में लोग होते हैं सर्पदंश का शिकार
झारखंड राज्य बने दो दशक बाद आज भी ग्रामीण इलाकों मे लोग अंधविश्वास से घिरे हुए हैं. बरसात के मौसम में जब विषैले सांप आसपास दिखाई देते हैं और लोग सर्पदंश का शिकार होते हैं तो वो आज भी इलाके के तथाकथित पुरोहितों और ओझा-गुनी के पास जाते हैं, उनसे झाड़-फूंक कराते हैं. ऐसे में जब मरीज की हालत बिगड़ती है तब जाकर परिजन अस्पताल का रूख करते हैं. ऐसे नाजुक वक्त में डॉक्टर्स के लिए भी मरीज की जान बचाना बड़ी चुनौती बन जाती है.
बरसात में हर महीने 60-70 मरीज सर्पदंश के आते हैं
पूर्वी सिंहभूम जिला में बरसात के मौसम में सर्पदंश का मामला देखने को मिलता है. ग्रामीण इलाके में बरसात के मौसम में जहरीले सांप अपने बिल से बाहर निकलते हैं. सांप के बाहर आने से ग्रामीणों को भी खतरा बना रहता है, आए दिन सांप काटने की घटना सामने आती है. जिसमें कई पीड़ितों की मौत हो जाती है जबकि अधिकांश मामलों में कई ग्रामीण आज भी गांव में झाड़-फूंक कर मरीजों का इलाज कराते हैं. ऐसे में शरीर में सांप काटने के बाद जहर फैलने से यही समय पर इलाज के अभाव में पीड़ित की मौत हो जाती है.
जमशेदपुर (Jamshedpur) में बरसात के मौसम में हर महीने सांप काटने वाले 60 से 70 मरीज अस्पताल में आते हैं. जबकि सांप काटने के बाद कई मरीज की गांव में ही मौत हो जाती है. झाड़-फूंक से ठीक नहीं होने पर घंटों बाद पीड़ित को अस्पताल लाया जाता है. ऐसे हालात में डॉक्टर को मरीज को स्वस्थ्य करना एक चुनौती बन जाती है.
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सर्पदंश में एंटी स्नैक वेनम से इलाज होता है इलाज
जमशेदपुर सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. अरुण विजय बाखला (Deputy Superintendent Dr. Arun Vijay Bakhala) बताते हैं कि बरसात में सर्पदंश के ज्यादा मरीज आते हैं. जहरीला सांप काटने पर एंटी स्नेक वेनम (Anti snake venom) से इलाज किया जाता है और जिन मरीजों में जहर का असर नहीं रहता उसे ऑब्जरवेशन में रख दिया जाता है. लेकिन गांव में अभी-भी झाड़-फूंक के बाद स्थिति ज्यादा बिगड़ने पर ही मरीज को अस्पताल लेकर आते हैं, जिससे इलाज में परेशानी होती है. डॉक्टर बताते हैं कि आज सभी अस्पतालों में सर्पदंश की दवा उपलब्ध है, सांप काटने पर बिना देर किए 12 घंटे के अंदर मरीज को अस्पताल लाना जरूरी है.
चूहों का पीछा करने में घर में दाखिल होते हैं सांप
कचड़े के ढेर, नदी, तालाब और घनी झाड़ियों में सांपों का डेरा रहता है. ग्रामीण क्षेत्र के समाजसेवी सुबोध सरदार (Social worker Subodh Sardar) बताते हैं कि ग्रामीण इलाके में नाग और करैत सांप ज्यादा पाए जाते हैं. करैत सांप के काटने का मामले सबसे ज्यादा होते हैं. गांव में झाड़-फूंक और घरेलू दवा देने की परंपरा अभी-भी है, पर उन्हें जागरूक किया जा रहा है. सरकार की ओर से अस्पताल उप स्वास्थ्य केंद्र में सांप काटने के इलाज की सुविधा मिलने पर अब ऐसे मामलों में भी ग्रामीण अस्पताल जा रहे हैं.
झारखंड के जंगलों में नाग, कोबरा, करैत, बैंडेड करैत, रसल वाइपर जैसे जहरीले सांप पाए जाते हैं. जिनमें करैत नॉन ब्रीड से उत्पन्न होने वाला सांप है. 40 साल से सांप पकड़ कर लोगों को खतरे से बचाने वाले जमशेदपुर निवासी नवल सिंह बताते हैं कि जहां गंदगी रहेगी, पुराना सामान का जमावड़ा रहेगा, पत्थर और ईंट के ढेर, नदी तालाब के पास के क्षेत्र में करैत सांप का बसेरा रहता है. यह लार्वा से पनपता है और इसे चिती सांप भी कहते हैं.
घर के आसपास मिट्टी तेल का छिड़काव करें
बरसात आने पास सांप दूसरी जगह तलाशते हैं. नया घर और खाना की तलाश में चूहों के पीछे-पीछे वो कभी किसी के घर में, किसी के गोदाम या फिर कूड़े-कचरे में चला जाता हैं. इस दौरान किसी का पैर लगने या छेड़छाड़ के क्रम में सांप उसपर हमला करता है. स्नेक कैचर बताते हैं कि सांप को मारना नहीं चाहिए. एहतियात के तौर पर बारिश के मौसम में घर साफ-सुथरा रखें, घर के आसपास मिट्टी तेल का छिड़काव करें. कुछ लोग कैमिकल का इस्तेमाल करते हैं, जिसका असर सांप के साथ-साथ इंसानों पर भी होता है.
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सर्पदंश में डर से हार्ट अटैक
स्नेक कैचर नवल सिंह (Snake Catcher Naval Singh) बताते हैं कि सांप काटने के बाद लोग बहुत ज्यादा डर जाते हैं, जिसकी वजह से ज्यादा लोग पैनिक हो जाते हैं और दिल की धड़कन रूक जाती है. बाद में अस्पताल में जाने पर मौत की वजह हार्ट अटैक (Heart attack) सामने आता है. इसलिए हादसे के वक्त भी थोड़ा संयम बरतते हुए मरीजों को सुरक्षित अस्पताल लाया जाना चाहिए ताकि सही वक्त पर उनका इलाज कर उनकी जान बचाई जा सके.
बरसात के मौसम में सांप के काटने के बाद इलाज के दौरान हर महीने 8 से 10 लोगों की मौत होती है. जबकि सांप काटने के बाद जिन्हें अस्पताल नहीं लाया गया वैसे मरीजों की मौत का आंकड़ा बताना मुश्किल है. सिर्फ झारखंड ही नहीं देश के कई राज्यों में आज भी ग्रामीण इलाकों में लोग सर्पदंश में झाड़-फूंक का ही सहारा लेते हैं. इस अंधविश्वास में कई लोगों ने अपनों को खो दिया है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में युद्धस्तर पर जागरुकता पैदा करने की जरूरत है, जिससे सर्पदंश में अंधविश्वास को दरकिनार कर ग्रामीण चिकित्सा व्यवस्था पर विश्वास कर सके.