जमशेदपुर: सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का 414 वां शहादत दिवस सादगी के साथ लोगों ने घर की चहारदीवारी के भीतर मनाया. वहीं, घर-घर में महिलाओं ने मंगलवार को पिछले 40 दिन से चले आ रहे सुखमणि साहब पाठ की लड़ी का भोग डाला और सभी के भले के लिए अरदास की. इसके साथ ही घरों में ही चना शरबत के साथ प्रसाद का वितरण किया.
वहीं, तख्त श्री हरिमंदिर साहब प्रबंधन कमेटी के उपाध्यक्ष सरदार इंद्रजीत सिंह ने कहा कि मातृशक्ति की जीवंतता के कारण ही सिख पंथ की विरासत इतिहास साहित्य कायम है. इस समय लॉकडाउन के युग में जब गुरुद्वारों में श्री सुखमणि साहब के सामूहिक पाठ नहीं हुए, तो घरों में बैठकर महिलाओं ने 40 दिन की पाठ की लड़ी चलाकर सराहनीय कार्य किया है. उन्होंने बताया कि गुरु अर्जुन देव जी की शहादत के पीछे कई कारण रहे हैं. गुरुगद्दी नहीं मिलने के कारण उनका सगा बड़ा भाई पृथ्वी चंद उनके खिलाफ था. वहीं, रिश्ता ठुकराए जाने के बाद लाहौर का दीवान चंदू शाह गुरु जी से खफा था. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के संपादन से रूढ़ीवादी पुरोहित और मौलवी भी बादशाह जहांगीर को भड़का रहे थे. वहीं, बेटे खुसरो की बगावत से नाराज जहांगीर ने गुरुजी पर देशद्रोह का आरोप लगाकर यशा कानून के तहत लाहौर में रावी नदी के किनारे सन 1606 ईसवी में शहीद करवा दिया.
ये भी पढ़ें- हजारीबाग: आनंद को थर्ड डिग्री टॉर्चर करना 3 पदाधिकारियों को पड़ा महंगा, एसपी ने किया सस्पेंड
इंद्रजीत सिंह के अनुसार पूरी दुनिया की मानवता को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी एक बड़ी देन है. इसमें सिर्फ गुरुओं के साथ ही निराकार ब्रह्म के उपासक संतों के साथ ही मुसलमान सूफी फकीरों की वाणी भी संकलित है. वहीं, प्राप्त जानकारी के अनुसार बारीडीह गुरुद्वारा के पूर्व प्रधान अमरजीत सिंह की धर्मपत्नी और स्त्री सत्संग सभा की पूर्व प्रधान बीबी अमरजीत कौर के घर में भी सुखमणि साहब की लड़ी का पाठ संपूर्ण हुआ और भोग डाला गया. अमरजीत सिंह के जरिए कीर्तन दरबार भी सजाया गया.
सिख इतिहास में संभवत यह पहला मौका है जब गुरुद्वारा और सिख संस्थाओं के जरिए मीठे ठंडे जल की छबील का सार्वजनिक तौर पर वितरण नहीं हुआ है. वैसे सभी गुरुद्वारा साहिब में गुरु घर के वजीर ग्रंथी साहिब ने सुखमणि साहब का पाठ किया और भोग डाला. वहीं, पारंपरिक रूप से कीर्तन गायन, सबद विचार के उपरांत प्रसाद वितरण किया गया.