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जमशेदपुर के इस गांव में प्लास्टिक पर भारी बांस की कारीगरी, मशीन की तरह चलती है उंगलियां

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Published : Feb 5, 2020, 8:37 PM IST

पूर्वी सिंहभूम जिले के रागमागोड़ा गांव में घर के बाहर बैठकर महिलाए, बड़े और बुजुर्ग बांस से काटे गए अलग-अलग आकार की पत्ती से टोकरी बनाते रहते हैं. ग्रामीण सुबह से ही काम पर लग जाते है, जिससे अधिक से अधिक बांस के सामान बना सके. इस गांव में यह कला पुरानी है. बांस से बने सामान से पर्यावरण और ग्रामीणों को भी लाभ है.

People of Ragmagoda village make bamboo items in jamshedpur
रागमागोड़ा गांव में बांस के सामान बनते हैं

जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम जिले का गांव रागमागोड़ा बांस से टोकरी और दूसरे सामान बनाने की कारीगरी में अपने शानदार हुनर के लिए जाना जाता है. इस गांव के ग्रामीणों को सरकार से बांस, बाजार और प्रशिक्षण चाहिए.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

रागमागोड़ा गांव जाने के लिए घने जंगल और पहाड़ों की तलहटी से होकर गुजरना पड़ता है. गांव में घर के बाहर बैठकर महिलाए, बड़े और बुजुर्ग बांस से काटे गए अलग-अलग आकार की पत्ती से टोकरी बनाते रहते हैं. गांव में पानी और बिजली की पूरी व्यवस्था है. ग्रामीण सुबह से ही काम पर लग जाते हैं, जिससे अधिक से अधिक बांस के सामान बना सके.

ये भी पढ़ें- संसद में उठा चाईबासा नरसंहार का मामला, हाथियों का मुद्दा भी गरमाया

ग्रामीण राजन महली की मानें, तो सोमवार और गुरुवार को वो 7 से 8 किलोमीटर चलकर बंगाल के बॉर्डर पर जाते हैं और वहां से बांस लाते हैं. बाकी चार दिन बांस की टोकरी, सूप, छाता और तराजू बनाते हैं. इसके बाद एक दिन हाट बाजार में टोकरी बेचने जाते हैं. गांव के हकु महली का कहना है कि साइकिल से 3 बांस लाते हैं, जिसे लाने में दिनभर का समय लग जाता है. एक बांस 100 रुपये में मिलता है. एक दिन में 2 से 3 टोकरी बना पाते हैं.

ग्रामीण लक्षमण का कहना है कि इस गांव में यह कला पुरानी है, लेकिन स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध होने से अधिक सामान बन पाएगा. आज प्लास्टिक की टोकरी और प्लास्टिक से बने अन्य सामान से पर्यावरण को खतरा है. हालांकि बांस से बने सामान से कोई खतरा नहीं है. लक्ष्मण की सरकार से अपील है कि सरकार इन्हें बांस से नए डिजाइन के बेहतर सामान बनाने का प्रशिक्षण दे, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो. इसके साथ ही गांव में बांस कुटीर भवन का निर्माण हो.

गांव की मुखिया रूपा सिंह सरदार को उनकी पंचायत के रागमागोड़ा गांव पर गर्व है की ग्रामीण आदिकाल की अपनी इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. बांस से बने सामान से पर्यावरण और ग्रामीणों को भी लाभ है. बिक्री होने से गांव के बच्चे पढ़ते हैं.

बोड़ाम प्रखंड के बीडीओ राकेश कुमार गोप का कहना है कि रागमागोड़ा के ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध हो, इसकी कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि आज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चल रहा है, ऐसे में बांस से बने सामान का बाजार बेहतर हो इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

बांस से बने सामान

  • बड़ी टोकरी 200 रुपये
  • छोटी टोकरी 100 रुपये
  • खांची 20 रुपये
  • सुप 20 रुपये
  • दाड़ी पल्ला तराजू 70-80 रुपये
  • धान खोचा 300 रुपये

जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम जिले का गांव रागमागोड़ा बांस से टोकरी और दूसरे सामान बनाने की कारीगरी में अपने शानदार हुनर के लिए जाना जाता है. इस गांव के ग्रामीणों को सरकार से बांस, बाजार और प्रशिक्षण चाहिए.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

रागमागोड़ा गांव जाने के लिए घने जंगल और पहाड़ों की तलहटी से होकर गुजरना पड़ता है. गांव में घर के बाहर बैठकर महिलाए, बड़े और बुजुर्ग बांस से काटे गए अलग-अलग आकार की पत्ती से टोकरी बनाते रहते हैं. गांव में पानी और बिजली की पूरी व्यवस्था है. ग्रामीण सुबह से ही काम पर लग जाते हैं, जिससे अधिक से अधिक बांस के सामान बना सके.

ये भी पढ़ें- संसद में उठा चाईबासा नरसंहार का मामला, हाथियों का मुद्दा भी गरमाया

ग्रामीण राजन महली की मानें, तो सोमवार और गुरुवार को वो 7 से 8 किलोमीटर चलकर बंगाल के बॉर्डर पर जाते हैं और वहां से बांस लाते हैं. बाकी चार दिन बांस की टोकरी, सूप, छाता और तराजू बनाते हैं. इसके बाद एक दिन हाट बाजार में टोकरी बेचने जाते हैं. गांव के हकु महली का कहना है कि साइकिल से 3 बांस लाते हैं, जिसे लाने में दिनभर का समय लग जाता है. एक बांस 100 रुपये में मिलता है. एक दिन में 2 से 3 टोकरी बना पाते हैं.

ग्रामीण लक्षमण का कहना है कि इस गांव में यह कला पुरानी है, लेकिन स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध होने से अधिक सामान बन पाएगा. आज प्लास्टिक की टोकरी और प्लास्टिक से बने अन्य सामान से पर्यावरण को खतरा है. हालांकि बांस से बने सामान से कोई खतरा नहीं है. लक्ष्मण की सरकार से अपील है कि सरकार इन्हें बांस से नए डिजाइन के बेहतर सामान बनाने का प्रशिक्षण दे, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो. इसके साथ ही गांव में बांस कुटीर भवन का निर्माण हो.

गांव की मुखिया रूपा सिंह सरदार को उनकी पंचायत के रागमागोड़ा गांव पर गर्व है की ग्रामीण आदिकाल की अपनी इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. बांस से बने सामान से पर्यावरण और ग्रामीणों को भी लाभ है. बिक्री होने से गांव के बच्चे पढ़ते हैं.

बोड़ाम प्रखंड के बीडीओ राकेश कुमार गोप का कहना है कि रागमागोड़ा के ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध हो, इसकी कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि आज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चल रहा है, ऐसे में बांस से बने सामान का बाजार बेहतर हो इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

बांस से बने सामान

  • बड़ी टोकरी 200 रुपये
  • छोटी टोकरी 100 रुपये
  • खांची 20 रुपये
  • सुप 20 रुपये
  • दाड़ी पल्ला तराजू 70-80 रुपये
  • धान खोचा 300 रुपये
Intro:स्पेशल स्टोरी
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जमशेदपुर।

पूर्वी सिंहभूम ज़िला का एक गांव रागमागोड़ा जहां आदिकाल से बांस से टोकरी और अन्य सामान बनाने की कारीगरी में अपने शानदार हुनर के लिए जाना जाता है ।इस गांव के ग्रामीणों को सरकार से बांस बाज़ार और प्रशिक्षण चाहिए।क्षेत्र के प्रखंड विकास पदाधिकारी कहते है जल्द ही गांव में बांस की खेती और बांस से अन्य सामान बनाने का प्रशिक्षण देने का प्रयास किया जाएगा ।


Body:जमशेदपुर से 25 किलोमीटर दूर बोड़ाम प्रखंड में रागमागोडा गांव बांस से बने टोकरी और अन्य सामान बनाने के लिए जाना जाता है।गांव में आदिकाल से ग्रामीण बांस से टोकरी और अन्य सामान बनाकर अपनी जीविका चलाते है।गांव में 50 के लगभग महली जनजाति के लोग रहते है।
रागमागोड़ा गांव जाने के लिए घने जंगल और पहाड़ों की तलहटी से होकर गुजरना पड़ता है।
गांव की दहलीज पर कदम रखते ही बांस के कटने और छिलने की आवाज कानों में गूंजने लगती है।कच्चे पक्के मकान के बाहर सड़क के किनारे बैठकर महिलाये बड़े और बुजुर्ग बांस से काटे गए अलग अलग आकार की पत्ती से अपने हुनर से टोकरी बनाने में व्यस्त है ।साफ सुथरी गांव में पानी और बिजली की पूरी व्यवस्था है।
इस गांव को टोकरी वाला गांव कहा जा सकता है ।
इस गांव के ग्रामीण सुबह से ही काम पर लग जाते है जिससे अधिक से अधिक बांस के सामान बना सके।
रागमागोड़ा के ग्रामीण राजन महली अपनी भाषा मे बताया कि सोमवार और गुरुवार को वो 7 से 8 किलोमीटर चलकर बंगाल के बॉर्डर पर जाते है और वहां से बांस लाते है बाकी चार दिन बांस की टोकरी सुप छाता और तराजू बनाते है एक दिन हाट बाजार में टोकरी बेचने जाते है ऐसे ही जीवन चलता है अपना कोई ज़मीन जायदाद नही है।
बाईट राजन महली ग्रामीण
सफेद गंजी पहना हुआ

अपनी पूर्वजों की देन बांस से टोकरी और अन्य सामान बनाने की हुनर को ग्रामीण भूलाना नही चाहते है ।
गांव के हकु महली बताते है कि साइकिल से तीन बांस लाते है जिसे लाने में दिनभर का समय लग जाता है ।एक बांस सौ टाका में मिलता है ।एक दिन में दो से तीन टोकरी बना पाते है।हमारे बनाये गए सामान का शादी विवाह पूजा पाठ और कामो के लिए इस्तेमाल किया जाता है यह हम आदिकाल से करते आ रहे है।
बाईट हकु महली ग्रामीण
टी शर्ट पहना हुआ

गांव के बीचोबीच एक सरकारी स्कूल है जहां रागमागोड़ा गांव के बांस की टोकरी बनाने वाले ग्रामीण के बच्चों के अलावा आस पास गांव के बच्चे भी पढ़ने आते है ।
स्कूल का छात्र रंजन महली पढ़कर पुलिस बनना चाहता है उसका कहना है कि उसके दादा दादी माँ पिता सभी बांस का काम करते है टोकरी बनाते है और हमे पढ़ाते है ।हम पढ़लिख कर पुलिस बनेंगे ।
बाईट रंजन महली छात्र

आज आधुनिक युग मे हर काम को आसान करने के लिए नई तकनीक की मशीन बाज़ार में उपलब्ध है लेकिन रागमागोड़ा के ग्रामीण आज भी अपने दिमाग से जुगाड़ यंत्र बनाकर बांस की कटाई छिलाई और उसे आकर्षक बनाने में विश्वास रखते है उन्हें अपने जुगाड़ यंत्र पर पूरा भरोसा है।
गांव के स्थानीय युवक लक्ष्मण ईटीवी भारत का शुक्रिया अदा करते हुए कहते कि घने जंगलों से होकर इस गांव में आये है।
लक्षमण का कहना है कि इस गांव में यह कला पुरानी है लेकिन स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध होने से अधिक सामान बन पाएगा ।आज प्लास्टिक की टोकरी और प्लास्टिक से बने अन्य सामान से पर्यावरण को खतरा है लेकिन बांस से बने सामान से कोई खतरा नही है ।लक्षमन से सरकार से अपील किया है कि सरकार इन्हें बांस से और नए डिजाइन के बेहतर सामान बनाने का प्रशिक्षण दे जिससे इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो साथ ही गांव में बांस कुटीर भवन का निर्माण हो।
बाईट लक्षमण स्थानीय
सफेद शर्ट पहना हुआ लड़का

गांव की मुखिया रूपा सिंह सरदार को उनके पंचायत का रागमागोड़ा गांव पर गर्व है की ग्रामीण आदिकाल की अपनी इस परंपरा को निभाते आ रहे है और प्लास्टिक से बने सामान से बांस से बने सामान से पर्यावरण और ग्रामीणों को भी लाभ है बिक्री होने से गांव के बच्चे पढ़ सकेंगे ।
बाईट रुपा सिंह सरदार मुखिया रागमागोड़ा पंचायत
साड़ी पहनी औरत


Conclusion:ग्रामीण एक दिन मे तीन चार छोटी बड़ी टोकरी बना पाते है ।इन्हें प्रशिक्षण दिया जाए और बाज़ार उपलब्ध कराया जाय तो बांस से और भी बेहतरीन चीजें बना सकते है।
बोड़ाम प्रखंड के बीडीओ राकेश कुमार गोप बताते है कि रागमागोड़ा के ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध हो सके प्रयास किया जा रहा है उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए व्यवस्था की जा रही है जिससे और भी आकर्षक बेहतर सामान बनाकर इनका आमदनी बढ़ सके ।बीडीओ ने बताया कि आज प्लास्टिक केखिलाफ अभियान चल रहा है ऐसे में बांस से बने सामान का बाज़ार बेहतर हो इसके लिए प्रयास किये जा रहे है।और ग्रामीणों को बांस की खेती करने के लिए सुनिश्चित प्रयास किये जा रहे है।
बाईट राकेश कुमार गोप प्रखंड विकास पदाधिकारी बोड़ाम।
कोट पहना हुआ

बांस से बने सामान
बड़ी टोकरी 200 रुपये
छोटी टोकरी 100
खांची 20
सुप 15 से 20
दाड़ी पल्ला तराजू 70 से 80
धान खोचा 300

बहरहाल टोकरी का गांव रागमागोड़ा के ग्रामीणों को सरकार से और कुछ नही सिर्फ बांस बाज़ार और नई प्रशिक्षण चाहिए जिससे इनकी पुरानी परंपरा सुरक्षित हो और आर्थिक स्थिति मजबूत ही सके ।

जितेंद्र कुमार ईटीवी भारत जमशेदपुर।
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