जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम जिले का गांव रागमागोड़ा बांस से टोकरी और दूसरे सामान बनाने की कारीगरी में अपने शानदार हुनर के लिए जाना जाता है. इस गांव के ग्रामीणों को सरकार से बांस, बाजार और प्रशिक्षण चाहिए.
रागमागोड़ा गांव जाने के लिए घने जंगल और पहाड़ों की तलहटी से होकर गुजरना पड़ता है. गांव में घर के बाहर बैठकर महिलाए, बड़े और बुजुर्ग बांस से काटे गए अलग-अलग आकार की पत्ती से टोकरी बनाते रहते हैं. गांव में पानी और बिजली की पूरी व्यवस्था है. ग्रामीण सुबह से ही काम पर लग जाते हैं, जिससे अधिक से अधिक बांस के सामान बना सके.
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ग्रामीण राजन महली की मानें, तो सोमवार और गुरुवार को वो 7 से 8 किलोमीटर चलकर बंगाल के बॉर्डर पर जाते हैं और वहां से बांस लाते हैं. बाकी चार दिन बांस की टोकरी, सूप, छाता और तराजू बनाते हैं. इसके बाद एक दिन हाट बाजार में टोकरी बेचने जाते हैं. गांव के हकु महली का कहना है कि साइकिल से 3 बांस लाते हैं, जिसे लाने में दिनभर का समय लग जाता है. एक बांस 100 रुपये में मिलता है. एक दिन में 2 से 3 टोकरी बना पाते हैं.
ग्रामीण लक्षमण का कहना है कि इस गांव में यह कला पुरानी है, लेकिन स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध होने से अधिक सामान बन पाएगा. आज प्लास्टिक की टोकरी और प्लास्टिक से बने अन्य सामान से पर्यावरण को खतरा है. हालांकि बांस से बने सामान से कोई खतरा नहीं है. लक्ष्मण की सरकार से अपील है कि सरकार इन्हें बांस से नए डिजाइन के बेहतर सामान बनाने का प्रशिक्षण दे, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो. इसके साथ ही गांव में बांस कुटीर भवन का निर्माण हो.
गांव की मुखिया रूपा सिंह सरदार को उनकी पंचायत के रागमागोड़ा गांव पर गर्व है की ग्रामीण आदिकाल की अपनी इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. बांस से बने सामान से पर्यावरण और ग्रामीणों को भी लाभ है. बिक्री होने से गांव के बच्चे पढ़ते हैं.
बोड़ाम प्रखंड के बीडीओ राकेश कुमार गोप का कहना है कि रागमागोड़ा के ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर बांस उपलब्ध हो, इसकी कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि आज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चल रहा है, ऐसे में बांस से बने सामान का बाजार बेहतर हो इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
बांस से बने सामान
- बड़ी टोकरी 200 रुपये
- छोटी टोकरी 100 रुपये
- खांची 20 रुपये
- सुप 20 रुपये
- दाड़ी पल्ला तराजू 70-80 रुपये
- धान खोचा 300 रुपये