जमशेदपुरः प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले से करीब पचास किलोमीटर दूर बोड़ाम प्रखंड में हाथी खेदा नाम का मंदिर है. हाथी खेदा मंदिर में किसी देवी देवता नहीं बल्कि हाथियों की पूजा की जाती है.
हाथी खेदा मंदिर परिसर में हाथी की अनेक मूर्तियां है. इसके पीछे बड़ी ही रोचक कहानी है. मंदिर के मुख्य पुजारी गिरिजा प्रसाद सिंह सरदार ने ईटीवी भारत को बताया कि पुराने समय में इस इलाके में हाथियों का भयंकर उत्पात था. दलमा के जंगल से लगे होने के कारण हाथी अक्सर खेत और गांवों में घुस आते थे. हाथी और दूसरे जंगली जानवर आकर फसल बर्बाद कर देते थे.
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हाथी खेदा नाम की कहानी
ग्रामीणों की परेशानी के निदान के लिए पुजारियों ने मिट्टी से बनी हाथियों की मूर्ति की पूजा शुरू की. इसके बाद हाथियों का आना कम होता गया. बाद में यहां मंदिर बनाया गया और नाम रखा गया हाथी खेदा, जिसका मतलब है हाथियों को हटाना. गिरिजा प्रसाद सिंह सरदार मानते हैं कि ये ठाकुर हाथी भगाते थे मतलब हाथी को खदेड़ते थे. इसलिए उसी नाम से पूजा होने लगी और ये जगह हाथी खेदा के नाम से जाना जाने लगा.
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महिलाओं को प्रसाद खाने की मनाही
कालांतर में इस मंदिर की प्रसिद्धि दूरदराज तक पहुंचने लगी और दूसरे प्रदेश के लोग अपनी मनोकामना लेकर यहां आने लगे. यहां चुनरी और नारियल बांधने के साथ भेड़ की बलि चढ़ाने की परंपरा है. खास बात ये है कि यहां का प्रसाद महिलाएं नहीं खा सकती हैं. यहां का प्रसाद घर ले जाना भी मना है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि हर मंदिर की परंपरा नियमों के अनुसार चलती है. हमारे पूर्वज ने पहले से ही नियम बना रखा है कि महिलाओं को यहां का प्रसाद खाना वर्जित है. हालांकि ये बात किसी को नहीं मालूम की आखिर महिलाएं इस मंदिर का प्रसाद क्यों नहीं खा सकती हैं.
हाथी खेदा मंदिर को लेकर लोगों में गहरी आस्था है. यहां कई श्रद्धालु मुंडन संस्कार के लिए भी आते हैं. लोगों की मानें को यहां कोई भी मनोकामना सिर्फ मत्था टेकने से ही पूरी हो सकती है. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले की श्रद्धालु सुनीता देवी ने कहा कि उनका परिवार हर साल यहां आता है. हाथी खेदा मंदिर के कारण यहां हाथियों का उत्पात कम हुआ है, ये महज एक संयोग हो सकता है. फिर भी यहां सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.