जमशेदपुर: स्वच्छताअभियान के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सम्मानित हो चुकी हिलटॉप स्कूल की सातवीं कक्षा की छात्रा मोन्द्रिता चटर्जी ने दो और शौचालय बनवा कर ड्रॉप आउट होने वाली लड़कियों को स्कूल लाने की पहल की है. छोटी सी उम्र में जमशेदपुर की छात्रा मोन्द्रिता चैटर्जी ने वो कर दिखाया जो सालों से लोग नहीं कर पाए.
मोंद्रिता चटर्जी टेल्को के रिवर व्यू इंक्लेव में रहने वाले अमिताभ चटर्जी और स्वीटी चटर्जी की इकलौती बेटी हैं. अमिताभ चटर्जी आदित्यपुर स्थित मेडिट्रिना अस्पताल के निदेशक हैं. मोंद्रिता की मां स्वीटी चिन्मया भारती टेल्को स्कूल में अध्यापिका हैं. मोंद्रिता बताती हैं कि बचत करना उसका शौक था. वह अपने पिता से रुपये लेकर इसकी बचत करती थीं. तब उन्होंने यह सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो इन रुपये से समाज के लिए शौचालय बनायेंगी. गुल्लक में रुपये एकत्र होते थे. ऐसे करते करते कई गुल्लक भर गईं, लेकिन अक्टूबर 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन का ऐलान किया तो उन्होंने ठान लिया कि अपनी बचत के रुपये से वो ऐसे स्कूलों में शौचालय बनवाएंगी जहां छात्राओं के लिए शौचालय नहीं हैं. इसके बाद वह पिता से आए दिन रुपये लेने लगी. कभी पांच सौ तो कभी एक हजार रुपये.
बनवाए गए 10 शौचालय
इस पर अमिताभ चटर्जी ने एक दिन मोंद्रिता को डांटा कि तुम इतने पैसे का क्या करती हो. अमिताभ चटर्जी ने बताया कि मोंद्रिता की गुल्लक से निकले रुपये से केंदाडीह में सामुदायिक शौचालय बनाया गया है. इस शौचालय में दो यूनिट हैं. इसमें एक स्नानागार भी बनाया गया है. इसके बाद उनकी बेटी ने हलुदबनी के एक स्कूल में शौचालय बनवाया. इस स्कूल में बच्चे नृत्य और गाना सीखते हैं. मोन्द्रिता चटर्जी को कथक नृत्य ,सामाजिक कार्य, पुस्तकें पढ़ना बहुत ही पसंद हैं.
2 अक्टूबर, 2014 को जब स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया गया था, तब चटर्जी 14 साल के थे, वह अपने पिता अमिताभ चटर्जी के साथ जमशेदपुर के मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल में एक प्रशासक के साथ टीवी देख रही थीं. समाचार पत्रों को पढ़ने के शौकीन चटर्जी ने पढ़ा कि कैसे शौचालय की अनुपलब्धता के कारण लड़कियां स्कूलों से बाहर निकल रही हैं. इसके बाद से उन्होंने अब तक करीब 10 शौचालय बनवाए हैं.
स्वच्छता राजदूत के रूप में नामित
2017 में तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट की ओर से जमशेदपुर के लिए स्वच्छता राजदूत के रूप में नामित, चटर्जी को न केवल शौचालय निर्माण में उनके प्रयासों के लिए चुना गया था, बल्कि एक राज्य में अच्छी स्वच्छता के बारे में ग्रामीणों और छात्रों के बीच जागरूकता पैदा की गई थी. जिसे 2018 में खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया था.
प्लास्टिक से शौचालय बनाया
गोविंदपुर थाना क्षेत्र के प्रकास नगर के स्कूल में शौचालय की सुविधा नहीं थी, जिसके बाद मोंद्रिता ने स्कूल में शौचालय का निर्माण कराया. यहां के शौचालय अन्य शौचालयों की तरह ईंट, बालू,पत्थरों की सहायता से निर्माण नहीं किए गए हैं. बल्कि इस शौचालय का निर्माण कूड़े के ढेरों में पड़ी गंदी प्लास्टिक की बोतलों से कराया गया है. ग्रामीण अब सरकारी अधिकारियों के सहयोग से निर्माण करने के लिए उत्सुक हैं. साथ ही, वो शौचालय निर्माण के लिए अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग करके प्रदूषण को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
दोस्तों ने उड़ाया मजाक
चटर्जी ने कहा कि शुरू में उनके दोस्तों ने उन्हें काफी छेड़ा. हालांकि, स्वच्छता के राजदूत बनने और अखबारों में उनके नाम की विशेषता के बाद, उनके दोस्तों ने इसका कारण समझना शुरू कर दिया. अब उनके दोस्त भी शौचालयों के निर्माण के लिए अपनी बचत के रुपयों को लगा रहे हैं. साथ ही स्वच्छता के महत्व पर संदेश फैलाने, जैसे हाथ धोने और स्कूलों में लड़कियों के लिए सैनिटरी नैपकिन का दान करते हैं.
मोन्द्रिता चटर्जी के पिता अमिताभ चटर्जी ने केन्द्रादिह गाँव को गोद ले लिया है ताकि वे भी अपनी बेटी के इस नेक काम में योगदान कर सकें। उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर इलाके के लोगों के कल्याण के लिए अपने वेतन का 20% अलग रखने का फैसला किया है. मोंद्रिता के विचार आज समाज के नवनिर्माण में सहायक सिद्ध हो रहे हैं, जो उनके हमउम्र लड़कियों के लिए ही नहीं बल्कि बड़ों के लिए भी प्रेरणादायक हैं.