जमशेदपुरः दिव्यांग या स्पेशल, जो आम बच्चों या लोगों से अलग हैं, वो खास हैं. उनकी सोचने-समझने की सलाहियत औरों के मुकाबले कम है, उनका तन और मन उम्र के हिसाब विकसित नहीं है और ना ही उनका मुकाबला औरों से किया जा सकता है. महामारी के इस दौर में उनकी जिंदगी भी प्रभावित हुई है.
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कोरोना (Corona) की दस्तक के साथ-साथ दुनियाभर में लॉकडाउन (Lockdown) की प्रक्रिया अपनाई गई, ताकि संक्रमण के प्रसार को रोका जा सके. साल 2020 के शुरुआती दौर में बंद हुए तमाम स्कूल-कॉलेज समेत शिक्षण संस्थानों में आज भी ताला लटक रहा है. आम लोगों की तरह स्पेशल बच्चे भी अपने-अपने घरों में कैद हो गए. अब उनकी शिक्षा-दीक्षा ऑनलाइन माध्यम से की जा रही है. स्कूल में अपने जैसे बच्चों को देखकर उनके साथ रहने वाले ये बच्चे घर की चारदीवारी में कैद हैं.
आम बच्चों से अलग स्पेशल बच्चों का खास ख्याल रखा जाता है. ऐसे अभिभावकों को इन दिनों शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को संभालने में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. जमशेदपुर में कदमा के रहने वाले प्रवीण कुमार के दो बेटे हैं. बड़ा बेटा अर्थव शर्मा 12 साल का है और वो AUTISM बीमारी से ग्रसित है. उन्होंने अपने बच्चे को स्पेशल स्कूल में डाला था, पर लॉकडाउन लगने की वजह से घर पर ही उसकी देखभाल और पढ़ाई चल रही है.
पिछले साल मार्च से स्कूल बंद होने के कारण अब अर्थव घर पर ही है. स्कूल ना जाने की वजह से अथर्व के साथ-साथ उनके माता-पिता को शुरुआती दौर में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. लेकिन अब हालात सामान्य है, माता-पिता का भरपूर प्यार मिलता है, दोनों मिलकर अथर्व का खास ख्याल रखते हैं. इसके अलावा हफ्ते दो दिन होने वाले ऑनलाइन क्लास से भी थोड़ी राहत मिल जाती है.
अथर्व के बारे में माता स्निग्धा बताती हैं कि अथर्व को स्कूल जाना और बाहर घूमना काफी पसंद है. स्कूल में उसका अच्छा वक्त गुजर जाता था और वो काफी कुछ सीख भी चुका है. लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की वजह से तमाम स्कूल बंद हो गए. लॉकडाउन के शुरुआती दौर में काफी परेशानी हुई, स्कूल जाने के लिए बाहर घूमने के लिए अथर्व काफी परेशान करता. लेकिन धीरे-धीरे मैं अपना पूरा समय अथर्व के साथ बीताने लगी. उसके साथ खेलने और उसे पढ़ाने लगी, जिससे धीरे-धीरे हालात सामान्य होने लगा. अब अथर्व की मां ही उसका होम वर्क करवाती हैं, उसे क्राफ्टिंग करना सीखाती हैं, उसे संभालती हैं. अथर्व की मां अपने बेटे को भरपूर समय देती हैं. जिससे अब उसका मन भी लगा रहता है.
अथर्व के पिता प्रवीण कुमार बताते हैं कि कोरोना की वजह से गाइडलाइंस के तहत तमाम स्कूल बंद हुए तो पुत्र की परेशानी काफी बढ़ गई. ऑनलाइन क्सास तो हो रहा है, पर स्पेशल बच्चों को हमेशा घर में कैद रखना मुनासिब नहीं होता, खासकर शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को घर के साथ-साथ स्कूल की ज्यादा दरकार होती है. शुरुआती दौर में हमे भी अथर्व को संभालने में परेशानी हुई. लेकिन अब हम पति-पत्नी मिलकर उसका खास ख्याल रखते हैं, अथर्व को पूरा वक्त देते हैं.
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जमशेदपुर में इस तरह के करीब 300 बच्चे हैं. इन स्पेशल बच्चों के लिए शहर में चार से पांच स्कूलों का संचालन होता है. जिनमें ज्ञानोदय अकादमी, आशा किरण, बिष्टूपूर का स्कूल ऑफ होप, पैरेंट्स एसोसिएशन ज्ञानदीप, जीविका शामिल है. लाॅकडाउन के कारण सभी स्कूल बंद हैं. फिर भी ऐसे बच्चों को भी ऑनलाइन क्लास देकर उनको जोड़कर रखा जा रहा है. उनकी पढ़ाई करवाई जा रही है.
स्कूल ऑफ होप (School of Hope) की शिक्षिका ने बताया कि ऐसे बच्चों की देखरेख करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन ऐसे बच्चों के लिए हमारे स्कूल में प्रशिक्षित शिक्षक हैं. जो ऑनलाइन क्लास के माध्यम से उनको पढ़ा रही हैं. इन बच्चों को क्राफ्टिंग सिखाया जाता है, जिसमें मोमबत्ती बनाने से लिए कई तरह का सामान बनाना सिखाया जाता है. ऑनलाइन क्लास में उन्हें बकायदा होम वर्क भी दिया जाता है. जिससे वो घर में भी अपने अभिभावकों के साथ बीजी रहें और अपना होम वर्क भी तय वक्त पर पूरा कर सकें.
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क्या है AUTISM बीमारी
ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism or Autism Spectrum Disorder) एक दिमागी बीमारी है. इसमें मरीज ना तो अपनी बात ठीक से कह पाता है ना ही दूसरों की बात समझ पाता है और ना उनसे संवाद स्थापित कर सकता है. यह एक डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है. इसके लक्षण बचपन से ही नजर आ जाते हैं. बच्चे हमारी भाषा तो नहीं समझते, बाद में हाव-भाव और इशारों को समझना शुरू कर देते हैं. जिन बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण होते हैं, उनका बर्ताव अलग होता है. वो इन भावों को समझ नहीं पाते या इन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, ऐसे बच्चे निष्क्रिय रहते हैं. बच्चा जब बोलने लायक होता है तो साफ नहीं बोल पाता है.
बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी से ऑटिज्म से बच्चों का इलाज होता है. इसका यही उद्देश्य है कि बच्चों से उनकी भाषा में बात की जाए और उसके दिमाग को पूरी तरह जाग्रत किया जाए. ठीक तरह से इन थेरेपी पर काम किया जाए तो कुछ हद तक बच्चा ठीक हो जाता है. इसमें माता-पिता का अहम रोल होता, जिसमें वो अपना जितना ज्यादा वक्त बच्चों को देंगे, बच्चों के लिए उतना ही फायदेमंद रहेगा. इन थैरेपी से बच्चा अजीब हरकत करना कम कर देता है. दूसरे बच्चों के साथ खेल में शामिल होने लगता है. एक ही शब्द या बात को बार-बार कहने की आदत छूट जाती है.