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जानिए, सोहराय की गोट पूजा में अंडे को तोड़ना क्यों मानते हैं शुभ

जमशेदपुर शहर के आस-पास ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी संथाल समाज की ओर से साल के अंत में कार्तिक मास में सोहराय को लेकर विशेष तैयारी की जाती है. घरों के आकर्षक रंग रोगन के साथ पशुओं के साथ कई तरह के आयोजन करते हैं. मान्यता है कि साल भर खेती में पशुओं के काम करने के बाद उन्हें सोहराय के मौके पर थकान दूर करने के लिए आराम दिया जाता है और उन्हें अलग अंदाज में सम्मान करते हैं. सोहराय में संथाल समाज की ओर से एक विशेष पूजा की जाती है, जिसे गोट पूजा कहते हैं.

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सोहराय की गोट पूजा
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Published : Nov 18, 2020, 7:03 PM IST

Updated : Nov 18, 2020, 8:05 PM IST

जमशेदपुर: झारखंड में अपनी परंपरा और संस्कृति के प्रति सदा जागरूक रहने वाला आदिवासी समाज आज भी कदम से कदम मिला कर चल रहा है. प्रकृति के करीब रहने के साथ उनकी पूजा करना आदिवासी समाज की अपनी विशेष पहचान है. वहीं, सोहराय में समाज के किसान अपने खेतिहर पशु के साथ एक अलग अंदाज में उनकी पूजा करके गोट पूजा मनाते हैं, लेकिन वर्तमान में इस पुरानी परंपरा पर बदलते समय का असर देखने को मिल रहा है.

देखें पूरी खबर
जमशेदपुर शहर के आस-पास ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी संथाल समाज की ओर से साल के अंत में कार्तिक मास में सोहराय को लेकर विशेष तैयारी की जाती है. घरों के आकर्षक रंग रोगन के साथ पशुओं के साथ कई तरह के आयोजन करते हैं. मान्यता है कि साल भर खेती में पशुओं के काम करने के बाद उन्हें सोहराय के मौके पर थकान दूर करने के लिए आराम दिया जाता है और उन्हें अलग अंदाज में सम्मान दिया जाता है. सोहराय में संथाल समाज की ओर से एक विशेष पूजा की जाती है, जिसे गोट पूजा कहते हैं.

ये भी पढ़ें- जमशेदपुरः पेट्रोल पंप के पास खड़े ट्रक में लगी आग, मची अफरा-तफरी

सालों से चली आ रही इस पुरानी परंपरा के अनुसार, पूजा में ग्रामीण अपने गांव के पुजारी जिसे नायके कहा जाता है, उन्हें आवभगत के साथ गांव के एक मैदान में लेकर आते हैं. जहां गांव के ग्राम प्रधान, किसान के अलावा अन्य ग्रामीण भी मौजूद रहते हैं. परंपरा के अनुसार, गोट पूजा में किसान, ग्रामीण एकत्रित होते हैं. पशु के मालिक की ओर से एक-एक मुर्गा पूजा के लिए चढ़ाया जाता है, जिसे गांव के नायके यानी पुजारी पूजा करके उसकी बलि देते हैं. पूजा वाले स्थान में पर अंडा रखा रहता है.

अंडे की करते हैं पूजा

गांव के नायके लक्ष्मण सोरेन बताते हैं कि 'गोट पूजा हमारी पुरानी परंपरा है. इसमे मारंग बुरु, जाहेर आयो और अन्य आराध्य की पूजा करते हैं. एक अंडा की पूजा भी करते हैं. पूजा के बाद किसान के पशु को अंडा के पास छोड़ा जाता है. इस दौरान जिस पशु के पैर से अंडा टूट जाता है या छू जाता है, उस पशु को शुभ मानते हैं. इस पूजा के जरिये अच्छी फसल की कामना करते हैं.

गोट पूजा के दौरान ग्रामीण गाते हैं सोहराय के गीत

मैदान में अलग-अलग खेमों में ग्रामीणों की ओर से खिचड़ी बनाई जाती है, जिसमें जिस मुर्गे की बलि दी जाती है, उसे भी मिलाया जाता है. आदिवासियों की पुरानी परंपरा के अनुसार, लकड़ी के चूल्हे पर खिचड़ी पकाई जाती है. ग्रामीण इस दौरान हड़िया का सेवन भी करते हैं.

समय के साथ आया बदलाव

गांव के ग्राम प्रधान सालखो सोरेन बताते हैं कि यह परंपरा उनके पूर्वजों से चली आ रही है. पूजा के अंडे को मवेशी पैर से तोड़ते हैं, उसे शुभ मानते हैं. पहले सभी के घर में मवेशी हुआ करते थे, लेकिन वर्तमान में समय के साथ बदलाव आया है. अब गांव के बच्चे स्कूल जाते हैं, कोई आदमी नहीं मिलते हैं, जो मवेशी की देखभाल कर सके. इसके कारण किसान अब ट्रैक्टर से खेती करते हैं. अब गांव में खेतीहर मवेशी कम देखने को मिल रहे हैं, जिसके कारण जिस अंडा की पूजा की जाती है, उसे मैदान में ही खुला छोड़ देते हैं.

जमशेदपुर: झारखंड में अपनी परंपरा और संस्कृति के प्रति सदा जागरूक रहने वाला आदिवासी समाज आज भी कदम से कदम मिला कर चल रहा है. प्रकृति के करीब रहने के साथ उनकी पूजा करना आदिवासी समाज की अपनी विशेष पहचान है. वहीं, सोहराय में समाज के किसान अपने खेतिहर पशु के साथ एक अलग अंदाज में उनकी पूजा करके गोट पूजा मनाते हैं, लेकिन वर्तमान में इस पुरानी परंपरा पर बदलते समय का असर देखने को मिल रहा है.

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जमशेदपुर शहर के आस-पास ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी संथाल समाज की ओर से साल के अंत में कार्तिक मास में सोहराय को लेकर विशेष तैयारी की जाती है. घरों के आकर्षक रंग रोगन के साथ पशुओं के साथ कई तरह के आयोजन करते हैं. मान्यता है कि साल भर खेती में पशुओं के काम करने के बाद उन्हें सोहराय के मौके पर थकान दूर करने के लिए आराम दिया जाता है और उन्हें अलग अंदाज में सम्मान दिया जाता है. सोहराय में संथाल समाज की ओर से एक विशेष पूजा की जाती है, जिसे गोट पूजा कहते हैं.

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सालों से चली आ रही इस पुरानी परंपरा के अनुसार, पूजा में ग्रामीण अपने गांव के पुजारी जिसे नायके कहा जाता है, उन्हें आवभगत के साथ गांव के एक मैदान में लेकर आते हैं. जहां गांव के ग्राम प्रधान, किसान के अलावा अन्य ग्रामीण भी मौजूद रहते हैं. परंपरा के अनुसार, गोट पूजा में किसान, ग्रामीण एकत्रित होते हैं. पशु के मालिक की ओर से एक-एक मुर्गा पूजा के लिए चढ़ाया जाता है, जिसे गांव के नायके यानी पुजारी पूजा करके उसकी बलि देते हैं. पूजा वाले स्थान में पर अंडा रखा रहता है.

अंडे की करते हैं पूजा

गांव के नायके लक्ष्मण सोरेन बताते हैं कि 'गोट पूजा हमारी पुरानी परंपरा है. इसमे मारंग बुरु, जाहेर आयो और अन्य आराध्य की पूजा करते हैं. एक अंडा की पूजा भी करते हैं. पूजा के बाद किसान के पशु को अंडा के पास छोड़ा जाता है. इस दौरान जिस पशु के पैर से अंडा टूट जाता है या छू जाता है, उस पशु को शुभ मानते हैं. इस पूजा के जरिये अच्छी फसल की कामना करते हैं.

गोट पूजा के दौरान ग्रामीण गाते हैं सोहराय के गीत

मैदान में अलग-अलग खेमों में ग्रामीणों की ओर से खिचड़ी बनाई जाती है, जिसमें जिस मुर्गे की बलि दी जाती है, उसे भी मिलाया जाता है. आदिवासियों की पुरानी परंपरा के अनुसार, लकड़ी के चूल्हे पर खिचड़ी पकाई जाती है. ग्रामीण इस दौरान हड़िया का सेवन भी करते हैं.

समय के साथ आया बदलाव

गांव के ग्राम प्रधान सालखो सोरेन बताते हैं कि यह परंपरा उनके पूर्वजों से चली आ रही है. पूजा के अंडे को मवेशी पैर से तोड़ते हैं, उसे शुभ मानते हैं. पहले सभी के घर में मवेशी हुआ करते थे, लेकिन वर्तमान में समय के साथ बदलाव आया है. अब गांव के बच्चे स्कूल जाते हैं, कोई आदमी नहीं मिलते हैं, जो मवेशी की देखभाल कर सके. इसके कारण किसान अब ट्रैक्टर से खेती करते हैं. अब गांव में खेतीहर मवेशी कम देखने को मिल रहे हैं, जिसके कारण जिस अंडा की पूजा की जाती है, उसे मैदान में ही खुला छोड़ देते हैं.

Last Updated : Nov 18, 2020, 8:05 PM IST
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