जमशेदपुर: कार्तिक मास में अमावस्या की रात मां लक्ष्मी की पूजा के साथ मां काली की पूजा की जाती है. मां लक्ष्मी की पूजा घरों और प्रतिष्ठान में होता है, जबकि मां काली की पूजा अलग-अलग जगहों पर मूर्ति स्थापित कर मंदिरों में की जाती है. वहीं, जमशेदपुर के 100 साल पुराने श्मशान में अमावस की रात में मां काली की पूजा का अलग ही तरीका देखने को मिलता है.
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तंत्र विद्या की साधना
जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित 100 साल से भी ज्यादा पुराने श्मशान घाट में मां काली की पूजा पंडित की ओर से विधि विधान के साथ की जाती है. वहीं, श्मशान घाट में अलग-अलग जगहों पर अंधेरी रात में तांत्रिक औघड़ अपने तंत्र विद्या की साधना करते हैं. मान्यता है कि कार्तिक की अमावस रात में मां काली की साधना करने से शक्ति मिलती है. कोरोना काल की वजह से इस साल श्मशान में मूर्ति स्थापित नहीं किया गया. मां काली की पूर्व से स्थापित मूर्ति की पूजा पंडित ने की.
श्मशान में साधना से शक्ति
वहीं, श्मशान में जहां शव का अंतिम संस्कार किया जाता है, वहां अघौरी बाबा साधना में लीन रहे और उनके आस-पास कई सामान्य लोग भी मौजूद रहे. अघोरी ज्वाला बाबा बताते हैं कि अमावस में श्मशान में साधना करने से शक्ति मिलती है. यह लोग महाकाल की साधना करते हैं. इस शक्ति से कुछ भी किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि 7 तरह की शक्ति की साधना करते हैं, ये सब के बस की बात नहीं.
अमावस की रात मंत्र होता है सिद्ध
श्मशान में जगह-जगह सुनसान अंधेरे में दीपक की लौ में पेड़ के नीचे कई साधक साधना में लीन रहते हैं. साधक विमल उपाध्याय बताते हैं कि अमावस की रात मंत्र सिद्ध होता है. सिद्धि प्राप्त कर लोगों की भलाई करते है. वहीं, दूसरे जिले से आए जय घोष बताते हैं कि उन्हें साधना पर विश्वास है. भगवान के अनुचर ही माध्यम हैं, जो समस्या को दूर करते हैं, लेकिन पैसे मांगने वाले ढोंगी साधकों से बचना चाहिए.
वैदिक पूजा सर्वश्रेष्ठ
आस्था का कोई अंत नहीं होता, लेकिन इंसान अपनी सोच से भटकता है. एक तरफ भगवान पर पूरा विश्वास करता है. वहीं, साधकों पर भी उन्हें भरोसा है. वहीं, 40 साल से ज्यादा समय से श्मशान में काली की पूजा करने वाले बाबा अंजय मित्रा बताते हैं कि श्मशान घाट सबसे पवित्र जगह है. यहां की पूजा में ज्यादा शक्ति होती है. सभी अपनी-अपनी जगह सही हैं. मानने वाले पर निर्भर करता है, लेकिन वैदिक पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है.