हजारीबागः समय बहुत कीमती होता है. जीवनभर की कमाई से भी बीता हुआ एक पल भी वापस नहीं आता. ऐसे में समय का मूल्य समझना बेहद जरूरी है. हजारीबाग के सुदूरवर्ती इचाक प्रखंड के कुरहा गांव की दो छात्राएं जब संक्रमित हो गईं. समय कैसे व्यतीत किया जाए, उसका सदुपयोग कैसे किया जाए, इस पर उन्होंने विचार किया. इस दौरान उन्होंने घर पर पड़े कबाड़ से सुंदर बगीचा बना डाला. आज बगीचा चर्चा का विषय बना हुआ है. जहां टूटी हुई बाल्टी, फूटे हुए मिट्टी के बर्तन, होटल से आए पैकिंग के सामान से दोनों छात्राओं ने ऐसा बगीचा बना डाला जिसे देखकर आंख ठहर जाए.
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आकर्षण का केंद्र बना बगीचा
जूही और ज्योति दो सगी बहनें कोविड से संक्रमित हो गई थीं. संक्रमित होने के बाद पूरा परिवार परेशान हो गया, दोनों बहनें भी काफी परेशान थीं. लेकिन दोनों ने यह ठान लिया कि हम इस संक्रमण से लड़ेंगे और जीतेंगे भी. ऐसा ही हुआ दोनों ने इस महामारी को मात दी और आज स्वस्थ हैं. इस कोरोना काल में उसने अपने घर को कुछ इस तरह सजाया कि आज वह घर चर्चा का विषय बना हुआ है.
घर में मौजूद टूटे-फूटे सामान जैसे बाल्टी, मग, ग्लास, मिट्टी के बर्तन, उपयोग में लाए गए प्लास्टिक के बोतल से उन्होंने अपना बगीचा बना डाला. जूही रांची से फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रही है. संक्रमण और कॉलेज बंद होने के कारण अपने घर में है. वह बताती हैं कि घर पर बैठकर समय बिताने से अच्छा है कि कुछ क्रिएटिव काम किया जाए. इसलिए उन लोगों ने यह सोचा कि कुछ ना कुछ अलग किया जाए. इसी सोच से उन लोगों ने घर के फालतू सामान से अपना बगीचा बनाया है.
पढ़ाई करते हुए की क्रिएटीविटी
छोटी बहन ज्योति रानी यूपीएससी (UPSC) की तैयारी कर रही है. घर पर पूरा किताब से भरा पड़ा है. संक्रमण के दौर में भी पढ़ाई छोड़ा नहीं और खुद का मन लगाने के लिए बगीचा बनाने में जुट गई. घर में अपनी बहन का साथ दिया. ज्योति बताती हैं कि उन लोगों को ऑक्सीजन चाहिए और ऑक्सीजन पौधों से ही मिलेगा. साथ ही साथ जब हम यूपीएससी की तैयारी करते हैं तो वहां क्रिएटिविटी की विशेष जगह है. मुझे लगता है कि पढ़ाई करते करते ही हमारे मन में इस तरह की बातें आई. क्यों ना वैसा सामान जिसका उपयोग ही ना हो उसका सदुपयोग किया जाए और आज उनका बगीचा बनकर तैयार है.
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मां को बेटियों पर गर्व
सूखी पेड़ की टहनियों को उपयोग में लाया गया. वहीं, प्लास्टिक की बोतल ने आज गमले की जगह ले ली है, जिसमें मिट्टी और खाद डाले गए हैं. पौधे आज बेहद सुंदर लग रहे हैं. उनकी मां भी कहती है कि यह मेरी दो बेटी नहीं बल्कि दो बेटा है, जो किसी से कम नहीं है. पढ़ाई में भी अव्वल हैं और घर के काम में भी. उन लोगों ने घर का टूटे हुए सामान से ऐसा बगीचा बनाया है कि जिसमें फूल के साथ-साथ सब्जी भी उगाए जा रहे हैं और घर भी सुंदर लग रहा है. मां कहती है कि जब दोनों संक्रमित हुई थी तो वो लोग काफी भयभीत हो गए थे, लेकिन उनकी दोनों बेटियां कभी भयभीत नहीं हुई. बल्कि बगीचा बनाने में समय बिताया.
चंदन मेहता पेशे से शिक्षक हैं. इन दोनों छात्राओं के मामा ने भी अपनी भगिनी के इस कलाकृति को देखकर फूले नहीं समा रहे हैं. उनका कहना है कि गांव की बेटियां भी शहर के लोगों को मात दे सकती हैं. आज वैसा सामान जिसे हम फेंक देते हैं उससे वह बगीचा बना रही है. इससे और लोगों को भी सीख लेने की जरूरत है. जरूरत नहीं है कि हम महंगे गमले ही खरीदे, घर के टूटे-फूटे सामान को भी हम लोग गमला का रूप दे सकते हैं और अपना घर हरा भरा कर सकते हैं. उनका यह भी कहना है कि संक्रमण के दौरान वह लोग काफी परेशान थे, जहां अस्पताल में एक बेड नहीं था और हमारी दो बच्ची बीमार थी. ऐसे में आत्मबल और सकारात्मक सोच के कारण वो स्वस्थ हुई है. ये दो छात्राएं अन्य लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं कि सकारात्मक सोच रखें, समय का सदुपयोग करें तभी खराब से खराब समय खुशी के साथ बीत जाएगा, फिर वह उजाला आएगा जिसमें सिर्फ और सिर्फ खुशी ही रहेगी.