हजारीबाग: जिले में एक दोस्ती जो एक बेहतरीन मिसाल है. जिसका कनेक्शन जुड़ा है लावारिस लाश और रोटी की वजह से. इनकी दोस्ती धर्म और जात रक्त संबंध से भी ऊपर है. हम बात कर रहे हैं मोहम्मद खालिद और तापस चक्रवर्ती की. मजहब भले ही अलग हैं, लेकिन दिल एक है.
दोस्ती सारे रिश्तों से ऊपर
इन दोनों की दोस्ती की कहानी 1995 से शुरू होती है. जब हजारीबाग में लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करने का बीड़ा मोहब्बत खालिद ने उठाया और उनका साथ दिया तापस चक्रवर्ती ने. तब से दोनों की दोस्ती सारे रिश्तों से ऊपर हो गया.
परवान चढ़ा दोस्ती
तापस चक्रवर्ती कहते हैं कि हम लोगों की दोस्ती की वजह कोई तीसरा है. वह तीसरा है लावारिस लाश. हमने बीड़ा उठाया कि किसी को भी लावारिस घोषित नहीं होने देंगे. उसका अंतिम संस्कार दोनों मिलकर करेंगे. इसी सोच ने हमारी दोस्ती को परवान चढ़ाया. लावारिस लाश के बाद दोनों ने मिलकर रोटी बैंक बनाया. अब दोनों मिलकर शहर के कोने-कोने से रोटी जमा करते हैं और गरीबों को खिलाते हैं.
इनकी दोस्ती की अलग पहचान
तापस चक्रवर्ती रिटायर्ड प्रोफेसर हैं और मोहम्मद खालिद लैब टेक्नीशियन. किसी जमाने में मोहम्मद खालिद तापस चक्रवर्ती के छात्र हुआ करते थे. उस वक्त दोनों के बीच गुरु और छात्र का संबंध था. लेकिन समय बितता गया और समय के उस दौर में दोनों जब मिले तो कारण बना लावारिस लाश. इसी के कारण इनकी दोस्ती पूरे झारखंड में अलग पहचान बनाई है.
ये भी पढ़ें- फ्रेंडशिप डे पर राजधानी में दिखा युवाओं का उत्साह, गिफ्ट और चॉकलेट देकर एक-दूसरे को दी बधाई
दोनों ने मिलकर 'रोटी बैंक' बनाया
लावारिस लाश के बाद दोनों ने मिलकर 'रोटी बैंक' बनाया. अब दोनों मिलकर शहर के कोने-कोने से रोटी दान में जमा करते हैं और गरीबों को रोटी खिलाते हैं. हजारीबाग के कोने-कोने में जाकर वह सड़क के किनारे वैसे लोग जो मानसिक रूप से परेशान हैं, या फिर अस्पताल में इलाज करा रहे हैं और उनके परिजन नहीं हैं, उन्हें रोटी खिलाने का काम करते हैं.
दोस्ती का कोई मजहब नहीं
दोस्ती का कोई मजहब नहीं. क्योंकि दोस्ती खुद में ही इबादत है. कुछ ऐसा ही जज्बा है तापस और खालिद की यारी में. जिनके लिए ईद, होली समान हैं. हम यह कह सकते हैं कि ये हमारे सभ्य समाज के लिए बेहद खास संदेश है.