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सोहराय कलाकृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की कोशिश, पद्मश्री बुलु इमाम के परिवार से बच्चे सीख रहे पेंटिंग - Sohrai Paintings in Hazaribag

सोहराय, झारखंड की आदिम संस्कृति और अपनी कलाकृति है. पर आज ये धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. लेकिन कई लोग इसे संजोने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही इस विरासत को नयी पीढ़ी तक पहुंचाने का काम भी कर रहे हैं.

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सोहराय कलाकृति
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Published : Oct 22, 2021, 4:22 PM IST

Updated : Oct 22, 2021, 6:05 PM IST

हजारीबागः सोहराय झारखंड की अपनी कलाकृति है, जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रही है. ऐसे में हजारीबाग का एक परिवार इस कलाकृति को संजोने की कोशिश कर रहा है. यही नहीं उनकी कोशिश है कि आने वाले पीढ़ियों तक ये पहुंचे.

इसे भी पढ़ें- झारखंड के सोहराय कला को मिलेगी खास पहचान, पद्मश्री बुलू इमाम की कोशिशों को डाक विभाग ने दिया आयाम

भारत सभ्यता और संस्कृति का देश है. जिसने पूरे विश्व को अपने विरासत से अलग पहचान दिया है. ऐसे में विश्व के तमाम ऐसे देश हैं जो हमारे देश पहुंचकर यहां की सभ्यता संस्कृति के बारे में जानकारी दिया और फिर अपने देश में जाकर बताया. इन्ही संस्कृति में एक है सोहराय. सोहराय कला जो पहले गांव की दीवारों पर देखने को मिलती थी. लोग मिट्टी से कलाकृति अपने दीवारों पर बनाते थे. लेकिन धीरे-धीरे हमारे गांव के लोग पाश्चात्य सभ्यता की ओर बढ़ते चले गए और इस कलाकृति का रंग धुंधला होता गया.

देखें पूरी खबर

हजारीबाग का पद्मश्री बुलु इमाम ने इस सभ्यता और संस्कृति को पूरे विश्व में पहचान दी. बाद में उनके बेटे और बहू ने इस संस्कृति को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया. बहू ने सोहराय कला महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड की स्थापना की और धीरे-धीरे यह संस्कृति अब अपने पुराने अस्तित्व में पहुंच रहा है. महत्वपूर्ण यह है कि कलाकृति एक पीढ़ी से यह दूसरी पीढ़ी तक पहुंचे. ऐसे में अलका इमाम अब छात्र छात्राओं को इस कलाकृति के बारे में बता रहे हैं. यही नहीं उसे कैसे उकेरा जाए पन्नों पर दीवारों पर इसकी जानकारी दे रहे हैं.

Padmashree Bulu Imam family preserving Sohrai artwork in Hazaribag
पेंटिग सीखते बच्चे

इस बाबत वर्कशॉप का भी आयोजन किया गया है. जहां स्कूल के छात्र-छात्राएं पहुंचकर इसे समझ रहे हैं. यही नहीं एमबीए किए हुए छात्र भी अब इसे समझने की कोशिश कर रहा है कि विश्व पटल पर इसे एक अलग पहचान दिया जा सके, जिससे रोजगार की संभावना भी खुले. अलका इमाम ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में कहा कि दुख होता है कि हमारी संस्कृति और कला के साथ खिलवाड़ हो रहा है.

इसे भी पढ़ें- कश्मीर से कन्याकुमारी तक पहुंच चुकी है मधुबनी और सोहराय पेंटिग, व्यवसाय और आत्मनिर्भरता के खुल रहे रास्ते

सोहराय कला खुशी का प्रतीक है. खासकर दीपावली के समय गांव में घर की सफाई करने के बाद दीवारों पर इसे बनाया जाता है. जिसमें अनाज, पशु, पक्षी को दर्शाया जाता है. यह हमारी संस्कृति का परिचायक है. लेकिन वर्तमान समय में लोग इसे भूलते जा रहे हैं. गांव में भी अब बहुत कम ही यह कलाकृति दिखती है. इस कारण हमने सोचा कि क्यों ना नई पीढ़ी को इस से रूबरू कराया जाए. इसे देखते हुए हम लोगों ने ट्रेनिंग शुरू की है, जिसमें कोई भी व्यक्ति आकर जानकारी ले सकता है.

Padmashree Bulu Imam family preserving Sohrai artwork in Hazaribag
नई पीढ़ी तक पहुंच रही सोहराय पेंटिंग
छात्र-छात्राएं बताते हैं कि हमें बेहद खुशी हो रहा है यह कलाकृति देखकर. खासियत यह है कि सोहराय हम लोगों को प्रकृति से जोड़ता है. जिसमें लाल और दूधिया मिट्टी की मदद से हम लोग पेंटिंग करते हैं. हम यहां से सीखकर दूसरों को बताएंगे. अपने घरों की दीवारों पर बनाएंगे. यही नहीं एमबीए के छात्र कहते है कि अब हम इसे बनाकर ऑनलाइन मार्केटिंग करेंगे ताकि इसकी सुंदरता विदेशों तक जाए.

वैसे तो पद्मश्री बुलु इमाम ने गांव की इस कलाकृति को बाहर निकाल कर शहर तक लाया. इसके बाद कई ऐसे देश हैं जहां आर्ट गैलरी में भी इसे जगह मिली. हाल में फ्रांस की आर्ट गैलरी में यह कलाकृति झारखंड की शोभा बढ़ा रही है. यही नहीं हजारीबाग के रेलवे स्टेशन में भी इस कलाकृति को उकेरा गया है. मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस रेलवे स्टेशन का जिक्र किया है. ऐसे में निसंदेह जरूरत है धीरे-धीरे इस कलाकृति के बारे में लोगों को बताना समझाना ताकि फिर से अपनी खूबसूरती के साथ नजर आए.

हजारीबागः सोहराय झारखंड की अपनी कलाकृति है, जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रही है. ऐसे में हजारीबाग का एक परिवार इस कलाकृति को संजोने की कोशिश कर रहा है. यही नहीं उनकी कोशिश है कि आने वाले पीढ़ियों तक ये पहुंचे.

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भारत सभ्यता और संस्कृति का देश है. जिसने पूरे विश्व को अपने विरासत से अलग पहचान दिया है. ऐसे में विश्व के तमाम ऐसे देश हैं जो हमारे देश पहुंचकर यहां की सभ्यता संस्कृति के बारे में जानकारी दिया और फिर अपने देश में जाकर बताया. इन्ही संस्कृति में एक है सोहराय. सोहराय कला जो पहले गांव की दीवारों पर देखने को मिलती थी. लोग मिट्टी से कलाकृति अपने दीवारों पर बनाते थे. लेकिन धीरे-धीरे हमारे गांव के लोग पाश्चात्य सभ्यता की ओर बढ़ते चले गए और इस कलाकृति का रंग धुंधला होता गया.

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हजारीबाग का पद्मश्री बुलु इमाम ने इस सभ्यता और संस्कृति को पूरे विश्व में पहचान दी. बाद में उनके बेटे और बहू ने इस संस्कृति को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया. बहू ने सोहराय कला महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड की स्थापना की और धीरे-धीरे यह संस्कृति अब अपने पुराने अस्तित्व में पहुंच रहा है. महत्वपूर्ण यह है कि कलाकृति एक पीढ़ी से यह दूसरी पीढ़ी तक पहुंचे. ऐसे में अलका इमाम अब छात्र छात्राओं को इस कलाकृति के बारे में बता रहे हैं. यही नहीं उसे कैसे उकेरा जाए पन्नों पर दीवारों पर इसकी जानकारी दे रहे हैं.

Padmashree Bulu Imam family preserving Sohrai artwork in Hazaribag
पेंटिग सीखते बच्चे

इस बाबत वर्कशॉप का भी आयोजन किया गया है. जहां स्कूल के छात्र-छात्राएं पहुंचकर इसे समझ रहे हैं. यही नहीं एमबीए किए हुए छात्र भी अब इसे समझने की कोशिश कर रहा है कि विश्व पटल पर इसे एक अलग पहचान दिया जा सके, जिससे रोजगार की संभावना भी खुले. अलका इमाम ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में कहा कि दुख होता है कि हमारी संस्कृति और कला के साथ खिलवाड़ हो रहा है.

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सोहराय कला खुशी का प्रतीक है. खासकर दीपावली के समय गांव में घर की सफाई करने के बाद दीवारों पर इसे बनाया जाता है. जिसमें अनाज, पशु, पक्षी को दर्शाया जाता है. यह हमारी संस्कृति का परिचायक है. लेकिन वर्तमान समय में लोग इसे भूलते जा रहे हैं. गांव में भी अब बहुत कम ही यह कलाकृति दिखती है. इस कारण हमने सोचा कि क्यों ना नई पीढ़ी को इस से रूबरू कराया जाए. इसे देखते हुए हम लोगों ने ट्रेनिंग शुरू की है, जिसमें कोई भी व्यक्ति आकर जानकारी ले सकता है.

Padmashree Bulu Imam family preserving Sohrai artwork in Hazaribag
नई पीढ़ी तक पहुंच रही सोहराय पेंटिंग
छात्र-छात्राएं बताते हैं कि हमें बेहद खुशी हो रहा है यह कलाकृति देखकर. खासियत यह है कि सोहराय हम लोगों को प्रकृति से जोड़ता है. जिसमें लाल और दूधिया मिट्टी की मदद से हम लोग पेंटिंग करते हैं. हम यहां से सीखकर दूसरों को बताएंगे. अपने घरों की दीवारों पर बनाएंगे. यही नहीं एमबीए के छात्र कहते है कि अब हम इसे बनाकर ऑनलाइन मार्केटिंग करेंगे ताकि इसकी सुंदरता विदेशों तक जाए.

वैसे तो पद्मश्री बुलु इमाम ने गांव की इस कलाकृति को बाहर निकाल कर शहर तक लाया. इसके बाद कई ऐसे देश हैं जहां आर्ट गैलरी में भी इसे जगह मिली. हाल में फ्रांस की आर्ट गैलरी में यह कलाकृति झारखंड की शोभा बढ़ा रही है. यही नहीं हजारीबाग के रेलवे स्टेशन में भी इस कलाकृति को उकेरा गया है. मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस रेलवे स्टेशन का जिक्र किया है. ऐसे में निसंदेह जरूरत है धीरे-धीरे इस कलाकृति के बारे में लोगों को बताना समझाना ताकि फिर से अपनी खूबसूरती के साथ नजर आए.

Last Updated : Oct 22, 2021, 6:05 PM IST
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