हजारीबाग: ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें नारी ने अपना परचम ना लहराया हो, ऐसा कोई काम नहीं जो नारी ने कर ना दिखाया हो. ईटीवी भारत आपको कुछ ऐसी महिलाओं से मिलाने जा रहा है जो देश के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए 100 टन भार वाले ट्रक की ड्राइवर हैं. जो महिलाएं राजधानी रांची में कभी पिंक ऑटो चलाया करती थी आज वो कोल माइंस मे हॉलपैक ड्राइवर (Women Haulpak Drivers) बन गई है. इनके सपने को भारत की मिनी रत्न कंपनी एनटीपीसी ने साकार किया है.
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अब तक पुरुष ही करते थे यह काम: हजारीबाग के बड़कागांव प्रखंड में एनटीपीसी का पकरी बरवाडीह कोल माइंस है. यहां से निकला कोयला एनटीपीसी के विभिन्न पावर संयंत्रों में भेजा जाता है. देश की 31% बिजली बनाने वाली महारत्न कंपनी ने एनटीपीसी को झारखंड में अपने संयंत्रों में कोयले के लिए पहला कोल माइनिंग क्षेत्र दिया गया. पिछले 4 सालों से यहां कोयला उत्खनन चल रहा है. कोयला उत्खनन कार्य में महिलाएं भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं. कोल उत्खनन के बाद माइंस से कोयला बाहर निकालकर डंप करने के लिए 11 महिलाएं मेहनत कर रही है. ये वो मशीनें चला रही हैं जो अब तक केवल पुरुष ही चलाया करते थे. उत्खनन कार्य में कोयले और ओबी की ढुलाई में इस्तेमाल होने वाले इस विशालकाय मशीन का नाम है हॉलपैक है. इनकी लोडिंग क्षमता 100 टन से लेकर 240 टन तक होती है. महिलाएं 100 टन भार वाले हॉलपैक मशीनों को बखूबी चलाती हैं. इसके लिए उन्हें जमशेदपुर में ट्रेनिंग भी दी गई.
महिला सशक्तिकरण बना आधार: विशालकाय गाड़ी चलाने वाली यह महिलाएं रांची में पिंक ऑटो चलाती थी. महत्वपूर्ण बात यह है कि इन महिलाओं में अधिकांश महिलाएं आदिवासी समाज की हैं. राजधानी रांची की सड़कों पर पिंक ऑटो दौड़ाती इन महिलाओं को देखकर एनटीपीसी के पदाधिकारियों ने योजना बनाकर इन्हें माइनिंग क्षेत्र में काम करने के लिए प्रेरित किया जाए. इसके पीछे भी महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) को आधार बनाया गया. एनटीपीसी के कार्यकारी निदेशक बताते हैं कि महिलाएं ऑटो चला कर आत्मनर्भर थी. लेकिन हमारे माइंस में हॉलपैक चला कर उनका आत्मविश्वास बढ़ा है.
देश का पहला माइंस जहां हैं महिलाएं हॉलपैक ड्राइवर: पकरी बरवाडीह कोल माइंस देश का ऐसा पहला माइंस है जहां महिलाएं हॉलपैक ड्राइवर (Women Haulpak Drivers) हैं. एनटीपीसी की योजना इनकी संख्या बढ़ाने की है. कुछ दिनों में यहां ऐसे ड्राइवरों की दूसरी खेप भी आ जाएगी जो अभी जमशेदपुर में ट्रेनिंग कर रहीं हैं. जिस पदाधिकारी के अंतर्गत यह महिलाएं काम कर रही हैं उनका भी कहना है कि इनकी कार्य क्षमता को देखकर पुरुष और महिला में अंतर करना बेइमानी होगा. महिला बहुत ही सावधानीपूर्वक और मेहनत के साथ काम कर रही हैं.
मेहनत लाई रंग: हॉलपैक चलाने वाली महिलाओं का उत्साह भी कम नहीं है. उन्होंने कहा कि 'हम लोगों ने इतनी विशाल गाड़ी कभी देखी भी नहीं थी. गाड़ी क्या इसकी टायर भी हम लोगों के लंबाई से दोगुनी है. उन्होंने कहा इन गाड़ियों का चलाने का सपना तक हमने नहीं देखा था, लेकिन पदाधिकारियों के दिशा निर्देश पर हमने मेहनत की, जो आज रंग ला रही है. हमें इस बात की बेहद खुशी है कि हम देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं.' महिलाओं ने ये भी कहा कि इस काम के लिए अच्छा वेतन भी मिलता है, जिससे घर परिवार चलाना आसान हो पा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि काम के बाद घर जाने पर लोग हमें सम्मान की नजरों से देखते हैं.
हाथ में मेहंदी और घर की चारदीवारी में बंद रहने वाली महिलाओं ने पहले ऑटो चलाया. अब रांची से बड़कागांव पहुंचकर पकरी बरवाडीह कोल माइंस में हॉलपैक मशीन चला रही हैं. जो यह बताता है कि अगर महिलाओं में वो शक्ति है जो असंभव काम को भी संभव कर सकती हैं. बस जरूरत है उचित मार्गदर्शन की.