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आर्थिक मंदी से गुजर रहा हजारीबाग का पिंजरापोल गौशाला, 50 लाख रुपया प्रशासन पर है बकाया

झारखंड में सबसे पुराने गौशाला में हजारीबाग के जुलजुल स्थित पिंजरापोल गौशाला का भी नाम है. यह गौशाला इन दिनों आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है, साथ ही साथ यहां क्षमता से अधिक गाय रखी जा रही है जिसके कारण अब गौशाला चलाना मुश्किल हो रहा है.

Hazaribagh Pinjarapol Gaushala undergoing economic recession
पिंजरापोल गौशाला
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Published : Mar 13, 2020, 9:14 PM IST

हजारीबागः जिले में स्थित पिंजरापोल गौशाला आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है. जहां जिला प्रशासन का 50 लाख रुपया लगभग बकाया हो गया है. जिसके कारण गौशाला चलाना बेहद ही मुश्किल हो गया है. गायों को पर्याप्त पौस्टिक आहार भी नहीं मिल पा रहा है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-अब रांची और जमशेदपुर में हो सकेगी कोरोना की जांच, RIMS और MGM में तैयारियां पूरी

झारखंड गौ सेवा आयोग के नियम अनुसार सरकार की ओर से 50 रुपए प्रतिदिन गाय पर खर्च किया जाना है. लेकिन 2018 से यहां पैसा का भुगतान नहीं किया गया है. ऐसे में सोसायटी के सदस्य आपस में चंदा कर गौशाला चलाने को विवश हैं. पिंजरापोल गौशाला का संचालन शहर के व्यापारी, गौ रक्षक और समाजसेवी कर रहे हैं.

गौशाला में अधिकतर गाय बूढ़ी हो गई हैं. इससे दूध उत्पादन भी नहीं हो रहा हैं. जिला प्रशासन की ओर से जप्त मवेशियों को यहीं रखा जाता है. हजारीबाग जिला के किसी भी क्षेत्र से गोवंश जप्त किया जाता है तो इसी सोसाइटी में रखा जाता है. लेकिन जिला प्रशासन जप्त मवेशियों के खाने के लिए पैसा नहीं दे पा रही है. इस कारण अब गौशाला के सदस्य प्रशासन से पैसा की मांग कर रहे हैं. साथ ही साथ आम जनता से भी सहयोग की मांग कर रहे हैं.

वहीं, गौशाला के अध्यक्ष सुमेर सेठी ने बताया कि हजारीबाग के जनप्रतिनिधि भी गौशाला के प्रति विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं और ना ही जिला प्रशासन. उन्होंने सरकार से भी मांग की है कि जो भी बकाया पैसा है वह भुगतान करें ताकि गायों को आहार मिल सके. इस वक्त लगभग 700 गाय गौशाला में है जबकि गौशाला में 350 का ही रखने की क्षमता है.

जिला प्रशासन जिस उद्देश्य से गोवंश जप्त कर रही है, लेकिन वह उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है. गाय को संपूर्ण आहार भी नहीं मिल पा रहा है. जरूरत है प्रशासन को सजग होने की ताकि गोवंश को उचित भोजन मिल सके.

हजारीबागः जिले में स्थित पिंजरापोल गौशाला आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है. जहां जिला प्रशासन का 50 लाख रुपया लगभग बकाया हो गया है. जिसके कारण गौशाला चलाना बेहद ही मुश्किल हो गया है. गायों को पर्याप्त पौस्टिक आहार भी नहीं मिल पा रहा है.

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झारखंड गौ सेवा आयोग के नियम अनुसार सरकार की ओर से 50 रुपए प्रतिदिन गाय पर खर्च किया जाना है. लेकिन 2018 से यहां पैसा का भुगतान नहीं किया गया है. ऐसे में सोसायटी के सदस्य आपस में चंदा कर गौशाला चलाने को विवश हैं. पिंजरापोल गौशाला का संचालन शहर के व्यापारी, गौ रक्षक और समाजसेवी कर रहे हैं.

गौशाला में अधिकतर गाय बूढ़ी हो गई हैं. इससे दूध उत्पादन भी नहीं हो रहा हैं. जिला प्रशासन की ओर से जप्त मवेशियों को यहीं रखा जाता है. हजारीबाग जिला के किसी भी क्षेत्र से गोवंश जप्त किया जाता है तो इसी सोसाइटी में रखा जाता है. लेकिन जिला प्रशासन जप्त मवेशियों के खाने के लिए पैसा नहीं दे पा रही है. इस कारण अब गौशाला के सदस्य प्रशासन से पैसा की मांग कर रहे हैं. साथ ही साथ आम जनता से भी सहयोग की मांग कर रहे हैं.

वहीं, गौशाला के अध्यक्ष सुमेर सेठी ने बताया कि हजारीबाग के जनप्रतिनिधि भी गौशाला के प्रति विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं और ना ही जिला प्रशासन. उन्होंने सरकार से भी मांग की है कि जो भी बकाया पैसा है वह भुगतान करें ताकि गायों को आहार मिल सके. इस वक्त लगभग 700 गाय गौशाला में है जबकि गौशाला में 350 का ही रखने की क्षमता है.

जिला प्रशासन जिस उद्देश्य से गोवंश जप्त कर रही है, लेकिन वह उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है. गाय को संपूर्ण आहार भी नहीं मिल पा रहा है. जरूरत है प्रशासन को सजग होने की ताकि गोवंश को उचित भोजन मिल सके.

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