हजारीबाग: वैसे तो आत्मनिर्भर होने की तो कई दास्तां हम लोगों ने सुनी है लेकिन हजारीबाग के सुदूरवर्ती कटकमदाग प्रखंड के अडर्रा गांव में वहां की किशोरी खुद को आत्मनिर्भर करने की कोशिश कर रही है. जिससे अपनी पढ़ाई-लिखाई का खर्चा निकाल सके और जब घर गृहस्थी हो तो वहां भी अपने परिवार वालों की मदद कर सके.
छात्राओं ने किशोरी निकेतन का किया गठन
बेटी घर परिवार और समाज की शोभा होती है, जो दूसरों को जीवन जीने का शैली भी सिखाती है. हजारीबाग के कटकमदाग प्रखंड के सुदूरवर्ती अडर्रा गांव की 11 छात्राओं की समूह ने आज यह बताया है कि हमें दूरदर्शी होना चाहिए. 11 छात्राओं ने मां सरस्वती किशोरी निकेतन का गठन किया है. जो गांव में ही बटन मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ले रही है ताकि उन पैसों से वो पढ़ाई लिखाई कर सके. यही नहीं जब घर गृहस्थी की दुनिया में जाए तो वहां भी जाकर अपने परिवार वालों को मदद कर सके. छात्राएं कहती हैं कि हम लोगों को काफी अच्छा भी लग रहा है, लॉकडाउन में कॉलेज बंद था, ऐसे में हम क्या करते तो हम लोगों ने सोचा क्यों ना ही सब दोस्त लोग मिलकर मशरूम की खेती सीखें और फिर उसे बेचें ताकि अपने पैरों पर खड़ा हो सके.
बटन मशरूम है पौष्टिक
मां सरस्वती किशोरी निकेतन की प्रमुख बताती हैं कि लोग कभी मशरूम का स्वाद भी नहीं चखे थे और ना ही गांव के लोग इसके बारे में जानते थे. जब इन लोगों ने इसके बारे में जानकारी इकट्ठा किया तो अच्छा लगा. आज यह अपना उपजाया हुआ मशरूम पहले खाया, उसके बारे में जानकारी हासिल किया और अब बेच रहे हैं. यह मशरूम स्वादिष्ट भी है और पौष्टिक भी. शाकाहारी व्यक्ति अगर इसका सेवन करें तो उन्हें भरपूर प्रोटीन मिलेगा ताकि वह स्वस्थ रह सकें.
बटन मशरूम का उत्पादन कर हैं खुश
ट्रेनिंग देने वाली महिला बताती है कि पहले हमने भी इसे उपजाने की जानकारी लिया और फिर छात्राओं का समूह बनाकर उन्हें जानकारी दिया. अब वो इसका उत्पादन कर रही है और बेहद खुश है. उनका कहना है कि अगर इस तरह का समूह हर गांव में बन जाए तो बेटियां पूरा घर संभाल सकती हैं.
गांव की महिला बताती हैं कि हम दूसरे गांव से शादी के बाद अडर्रा गांव आए हैं. अब यहां की बेटियों को देख रहे हैं कि वह अपने पैर पर खड़ी हो रही हैं और पैसा कमा रही है. हर रोज शहर से व्यापारी खरीदने के लिए मशरूम आ रहे हैं. अब उनके पास पैसा भी है और वह अपना व्यापार भी धीरे-धीरे आगे बढ़ा रही हैं. अब हमें भी लगता है कि इनसे सीखना चाहिए और इनके तरह अपने पैर पर खड़ा होने के लिए कोशिश करना चाहिए ताकि अपने परिवार को मदद कर सके.
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छात्राओं से सीख लेने की जरूरत
वहीं गांव की एक अन्य महिला बताती हैं कि हम लोग मशरूम कभी खाए भी नहीं थे और ना कभी देखे थे. अब हमारी गांव की बेटियों ने मशरूम उत्पादन कर हमें खिलाया भी और उनसे आमदनी भी अच्छी हो रही है. ऐसे में इनसे हमें सीख लेने की जरूरत है.