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जहां कभी लगता था नक्सलियों का जन अदालत, आज हो रही है फूलों की खेती, जरबेरा ने बदली सलगा गांव की तस्वीर

कभी नक्सलियों के आंतक से थर्राना वाले हजारीबाग के सलगा गांव में फूलों की खेती हो रही है. किसानों की कड़ी मेहनत से उगाए जा रहे जरबेरा का फूल यहां खुशहाली का संदेश दे रहा है.

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सलगा में फूलों की खेती
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Published : Apr 4, 2022, 12:53 PM IST

Updated : Apr 4, 2022, 2:23 PM IST

हजारीबाग के सीमांत क्षेत्र सलगा जहां कभी नक्सलियों का हुकूमत था. आए दिन नक्सली वारदात होते थे. नक्सलियों के जन अदालत लगााए जाते थे वहीं सल्गा आज फिजाओं में फूलों की खुशबू बिखेर रहा है. पुलिसिंग और आम लोगों की जागरूकता ने इस गांव की सूरत ही बदल दी है. अब यहां गोलियों की आवाज के बजाय किसानों की बोली सुनाई देती है. किसानों की कड़ी मेहनत से उगाए जा रहे जरबेरा का फूल खुशहाली का संदेश दे रहा है.

ये भी पढ़ें:- Naxalites in Hazaribag: नक्सलियों ने बम से उड़ाया मोबाइल टावर का कंट्रोल रूम, स्कूल में फहराया काला झंडा

सलगा में फूलों की खेती: हजारीबाग के सलगा में फूलों की खेती से यहां का माहौल पूरी तरह बदल गया है. नक्सली गतिविधि की जगह अब इस इलाके में व्यापारियों की आवाजाही बढ़ गई है. इससे पहले ये अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता था. आलम यह था कि यहां रहने वाले लोग पलायन करके दूसरे राज्यों में काम करने चले गए. लेकिन अब किसान अपनी जमीन पर लौटने लगे हैं. ऐसे ही एक किसान हैं गोपाल प्रसाद महतो जो घनघोर जंगलों के बीच फूलों की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना काल में जब शहर में व्यापार ठप हो गया तब वे अपनी जमीन पर लौटे. यहां आने पर पता चला कि अब यहां लाल आतंक नहीं है. इसलिए यहां हमलोगों ने फूलों की खेती शुरू कर दिया.

देखें पूरी खबर

फूलों की खेती से बदली किस्मत: किसान गोपाल प्रसाद मेहता के बेटे सोनू कुमार बताते हैं कि वह अपने दादा परदादा से अक्सर सुना करते थे कि हम लोगों के जमीन पर नक्सली आते हैं. जन अदालत यहां लगा करता था. जो ग्रामीण उनकी बात नहीं सुनते थे उनके साथ मारपीट किया जाता था. मेरे पिता पलायन कर महानगर काम की तलाश में चले गए थे. लॉकडाउन लगा तो अपने गांव लौटे और इसके बाद हमारे घर में पैसा कमाने के लिए कोई विकल्प नहीं बचा था. हम लोग अपनी जमीन पर आए और यहां की स्थिति के बारे में जानकारी लिया. मैं और मेरे पिता घनघोर जंगल के बीच में खेती कर रहे हैं. आर्थिक रूप से संपन्न भी हो रहे हैं.

Floriculture in Salga
हजारीबाग में जरबेरा फूल की खेती

ये भी पढ़ें:- हजारीबाग को नक्सल फ्री बनाने में जुटी है पुलिस, लोगों से बहकावे नहीं आने की कर रही अपील

पोस्ता की खेती के लिए था बदनाम
स्थानीय ग्रामीण भी बताते हैं कि हजारीबाग का सलगा गांव नक्सल के लिए ही नहीं बल्कि पोस्ता की खेती के लिए भी जाना जाता था. नक्सली ग्रामीणों से पोस्ता की खेती करवाया करते थे लेकिन अब यहां पोस्ता की खेती नहीं बल्कि फूलों की खेती हो रही है. क्षेत्र में परिवर्तन आया है. जो पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त अभियान से ही संभव हो पाया है. केरेडारी का यह गांव पूरे राज्य वासियों को पैगाम दे रहा है.

नक्सलियों का सफाया: हजारीबाग एसपी मनोज रतन चौथे भी बताते हैं कि पुलिस और ग्रामीणों के सहयोग से ही नक्सलियों का सफाया हो पाया है. नक्सलियों का सफाया होने के कारण गांव के लोग जो पलायन करके बाहर लेकर चले गए थे. अब वे अपना व्यापार गांव में ही शुरू कर रहे हैं. जिसका जीता जागता उदाहरण केरेडारी का सल्गा गांव है. उन्होंने ग्रामीणों से अपील भी किया है कि आप लोगों को किसी भी तरह की समस्या हो तो आकर मुझसे मिल सकते हैं. मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि आपका समस्या का समाधान भी होगा.

हजारीबाग के सीमांत क्षेत्र सलगा जहां कभी नक्सलियों का हुकूमत था. आए दिन नक्सली वारदात होते थे. नक्सलियों के जन अदालत लगााए जाते थे वहीं सल्गा आज फिजाओं में फूलों की खुशबू बिखेर रहा है. पुलिसिंग और आम लोगों की जागरूकता ने इस गांव की सूरत ही बदल दी है. अब यहां गोलियों की आवाज के बजाय किसानों की बोली सुनाई देती है. किसानों की कड़ी मेहनत से उगाए जा रहे जरबेरा का फूल खुशहाली का संदेश दे रहा है.

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सलगा में फूलों की खेती: हजारीबाग के सलगा में फूलों की खेती से यहां का माहौल पूरी तरह बदल गया है. नक्सली गतिविधि की जगह अब इस इलाके में व्यापारियों की आवाजाही बढ़ गई है. इससे पहले ये अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता था. आलम यह था कि यहां रहने वाले लोग पलायन करके दूसरे राज्यों में काम करने चले गए. लेकिन अब किसान अपनी जमीन पर लौटने लगे हैं. ऐसे ही एक किसान हैं गोपाल प्रसाद महतो जो घनघोर जंगलों के बीच फूलों की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना काल में जब शहर में व्यापार ठप हो गया तब वे अपनी जमीन पर लौटे. यहां आने पर पता चला कि अब यहां लाल आतंक नहीं है. इसलिए यहां हमलोगों ने फूलों की खेती शुरू कर दिया.

देखें पूरी खबर

फूलों की खेती से बदली किस्मत: किसान गोपाल प्रसाद मेहता के बेटे सोनू कुमार बताते हैं कि वह अपने दादा परदादा से अक्सर सुना करते थे कि हम लोगों के जमीन पर नक्सली आते हैं. जन अदालत यहां लगा करता था. जो ग्रामीण उनकी बात नहीं सुनते थे उनके साथ मारपीट किया जाता था. मेरे पिता पलायन कर महानगर काम की तलाश में चले गए थे. लॉकडाउन लगा तो अपने गांव लौटे और इसके बाद हमारे घर में पैसा कमाने के लिए कोई विकल्प नहीं बचा था. हम लोग अपनी जमीन पर आए और यहां की स्थिति के बारे में जानकारी लिया. मैं और मेरे पिता घनघोर जंगल के बीच में खेती कर रहे हैं. आर्थिक रूप से संपन्न भी हो रहे हैं.

Floriculture in Salga
हजारीबाग में जरबेरा फूल की खेती

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पोस्ता की खेती के लिए था बदनाम
स्थानीय ग्रामीण भी बताते हैं कि हजारीबाग का सलगा गांव नक्सल के लिए ही नहीं बल्कि पोस्ता की खेती के लिए भी जाना जाता था. नक्सली ग्रामीणों से पोस्ता की खेती करवाया करते थे लेकिन अब यहां पोस्ता की खेती नहीं बल्कि फूलों की खेती हो रही है. क्षेत्र में परिवर्तन आया है. जो पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त अभियान से ही संभव हो पाया है. केरेडारी का यह गांव पूरे राज्य वासियों को पैगाम दे रहा है.

नक्सलियों का सफाया: हजारीबाग एसपी मनोज रतन चौथे भी बताते हैं कि पुलिस और ग्रामीणों के सहयोग से ही नक्सलियों का सफाया हो पाया है. नक्सलियों का सफाया होने के कारण गांव के लोग जो पलायन करके बाहर लेकर चले गए थे. अब वे अपना व्यापार गांव में ही शुरू कर रहे हैं. जिसका जीता जागता उदाहरण केरेडारी का सल्गा गांव है. उन्होंने ग्रामीणों से अपील भी किया है कि आप लोगों को किसी भी तरह की समस्या हो तो आकर मुझसे मिल सकते हैं. मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि आपका समस्या का समाधान भी होगा.

Last Updated : Apr 4, 2022, 2:23 PM IST
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