हजारीबाग: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे हैं. समय-समय पर उन्हें लाभ भी मिल रहा है, लेकिन यह लाभ उनके किसी काम का नहीं. किसान अपनी मेहनत से फसल की पैदावार तो कर रहे हैं, लेकिन खरीदार ही नहीं पहुंच रहे हैं. आलम यह है कि धान की बंपर खेती होने के बावजूद उनके अनाज उनके घर पर ही हैं. दूसरी ओर टमाटर की खेती के लिए हजारीबाग पूरे राज्य भर में जाना जाता है, लेकिन टमाटर भी खेतों में फेंक दिया जा रहा है. ऐसे में आमदनी दोगुनी करने की प्रधानमंत्री की सोच कारगर साबित नहीं हो रही है.
किसान को मूलधन जितनी भी आमदनी नहीं
केंद्र और राज्य सरकार दोनों की चाहत है कि किसान की आमदनी दोगुनी हो, लेकिन हजारीबाग में किसान अपना मूलधन भी वापस नहीं कर पा रहा है. ऐसे में मायूसी चेहरे में साफ तौर से देखने को मिल रही है. हजारीबाग समेत पूरे झारखंड में धान की बंपर खेती हुई है. धान खरीदारी के लिए पैक्स का गठन भी किया गया. पैक्स गठन में विलंब भी हुआ लेकिन यह सोचा गया कि सरकार तीव्र गति से धान खरीदी करेगी और फिर उसका मूल्य भी किसानों को मिलेगा. किसान जब धान पैक्स को देंगे तो उन्हें आधा पैसा मिलेगा और फिर आधे पैसा का भुगतान बाद में होगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र जहां किसान पैक्स तक नहीं पहुंच रहे हैं वहां बिचौलिए पहुंच रहे हैं. औने पौने दाम में धान की खरीदारी कर रहे हैं. किसान कहते हैं कि हमारे पास मजबूरी है. हम उधार लेकर खेती करते हैं और जब महाजन को पैसा देना होगा तो हम इंतजार भी नहीं कर सकते हैं. इस कारण हमें जो भी मुल्य मिलता है उसमें हम बिचौलियों को देने को मजबूर है.
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कमोबेश यही हाल सब्जी उत्पादन करने वाले किसानों का है. हजारीबाग जिला पूरे राज्य भर में टमाटर की खेती के लिए जाना जाता है. जहां किसान बड़े भूखंड को किराए में लेकर खेती करते हैं. इस बार टमाटर की भी अच्छी खेती हुई. प्रारंभिक दौर में टमाटर 30 से 32 रुपए किलो किसानों ने अपने खेत से बेचे, लेकिन अब टमाटर के खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं.
किसानों का कहना है कि टमाटर अधिक दिन तक खेत में नहीं छोड़ सकते हैं. इस कारण मजदूर लगाकर तोड़ लेते हैं, लेकिन हमें अब खरीददार ही नहीं मिल रहा है. आलम यह है कि 2 रुपए प्रति किलो की दर से किसान टमाटर बेचने को मजबूर है. अगर टमाटर नहीं बिकता है तो इसे खेत पर ही फेंकना पड़ता है जो जानवरों का चारा बन जाता है. किसानों का यह भी कहना है कि वे व्यापारियों को खेत में बहुत ही मिन्नत करके बुलाते हैं. वे आते भी हैं और सस्ते दाम में खरीदते हैं फिर इस टमाटर का सॉस कंपनी को बेच देते हैं. सॉस बनाकर व्यापारी तो कमा लेते हैं लेकिन हम किसानों का मूलधन भी वापस नहीं लौट पाता है. किसानों ने बताया कि इस बार उन्होंने 8 एकड़ जमीन में 4 किसानों ने मिलकर टमाटर की खेती की. आलम यह है कि किसान अब सड़क पर आ गए हैं.
सांसद ने पल्ला झाड़ा
हजारीबाग के सांसद हमेशा अपने भाषण में यह कहते आए हैं कि हजारीबाग से आलू नहीं चिप्स जाएगा, टमाटर नहीं सॉस जाएगा लेकिन आज तक क्षेत्र में एक टमाटर सॉस की फैक्ट्री भी नहीं लगी. अब उन्होंने इसके लिए राज्य सरकार पर ठीकरा फोड़ा है. उनका कहना है कि रघुवर सरकार के समय किसानों ने फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए कोशिश भी की लेकिन वर्तमान सरकार ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. धान खरीदारी में भी राज्य सरकार बहुत पीछे है जिसके कारण किसानों का हाल बेहाल है. ऐसे में राज्य सरकार को किसानों का आय दोगुनी करने के लिए खरीदारी के लिए भी सोचना चाहिए.
सांसद ने भी अपना पल्ला झाड़ कर राज्य सरकार पर डाल दिया, लेकिन ये किसान क्या करें जो पूरी लगन और मेहनत के साथ खेती तो करते हैं और बंपर उत्पादन भी होता है, लेकिन ऐसा उत्पादन किस बात का जब उसका खरीदार ही नहीं मिले. जरूरत है सरकार को बाजार की व्यवस्था करने की ताकि किसान का पैदा किया हुआ फसल की खरीदारी हो और उनका आए दुगना हो सके. अन्यथा यह सारी योजना किसी काम के नहीं है.