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अनपढ़ महेश का देसी जुगाड़, कबाड़ से कर दिया 'चमत्कार'

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Published : Jul 20, 2019, 1:52 PM IST

Updated : Jul 21, 2019, 1:28 PM IST

हजारीबाग स्थित विष्णुगढ़ के एक किसान ने ऐसा आविष्कार किया है, जो किसानों के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है. इससे ट्रैक्टर और बैलों का प्रयोग कम किया जा सकता है.

डिजाइन इमेज

हजारीबाग: आविष्कार आवश्यकता की जननी होती है, इसे हजारीबाग के महेश करमाली ने सच कर दिखाया है. महेश ने अपनी सोच को धरातल पर उतारकर कम लागत में ऐसा यंत्र बनाया है जो बैल और ट्रैक्टर की जगह ले सकता है. देखिए ये रिपोर्ट

देखें स्पेशल स्टोरी

जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बसा है उच्चाधना गांव जहां पक्की सड़क भी नहीं है और सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली दिखती है. इसी तंग गांव के बीच महेश करमाली ने खेती के लिए अनोखा यंत्र बना लिया है. जो अब ट्रैक्टर या फिर बैल की जगह ले सकता है. महेश करमाली पेशे से दिहाड़ी मजदूर है जिसने अपने काबिलियत और हुनर के जरिए एक ऐसा यंत्र बनाया है जिसका उपयोग खेत जोतने में किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- लालू यादव से मिलने पहुंचे रघुवंश प्रसाद सिंह और शिवानंद तिवारी, विशेष अनुमति पर भोला यादव भी मिले

पैसे के अभाव और गरीबी ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उसके खेत में फसल कैसे उगेगी. चूंकी खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर या बैल की की जरूरत होती है लेकिन पैसे नहीं होने के कारण महेश कारमाली ट्रैक्टर भाड़े पर नहीं ले सकता था और ना ही उसके पास बैल थे. इसे देखते हुए उसने कबाड़ी के सामान से ट्रैक्टर नुमा छोटा सा यंत्र बनाया है. जो कम लागत में बनकर तैयार हो गया है. अब वह इस मशीन के जरिए खेतों को जोत पा रहा है, जिसे बनाने के लिए उसे महज 10 से 12 हजार रूपये खर्च करना पड़ा. पहले उन्होंने 3 हजार रूपये का इंतजाम कर सेकंड हैंड स्कूटर खरीदा और उस स्कूटर से मशीन बना डाला. जिसका नाम उसने 'पावर टिलर' दिया है. जिसके जरिए अब वह अपना खेत जोत रहे हैं और उम्मीद करता है कि इस बार बंपर फसल होगी. जिससे वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर पाएगा.

इसे बनाने के लिए वह 3 दिनों तक अपने घर भी नहीं आया और अपने दोस्त की मदद से वेल्डिंग दुकान पर रात दिन काम करता रहा. यह डीजल से चलता है और खेत जोतने के लिए काफी कम ईंधन का उपयोग होता है. उसका यह भी मानना है कि इससे ट्रैक्टर की तुलना में काफी किफायती दर में खेत जोता जा सकता है.जब वह अपने मशीन लेकर खेत में उतरा और उसके मशीन की चर्चा हर ओर होने लगी. इसे देखकर आस-पास के गांव के लोग भी उसके खेत पर पहुंचे और उसके मशीन को देखकर आश्चर्यचकित हुए.

ये भी पढ़ें- कांग्रेस के आपसी मतभेद का मिलेगा लाभ, विधानसभा चुनाव बाद होगा रघुवर सरकार पार्ट- 2 का आगाज- BJP

महेश करमाली बताते हैं कि इस मशीन के जरिए अब उसकी गरीबी दूर हो जाएगी और वह अच्छे से खेती भी कर पाएगा. तो वहीं समाज के लोगों और ग्रामीणों का कहना है कि उसने यह यह सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके गांव का लड़का ऐसा मशीन बनाएगा जो चर्चा का विषय जाएगा आलम यह है कि अब समाज के लोग उसे सम्मानित करने घर भी आ रहे हैं.
दरअसल महेश करमाली बचपन से ही पूना में रहता था. जहां उसके मां पिता मजदूरी करते थे। इसी दौरान वो एक गैराज में काम भी करता था. गेराज में काम करता था।लेकिन पैसे के अभाव में पढ़ नहीं पाया. लेकिन अपने उस अनुभव से खेत जोतने का मशीन बना लिया है.

हजारीबाग: आविष्कार आवश्यकता की जननी होती है, इसे हजारीबाग के महेश करमाली ने सच कर दिखाया है. महेश ने अपनी सोच को धरातल पर उतारकर कम लागत में ऐसा यंत्र बनाया है जो बैल और ट्रैक्टर की जगह ले सकता है. देखिए ये रिपोर्ट

देखें स्पेशल स्टोरी

जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बसा है उच्चाधना गांव जहां पक्की सड़क भी नहीं है और सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली दिखती है. इसी तंग गांव के बीच महेश करमाली ने खेती के लिए अनोखा यंत्र बना लिया है. जो अब ट्रैक्टर या फिर बैल की जगह ले सकता है. महेश करमाली पेशे से दिहाड़ी मजदूर है जिसने अपने काबिलियत और हुनर के जरिए एक ऐसा यंत्र बनाया है जिसका उपयोग खेत जोतने में किया जा रहा है.

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पैसे के अभाव और गरीबी ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उसके खेत में फसल कैसे उगेगी. चूंकी खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर या बैल की की जरूरत होती है लेकिन पैसे नहीं होने के कारण महेश कारमाली ट्रैक्टर भाड़े पर नहीं ले सकता था और ना ही उसके पास बैल थे. इसे देखते हुए उसने कबाड़ी के सामान से ट्रैक्टर नुमा छोटा सा यंत्र बनाया है. जो कम लागत में बनकर तैयार हो गया है. अब वह इस मशीन के जरिए खेतों को जोत पा रहा है, जिसे बनाने के लिए उसे महज 10 से 12 हजार रूपये खर्च करना पड़ा. पहले उन्होंने 3 हजार रूपये का इंतजाम कर सेकंड हैंड स्कूटर खरीदा और उस स्कूटर से मशीन बना डाला. जिसका नाम उसने 'पावर टिलर' दिया है. जिसके जरिए अब वह अपना खेत जोत रहे हैं और उम्मीद करता है कि इस बार बंपर फसल होगी. जिससे वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर पाएगा.

इसे बनाने के लिए वह 3 दिनों तक अपने घर भी नहीं आया और अपने दोस्त की मदद से वेल्डिंग दुकान पर रात दिन काम करता रहा. यह डीजल से चलता है और खेत जोतने के लिए काफी कम ईंधन का उपयोग होता है. उसका यह भी मानना है कि इससे ट्रैक्टर की तुलना में काफी किफायती दर में खेत जोता जा सकता है.जब वह अपने मशीन लेकर खेत में उतरा और उसके मशीन की चर्चा हर ओर होने लगी. इसे देखकर आस-पास के गांव के लोग भी उसके खेत पर पहुंचे और उसके मशीन को देखकर आश्चर्यचकित हुए.

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महेश करमाली बताते हैं कि इस मशीन के जरिए अब उसकी गरीबी दूर हो जाएगी और वह अच्छे से खेती भी कर पाएगा. तो वहीं समाज के लोगों और ग्रामीणों का कहना है कि उसने यह यह सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके गांव का लड़का ऐसा मशीन बनाएगा जो चर्चा का विषय जाएगा आलम यह है कि अब समाज के लोग उसे सम्मानित करने घर भी आ रहे हैं.
दरअसल महेश करमाली बचपन से ही पूना में रहता था. जहां उसके मां पिता मजदूरी करते थे। इसी दौरान वो एक गैराज में काम भी करता था. गेराज में काम करता था।लेकिन पैसे के अभाव में पढ़ नहीं पाया. लेकिन अपने उस अनुभव से खेत जोतने का मशीन बना लिया है.

Intro:आविष्कार आवश्यकता की जननी होती है। यह कहावत हजारीबाग में चरितार्थ हुआ है तब ही महेश करमाली ने अपने सोच को धरातल पर उतारकर कम लागत में ऐसा यंत्र बनाया है जो बैल और ट्रैक्टर का जगह ले सकता है।

प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती ।सच्ची लगन और इमानदारी से काम करने से प्रतिभा दुनिया के सामने आ जाती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हजारीबाग से सुदूरवर्ती गांव विष्णुगढ प्रखंड के जोबर पंचायत के उच्चाधना गांव के अनपढ़ किसान ने।अपने काबिलियत के जरिए महेश कारमाली ने पूरे किसान के सामने हुनर का लोहा मना दिया है।

कौन है महेश करमाली और क्या किया है उसने देखते हैं ईटीवी भारत के खास रिपोर्ट के जरिए....


Body:हजारीबाग मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर सुदूर जंगल के बीच बसा है उच्चाधना गांव ।जहां पक्की सड़क भी नहीं है और सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली दिखती है। इसी तंग गांव के बीच महेश करमाली ने खेती के लिए अनोखा यंत्र बना लिया है। जो अब ट्रेक्टर या फिर बैल का जगह ले लिया है ।महेश करमाली पेशे से दिहाड़ी मजदूर है। जिसने अपने काबिलियत और हुनर के जरिए एक ऐसा यंत्र बनाया है जिसका उपयोग खेत जोतने मे किया जा रहा है।

पैसे के अभाव और गरीबी ने उसे सोचने को विवश कर दिया कि उसके खेत में फसल कैसे लहराए गा ।चुकी खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर की जरूरत होती है या फिर बैल कि ।लेकिन पैसा नहीं होने के कारण महेश कारमाली ट्रैक्टर भाड़े में नहीं ले सकता था और ना ही उसके पास बैल थे। ऐसे में खेत जोतना एक बड़ी समस्या थी ।इसे देखते हुए उसने कबाड़ी के सामान से ट्रैक्टर नुमा छोटा सा यंत्र बनाया है। जो कम लागत में बनकर तैयार हो गया है और अब वह खेतों में मशीन के जरिए खेत जोत पा रहा है ।जिसे बनाने के लिए उसे महज 10 से ₹12 हजार रूपये खर्च करना पड़ा।जिसने 3 हजार रूपये किसी तरह इंतजाम कर सेकंड हैंड स्कूटर खरीदा और उस स्कूटर से मशीन बना डाला ।जिसका नाम उसमें "पावर टिलर "दिया है। जिसके जरिए अब वह अपना खेत जोत रहा है। और उम्मीद करता है कि इस बार बंपर फसल होगी।जिससे वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर पाएगा।

इसे बनाने के लिए वह 3 दिनों तक अपना घर भी नहीं आया और अपने दोस्त की मदद से वेल्डिंग दुकान पर रात दिन काम करता रहा । महेश बताता है कि इस मशीन को बनाने के लिए उसके मन में यह सवाल आया कि जब स्कूटर 100 से 150 किलो का सामान डो सकता है तो क्यों नही गाड़ी का उपयोग खेत जोतने में किया जा। उसमें अपने सोच को धरातल पर उतारने की कोशिश की। लोहे की छड़ और कुछ सामान के मदद से खेती जोतने के लिए पावर टिलर बना लिया। वह कहता है कि यह डीजल से चलता है और खेत जोतने के लिए काफी कम ईंधन का उपयोग होता है। उसका यह भी मानना है कि अगर ट्रैक्टर के तुलना में काफी किफायत दर में खेत जोता जा सकता है।

जब वह अपने मशीन लेकर खेत में उतरा और उसके मशीन की चर्चा हर ओर होने लगी। इसे देखकर आसपास के गांव के लोग भी उसके खेत पर पहुंचे और उसके मशीन को देखकर आश्चर्यचकित हुए ।महेश करमाली बताता है कि यह मशीन के जरिए अब उसकी गरीबी दूर हो जाएगी और वह अच्छा से खेती भी कर पाएगा

तो दूसरी ओर समाज के लोग और ग्रामीणों का भी कहना है कि की कभी यह सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके गांव का एक लड़का ऐसा मशीन बनाएगा जो चर्चा का विषय बन गया है। आलम यह है कि अब कई समाज के लोग उसे सम्मानित करने घर भी आ रहे हैं ।

वही उसकी पत्नी ललिता देवी का भी कहना है बहुत खुशी है कि उसके पति ने एक ऐसा मशीन बनाया है जिसकी चर्चा पूरे गांव में है ।अब शहर से भी लोग आकर मशीन देख रहे हैं। वह चाहती है कि सरकार इस मशीन पर विचार करें और वैसे ग्रामीण जो गरीब है उन्हें सहायता प्रदान करें ताकि वह अपना खेती कर सके।


byte.... महेश करमाली किसान
byte... ललिता देवी किसान की पत्नी
byte.... शैलेंद्र ग्रामीण टोपी पहने हुए
byte.... कपिल देव ग्रामीण ब्लू टीशर्ट में


Conclusion:दरअसल महेश करमाली बचपन से ही पूना में रहता था। जहां उसके मां पिता मजदूरी करते थे। इसी दौरान वो एक गैराज में काम भी करता था। गेराज में काम करता था।लेकिन पैसे के अभाव में पढ़ नहीं पाया।लेकिन अपने उस अनुभव से खेत जोतने का मशीन बना लिया है।

निसंदेह महेश आज गांव के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन कर उभर रहा है। जरूरत है ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने की ।

Last Updated : Jul 21, 2019, 1:28 PM IST
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