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हजारीबाग में सामाजिक बहिष्कार के चलते बेटियों ने किया मां का अंतिम संस्कार

वक्त अगर बुरा हो तो भले ही हर कोई साथ छोड़ दे, पर बेटी कभी माता-पिता का साथ नहीं छोड़ती है. यह कहावत चरितार्थ हुआ है हजारीबाग के टाटीझरिया के खंभवा गांव में. जहां बेटियों ने मिलकर मां के शव को कंधा दिया और पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया.

Due to social boycott daughters cremated mother in Hazaribag
बेटियों ने किया मां का अंतिम संस्कार
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Published : May 25, 2021, 4:52 PM IST

हजारीबागः बेटियां किसी से कम नहीं हैं. जब समाज-परिवार मुंह मोड़ ले तो बेटियां ही काम आती हैं. चाहे मरने के पहले हो या फिर बाद. ऐसा ही घटना हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड के खंडवा गांव में घटी है.

इसे भी पढ़ें- हजारीबाग में मिला ब्लैक फंगस का पहला मरीज, इलाज के लिए मेडिका अस्पताल रेफर

गांव-समाज ने किया किनारा

गांव की कुंती देवी (55 वर्ष) की 8 बेटियां हैं, जिनमें 7 की शादी हो चुकी है और एक कुंवारी है. कुंती देवी को 4 साल से लकवाग्रस्त थीं. जिस कारण वह चल-फिर भी नहीं सकती थी और उसका इलाज चल रहा था. उसके पति मजदूरी कर घर चलाते हैं. मां की मौत होने के बाद किसी ने उसे कंधा नहीं दिया और ना ही उसके घर दुख बांटने के लिए कोई पहुंचा. ऐसे में पीड़ित परिवार की बेटियां आगे आई और हिंदू धर्म के नियम के अनुसार अपनी मां का अंतिम संस्कार किया.


विवाद के कारण किया था जाति से बहिष्कृत
4 वर्ष पूर्व जाति विशेष के लोग किसी बात को लेकर विवाद के कारण उसे अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया था. यही कारण है कि उसकी मृत्यु के बाद भी भुइयां समाज के लोग इसके घर नहीं आए. ऐसे में परिस्थिति को देखते हुए 8 बहनों ने यह फैसला लिया कि वह खुद ही हिंदू धर्म के अनुसार सभी कर्मकांड करेंगे और अपनी मां को कंधा देंगे. उसके बाद उसका दाह संस्कार भी करेंगे. जैसे ही अंतिम संस्कार के लिए शव घर से निकला और बेटियों को गांव के लोगों ने कंधा देते हुए देखा तो पूरा गांव सन्नाटा में पसर गया. हर कोई यह कहता नजर आया कि परिवार और समाज को बुरे समय में अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था.

हजारीबागः बेटियां किसी से कम नहीं हैं. जब समाज-परिवार मुंह मोड़ ले तो बेटियां ही काम आती हैं. चाहे मरने के पहले हो या फिर बाद. ऐसा ही घटना हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड के खंडवा गांव में घटी है.

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गांव-समाज ने किया किनारा

गांव की कुंती देवी (55 वर्ष) की 8 बेटियां हैं, जिनमें 7 की शादी हो चुकी है और एक कुंवारी है. कुंती देवी को 4 साल से लकवाग्रस्त थीं. जिस कारण वह चल-फिर भी नहीं सकती थी और उसका इलाज चल रहा था. उसके पति मजदूरी कर घर चलाते हैं. मां की मौत होने के बाद किसी ने उसे कंधा नहीं दिया और ना ही उसके घर दुख बांटने के लिए कोई पहुंचा. ऐसे में पीड़ित परिवार की बेटियां आगे आई और हिंदू धर्म के नियम के अनुसार अपनी मां का अंतिम संस्कार किया.


विवाद के कारण किया था जाति से बहिष्कृत
4 वर्ष पूर्व जाति विशेष के लोग किसी बात को लेकर विवाद के कारण उसे अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया था. यही कारण है कि उसकी मृत्यु के बाद भी भुइयां समाज के लोग इसके घर नहीं आए. ऐसे में परिस्थिति को देखते हुए 8 बहनों ने यह फैसला लिया कि वह खुद ही हिंदू धर्म के अनुसार सभी कर्मकांड करेंगे और अपनी मां को कंधा देंगे. उसके बाद उसका दाह संस्कार भी करेंगे. जैसे ही अंतिम संस्कार के लिए शव घर से निकला और बेटियों को गांव के लोगों ने कंधा देते हुए देखा तो पूरा गांव सन्नाटा में पसर गया. हर कोई यह कहता नजर आया कि परिवार और समाज को बुरे समय में अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था.

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