हजारीबाग: eNam (ई-नाम) से जुड़े हजारीबाग की महिला FPO ने पूरे देश भर में कमाल कर दिया. हजारीबाग के अति उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र चुरचू में झारखंड का एकमात्र महिलाओं के द्वारा चलाया जाने वाला हजारीबाग की महिला FPO काम करता है. चुरचू नारी ऊर्जा फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी का गठन 6 जून 2018 में हुआ. इस कंपनी का एकमात्र उद्देश्य महिला किसानों को एकजुट कर उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाना था. शुरुआती दौर में इन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. लेकिन कुछ महिलाओं के द्वारा शुरू किया गया यह प्रयास धीरे धीरे रंग लाया. आज इस कंपनी के 7000 से अधिक महिला किसान सदस्य हैं. जिनमें लगभग 2500 महिला अंश धारक हैं. यही नहीं है 18 लाख रुपया इनका अंश पूंजी है. इस वित्तीय वर्ष में चुरचू नारी ऊर्जा फार्मर प्रोड्यूसर ने दो करोड़ 75 लाख रुपए की कृषि उत्पाद बेचकर इतिहास रच दिया.
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दिल्ली में सम्मानित होने के बाद ये हजारीबाग चुरचू प्रखंड पहुंची हैं और फिर से महिलाओं को उत्साहित और प्रोत्साहित करने में लगी हुई है. कंपनी से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि पहले उन लोगों को काफी समस्या होती थी. वे अपना सामान कहां बेचे कैसे उसका उत्पादन करें इसकी जानकारी उनके पास नहीं थी. लेकिन इस कंपनी ने उनकी सारी समस्याओं का अंत किया है. अब उनके खेत से ही सारा सामान बिक जाता है. बीज और खाद भी उन्हें बाजार से सस्ते दाम पर मिल जाते हैं.
महिलाओं को राह दिखाने में सपोर्ट सिनी, टाटा ट्रस्ट और जेएसपीएल की महत्वपूर्ण भूमिका है. इन तीनों ने इस कंपनी को रजिस्टर्ड कराने में मदद की. चरही चौक पर इनका कार्यालय भी है. जहां से पूरी कंपनी चलती है. कंपनी के सीओ भी कहते हैं कि वे लोग ने इन्हें भरपूर मदद कर रहे हैं. जिसका प्रतिफल भी अब मिलना शुरू हो गया है.
हजारीबाग बाजार समिति के माध्यम से कंपनी ने ई-नाम (eNam) के जरिये लगभग 65 लाख का कारोबार किया है. जिसमें 50 का डिजिटल पेमेंट भी प्राप्त हुआ है. ऐसे में बाजार समिति के सचिव राकेश कुमार भी कहते हैं कि यह एफपीओ नारी सशक्तिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण है. महिलाओं का प्रयास अब रंग ला रहा है. इन्हें दिल्ली मे भी सम्मानित किया जा रहा है. आने वाले समय में यह एफपीओ और अच्छा काम करें इसके लिए बाजार समिति हमेशा तैयार है.
इन महिलाओं ने यह बता दिया कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम करने से मुकाम हासिल किया जा सकता है. आर्थिक रूप से लोग संपन्न भी होते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिलती है. कभी इन क्षेत्रों में नक्सलियों की बंदूक की तड़तड़हट गूंजती थी. आज वहां की महिलाएं इतिहास लिखने को बेकरार हैं.