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कोरोना के कारण मजदूरों का बुरा हाल, काम की तलाश में निकले मजदूर - लॉकडाउन में मजदूर

एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन कोरोना के कारण इस बार मजदूरों का बुरा हाल है. मजदूर दिवस हो या फिर कोई और विशेष दिन इन मजदूरों की मजबूरी काम तलाशना है. इसी तलाश में वह लॉकडाउन में भी हजारीबाग के पंच मंदिर चौक पर नजर आ रहे हैं.

bad condition of labour in hazaribag
काम की तलाश में निकले मजदूर
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Published : May 1, 2020, 12:10 PM IST

हजारीबाग: एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस दिन कई कार्यक्रम का आयोजन होता है और मजदूरों का हक दिलाने की बात कही जाती है. यह एक परंपरा भी रही है लेकिन इस लॉकडाउन में मजदूरों का हाल बेहाल है. उन्हें खाने के लिए सरकार या फिर समाजसेवियों की ओर से कच्चा राशन तो मिल जा रहा है लेकिन उन्हें अब अपने बच्चे की पढ़ाई लिखाई की चिंता सता रही है. ऐसे में मजदूरों ने काम की तलाश में अब शहर आना शुरू कर दिया है.

देखें पूरी खबर

हर एक मजदूर की एक चाहत होती है कि अपने बच्चे के लिए अच्छा करे ताकि उनके जीवन में समस्या ना आए. ऐसे में मजदूर दिनभर मजदूरी करके अपने बच्चे को स्कूल भी भेजता है लेकिन अब लॉकडाउन होने के कारण मजदूर के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे तो लगभग सभी निजी और सरकारी विद्यालय ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था किया है. मजदूर के पास स्मार्टफोन नहीं है. ऐसे में उनके बच्चे की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है. अब मजदूर इस बात को लेकर परेशान हैं कि उनके बच्चे का भविष्य कैसे संभालेगा. अगर दो से तीन महीने स्कूल नहीं जाएंगे तो पुराना पढ़ाई भी भूल जाएंगे.

ये भी देखें- गिरिडीहः लॉकडाउन में फंसे मजदूरों की परेशानी कम नहीं हो रहीं, पैदल घर जाने को मजबूर

मजदूरों का यह भी कहना है कि हम लोग अब लॉकडाउन होने के कारण काम नहीं कर पा रहे हैं. आलम यह है कि घर पर ही बेरोजगार बैठना पड़ रहा है. ऐसे में अपने बच्चों को वह सुविधा भी नहीं दे पा रहे हैं. धीरे-धीरे समाजसेवियों का भी मदद कम होता जा रहा है. उनका यह भी कहना है कि अगर राशन मिल भी जाता है तो कई और भी खर्च है. वह खर्च आखिर कैसे पूरा होगा. इसलिए हम लोग मजबूरन मजदूरी खोजने के लिए घर से बाहर निकले हैं. उन्होंने कहा कि जान खतरे में पड़ सकता है लेकिन पैसा कमाना हमारे लिए बहुत जरूरी है.

हजारीबाग: एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस दिन कई कार्यक्रम का आयोजन होता है और मजदूरों का हक दिलाने की बात कही जाती है. यह एक परंपरा भी रही है लेकिन इस लॉकडाउन में मजदूरों का हाल बेहाल है. उन्हें खाने के लिए सरकार या फिर समाजसेवियों की ओर से कच्चा राशन तो मिल जा रहा है लेकिन उन्हें अब अपने बच्चे की पढ़ाई लिखाई की चिंता सता रही है. ऐसे में मजदूरों ने काम की तलाश में अब शहर आना शुरू कर दिया है.

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हर एक मजदूर की एक चाहत होती है कि अपने बच्चे के लिए अच्छा करे ताकि उनके जीवन में समस्या ना आए. ऐसे में मजदूर दिनभर मजदूरी करके अपने बच्चे को स्कूल भी भेजता है लेकिन अब लॉकडाउन होने के कारण मजदूर के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे तो लगभग सभी निजी और सरकारी विद्यालय ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था किया है. मजदूर के पास स्मार्टफोन नहीं है. ऐसे में उनके बच्चे की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है. अब मजदूर इस बात को लेकर परेशान हैं कि उनके बच्चे का भविष्य कैसे संभालेगा. अगर दो से तीन महीने स्कूल नहीं जाएंगे तो पुराना पढ़ाई भी भूल जाएंगे.

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मजदूरों का यह भी कहना है कि हम लोग अब लॉकडाउन होने के कारण काम नहीं कर पा रहे हैं. आलम यह है कि घर पर ही बेरोजगार बैठना पड़ रहा है. ऐसे में अपने बच्चों को वह सुविधा भी नहीं दे पा रहे हैं. धीरे-धीरे समाजसेवियों का भी मदद कम होता जा रहा है. उनका यह भी कहना है कि अगर राशन मिल भी जाता है तो कई और भी खर्च है. वह खर्च आखिर कैसे पूरा होगा. इसलिए हम लोग मजबूरन मजदूरी खोजने के लिए घर से बाहर निकले हैं. उन्होंने कहा कि जान खतरे में पड़ सकता है लेकिन पैसा कमाना हमारे लिए बहुत जरूरी है.

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