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अटका नरसंहार के 23 साल, 10 लोगों की हुई थी मौत, मृतकों के आश्रितों को अब तक सरकारी घोषणा पूरे होने की उम्मीद - अटका नरसंहार की बरसी

एकीकृत बिहार के समय 7 जुलाई 1998 को बगोदर थाना क्षेत्र में सबसे बड़ी नक्सली वारदात (Naxalite incident) हुई थी. उस समय हुई नरसंहार की घटना (Incident of Massacre) में 10 लोग मारे गए थे. तत्कालीन सीएम राबडी देवी (CM Rabri Devi) के तरफ से आश्रितों को मुआवजा सहित एक-एक सदस्य को नौकरी दिए जाने की घोषणा की गई थी. मुआवजा तो मिल गया लेकिन नौकरी किसी को नहीं मिली है. आश्रितों को आज भी नौकरी मिलने की उम्मीद है.

victims of atka massacre still expected to get job in giridih
अटका नरसंहार
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Published : Jul 7, 2021, 2:16 PM IST

Updated : Jul 7, 2021, 3:02 PM IST

गिरिडीह: एकीकृत बिहार के समय 23 साल पहले 7 जुलाई 1998 को हुए बगोदर प्रखंड के अटका नरसंहार के आश्रितों को आज भी नौकरी का इंतजार है. तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी (CM Rabri Devi) की ओर से आश्रितों को नौकरी दिए जाने की घोषणा की गई थी. लेकिन घटना के 23 साल बीत गए आश्रितों को नौकरी नहीं मिल पाई है. नरसंहार की इस घटना (Incident of Massacre) में दस लोग मारे गए थे. आश्रितों को नौकरी नहीं मिलने का मलाल है और इसके लिए तत्कालीन बिहार सरकार (Bihar Government) से लेकर वर्तमान झारखंड के हेमंत सरकार (Hemant Government) को लोग कोस रहे हैं.

ये भी पढ़ें- गिरिडीह: अटका नरसंहार पीड़ितों को आज भी है नौकरी का इंतजार, 22 वर्ष पूर्व मुखिया सहित 10 की हुई थी हत्या



भरी पंचायत में नक्सलियों ने की थी गोलियों की बौछार
7 जुलाई 1998 को पुलिस वर्दीधारी नक्सलियों ने पंचायत में बैठे निहत्थे लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी थी. घटना में तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल सहित 10 लोग मारे गए थे. घटना के दूसरे दिन तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी घटना स्थल पहुंची हुईं थीं. घटना में मारे गए लोगों के प्रति शोक व्यक्त करते हुए आश्रित परिवारों के एक- एक सदस्य को नौकरी, मुआवजा के तौर पर एक- एक लाख नगद और इंदिरा आवास देने की घोषणा की गई थी. घोषणा के मुताबिक इंदिरा आवास (Indira Awas)और मुआवजा राशि तो आश्रितों को मिल गया. लेकिन घटना के 23 साल बीत गए आज तक आश्रितों को नौकरी नहीं मिली है. हालांकि नौकरी की आस अब भी आश्रित परिवारों ने नहीं छोड़ी है. उन्हें आज भी नौकरी मिलने की उम्मीद है.

देखें पूरी खबर
तत्कालीन मुखिया सहित 10 लोगों की हुई थी हत्याइस घटना में अटका के तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल, बिहारी महतो, धुपाली महतो, जगन्नाथ महतो, सरजू महतो, दशरथ मंडल, सीताराम महतो, रघुनाथ प्रसाद, मिलन प्रसाद और तुलसी महतो की मौत हो गई थी. घटना में मारे गए तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल के पुत्र दीपू मंडल ने बताया कि तत्कालीन सीएम की तरफ से घटना में मारे गए लोगों के आश्रित परिवार के एक-एक सदस्य को इंदिरा आवास, एक लाख मुआवजा राशि, बेटी की शादी के लिए 20 हजार, कुछ समय तक राशन की व्यवस्था और एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने की घोषणा की गई थी. सभी घोषणाएं तो पूरी हो गईं लेकिन सबसे बड़ी घोषणा सरकारी नौकरी देने की वह आज भी पूरी नहीं हो पाई है. इससे लोगों में मायूसी है. विधानसभा में भी उठाया जा चुका है मामला7 जुलाई 1998 के नक्सली घटना में मारे गए लोगों के आश्रितों को सीएम की घोषणा के बाद भी नौकरी नहीं मिलने का मामला झारखंड विधानसभा में कई बार उठाया जा चुका है. 2005 में जब विनोद कुमार सिंह बगोदर के विधायक बने तब उनकी तरफ से यह मामला विधानसभा में उठाया गया था. इसके बाद 2014 के चुनाव में नागेंद्र महतो भाजपा से विधायक निर्वाचित हुए. उन्होंने भी मामले को विधानसभा में उठाते हुए आश्रित परिजनों को नौकरी देने की वकालत की थी. लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिल पाई है. बताया जाता है कि नरसंहार की घटना के बाद अलग राज्य झारखंड का गठन होने से इसकी फाइलें ही गुम हो गई.

गिरिडीह: एकीकृत बिहार के समय 23 साल पहले 7 जुलाई 1998 को हुए बगोदर प्रखंड के अटका नरसंहार के आश्रितों को आज भी नौकरी का इंतजार है. तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी (CM Rabri Devi) की ओर से आश्रितों को नौकरी दिए जाने की घोषणा की गई थी. लेकिन घटना के 23 साल बीत गए आश्रितों को नौकरी नहीं मिल पाई है. नरसंहार की इस घटना (Incident of Massacre) में दस लोग मारे गए थे. आश्रितों को नौकरी नहीं मिलने का मलाल है और इसके लिए तत्कालीन बिहार सरकार (Bihar Government) से लेकर वर्तमान झारखंड के हेमंत सरकार (Hemant Government) को लोग कोस रहे हैं.

ये भी पढ़ें- गिरिडीह: अटका नरसंहार पीड़ितों को आज भी है नौकरी का इंतजार, 22 वर्ष पूर्व मुखिया सहित 10 की हुई थी हत्या



भरी पंचायत में नक्सलियों ने की थी गोलियों की बौछार
7 जुलाई 1998 को पुलिस वर्दीधारी नक्सलियों ने पंचायत में बैठे निहत्थे लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी थी. घटना में तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल सहित 10 लोग मारे गए थे. घटना के दूसरे दिन तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी घटना स्थल पहुंची हुईं थीं. घटना में मारे गए लोगों के प्रति शोक व्यक्त करते हुए आश्रित परिवारों के एक- एक सदस्य को नौकरी, मुआवजा के तौर पर एक- एक लाख नगद और इंदिरा आवास देने की घोषणा की गई थी. घोषणा के मुताबिक इंदिरा आवास (Indira Awas)और मुआवजा राशि तो आश्रितों को मिल गया. लेकिन घटना के 23 साल बीत गए आज तक आश्रितों को नौकरी नहीं मिली है. हालांकि नौकरी की आस अब भी आश्रित परिवारों ने नहीं छोड़ी है. उन्हें आज भी नौकरी मिलने की उम्मीद है.

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तत्कालीन मुखिया सहित 10 लोगों की हुई थी हत्याइस घटना में अटका के तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल, बिहारी महतो, धुपाली महतो, जगन्नाथ महतो, सरजू महतो, दशरथ मंडल, सीताराम महतो, रघुनाथ प्रसाद, मिलन प्रसाद और तुलसी महतो की मौत हो गई थी. घटना में मारे गए तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल के पुत्र दीपू मंडल ने बताया कि तत्कालीन सीएम की तरफ से घटना में मारे गए लोगों के आश्रित परिवार के एक-एक सदस्य को इंदिरा आवास, एक लाख मुआवजा राशि, बेटी की शादी के लिए 20 हजार, कुछ समय तक राशन की व्यवस्था और एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने की घोषणा की गई थी. सभी घोषणाएं तो पूरी हो गईं लेकिन सबसे बड़ी घोषणा सरकारी नौकरी देने की वह आज भी पूरी नहीं हो पाई है. इससे लोगों में मायूसी है. विधानसभा में भी उठाया जा चुका है मामला7 जुलाई 1998 के नक्सली घटना में मारे गए लोगों के आश्रितों को सीएम की घोषणा के बाद भी नौकरी नहीं मिलने का मामला झारखंड विधानसभा में कई बार उठाया जा चुका है. 2005 में जब विनोद कुमार सिंह बगोदर के विधायक बने तब उनकी तरफ से यह मामला विधानसभा में उठाया गया था. इसके बाद 2014 के चुनाव में नागेंद्र महतो भाजपा से विधायक निर्वाचित हुए. उन्होंने भी मामले को विधानसभा में उठाते हुए आश्रित परिजनों को नौकरी देने की वकालत की थी. लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिल पाई है. बताया जाता है कि नरसंहार की घटना के बाद अलग राज्य झारखंड का गठन होने से इसकी फाइलें ही गुम हो गई.
Last Updated : Jul 7, 2021, 3:02 PM IST
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