गिरिडीहः जिला में बिरनी प्रखंड (Birni Block) के नवादा गांव के लोग दशकों से सांप्रदायिक सौहार्द्र (Communal Harmony) की मिसाल पेश कर रहे हैं. इस गांव में दशकों से मुहर्रम मनाया जा रहा हैं, जबकि इस गांव में सिर्फ हिंदू परिवार ही है. हिंदू बाहुल्य इस गांव के लोग दूज का चांद दिखने के बाद से ही मुहर्रम के नियमों का पालन (Hindu community celebrates muharram) करना शुरू कर देते हैं. महिलाएं सिंदूर लगाना बंद कर देती हैं. जब तक मुहर्रम का तीजा खत्म नहीं होता, तब तक महिलाएं बगैर सिंदूर के ही रहती हैं.
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बड़ी बात है कि इस पर्व के साथ कोई दूसरा पर्व भी आ जाता हैं, तब भी हिंदू समाज मुहर्रम ही मनाते हैं. स्थानीय बासुदेव यादव कहते है कि दशकों से गांव में मुहर्रम मनाया जाता रहा है. उन्होंने कहा कि वर्षों पहले गांव में विपदा आई थी, तब एक बुजुर्ग को सपना आया कि तजिया सजेगा तो विपदा समाप्त हो जाएगी. इसके बाद से गांव के लोग प्रत्येक साल मुहर्रम मनाने लगे. उन्होंने कहा कि गांव के लोग आगे भी मुहर्रम मनाते रहेंगे. इसी तरह पुरनानगर में टिकैत राजा दशरथ सिंह के घर के आंगन में ही इमामबाड़ा है. यहां भी दशकों से मुहर्रम मनाया जा रहा है.
इतना ही नहीं, देवरी प्रखंड के छः गांव में हिंदू समुदाय के लोग मुहर्रम मनाते हैं. इसमें प्रखंड के चतरो, चितरोकुरहा, घसकरीडीह, गोरटोली, किसगो और हथगड़ गांव हैं. इन गांवों में हिंदू समाज सामाजिक सदभाव के साथ मुहर्रम मनाते हैं. चतरो गांव में ललन साव के नेतृत्व में मुहर्रम मनाया जाता है. बताया जाता है कि गांव में पहले मुस्लिम परिवार मुहर्रम मनाते थे. लेकिन मुस्लिम परिवार गांव को छोड़ कर चले गए तो हिंदू समाज के झुलवा कलवारणी के आग्रह पर मुहर्रम त्योहार मनाया जाने लगा, जो आज तक जारी है.