ETV Bharat / city

विश्व पर्यावरण दिवस: 30 साल से ग्रामीण कर रहे जंगलों की पहरेदारी, पहरा नहीं देने पर लगता है 21 रुपए जुर्माना

author img

By

Published : Jun 5, 2021, 10:06 AM IST

Updated : Jun 5, 2021, 10:21 AM IST

पर्यावरण के प्रति जागरूकता का मिसाल बगोदर प्रखंड क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांव लुकूइया में देखने को मिल रहा है. जंगल की रखवाली के लिए ग्रामीणों की ओर से 30 सालों से पहरा दिया जा रहा है. ग्रामीणों के प्रयास से यहां के जंगल हरे-भरे हैं.

example of environmental awareness in giridih
जंगलों की पहरेदारी

गिरिडीह: प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ के कारण आज पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है और इसका खामियाजा सभी को भुगतान पड़ रहा है. पर्यावरण के प्रति जागरूकता का अभाव भी इसके साथ छेड़छाड़ का एक कारण है. हालांकि धीरे- धीरे ग्रामीण क्षेत्रों में भी पर्यावरण को लेकर अब लोगों में जागरूकता देखी जा रही है. पर्यावरण के प्रति जागरूकता का मिसाल बगोदर प्रखंड क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांव लुकूईया में देखने को मिल रहा है. पर्यावरण के प्रति ग्रामीणों में जब जागरूकता आई तब ग्रामीणों ने जंगल की रखवाली करने और पेड़- पौधों की रक्षा करने का संकल्प लिया. जिसका परिणाम भी सामने आया और आज गांव में घना जंगल हो गया है और जंगल में जंगली जानवरों का भी बसेरा है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें- पेड़-पौधे के दादा के नाम से मशहूर जमशेदपुर के सुनील आनंद, निशुल्क बांटते हैं औषधि पेड़


1990 के दशक में था झड़-झंखाड़
लुकूईया गांव के जंगल में पेड़-पौधों की कटाई होने से 1990 के दशक में जंगल झाड़-झंखाड़ का रूप ले लिया था. उसके बाद ग्रामीणों को जंगल की कमी का अहसास हुआ और ग्रामीणों ने बैठक बुलाकर जंगल की रखवाली करने का निर्णय लिया. 1990 में जंगल की रखवाली के लिए वन बचाव समिति का गठन किया गया था और तभी से समिति आज भी सक्रिय है. वन बचाव समिति के नेतृत्व में ग्रामीणों की ओर से जंगल की रखवाली के लिए पहरा दिया जाता है.

example-of-environmental-awareness-in-giridih
हरे-भरे जंगल

की जाती है साप्ताहिक बैठक

वन बचाव समिति के अध्यक्ष राजू पासवान बताते हैं कि रोज 5 लोग जंगल की रखवाली के लिए पहरा देने के लिए निकलते हैं. पहरा कि ड्यूटी जिनकी होती है वे अगर पहरा देने नहीं गए तब उन्हें 21 रुपये जुर्माना लगाया जाता है. जंगल की रखवाली के दौरान जंगल से पेड़- पौधों की कटाई करने वालों पर ग्रामीणों के निर्णय के अनुसार वन बचाव समिति जुर्माना लगाती है. इसके लिए सप्ताह में एक दिन रविवार को साप्ताहिक बैठक होती है. साप्ताहिक बैठक प्रत्येक घर से एक सदस्य को उपस्थित होना पड़ता है. बैठक में उपस्थित होने वाले को 11 रुपये जुर्माना लगाया जाता है.

चेकडैम बनाने की मांग

वन बचाव समिति के अध्यक्ष ने बताया कि वन बचाव समिति के कार्यों से प्रेरित होकर वन विभाग ने जंगल में एक चेकडैम बनाया गया है. गर्मी के दिनों में यह चेकडैम जंगली और घरेलू जानवरों के लिए पीने के पानी का सहारा बना हुआ है. इसके अलावा ग्रामीणों की ओर से इसके पानी से खेती भी की जाती है. उन्होंने जंगल में और एक चेकडैम बनाने की मांग की है.

example-of-environmental-awareness-in-giridih
जंगल
क्या कहते हैं बुजुर्ग व्यक्तिगांव के बुजुर्ग व्यक्ति लालो पासवान बताते हैं कि जंगल रहने से पर्यावरण का संतुलन बना रहता है. जंगली जानवर भी सुरक्षित रहते हैं. शुद्ध हवा के साथ समय पर बारिश भी होती है. इसलिए जंगल की रखवाली जरूरी है. उन्होंने बताया कि आज जहां घना जंगल है वहां तीस साल पूर्व झाड़- झंखाड़ था. उन्होंने बताया कि रखवाली के बाद आज जब जंगल घना है तब यहां जंगली जानवरों का भी बसेरा है. हिरण, मोर, निलगाय, सुअर, अजगर आदि इस जंगल में बड़ी संख्या में विचरण करते देखे जाते हैं.

गिरिडीह: प्रकृति के साथ लगातार छेड़छाड़ के कारण आज पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है और इसका खामियाजा सभी को भुगतान पड़ रहा है. पर्यावरण के प्रति जागरूकता का अभाव भी इसके साथ छेड़छाड़ का एक कारण है. हालांकि धीरे- धीरे ग्रामीण क्षेत्रों में भी पर्यावरण को लेकर अब लोगों में जागरूकता देखी जा रही है. पर्यावरण के प्रति जागरूकता का मिसाल बगोदर प्रखंड क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांव लुकूईया में देखने को मिल रहा है. पर्यावरण के प्रति ग्रामीणों में जब जागरूकता आई तब ग्रामीणों ने जंगल की रखवाली करने और पेड़- पौधों की रक्षा करने का संकल्प लिया. जिसका परिणाम भी सामने आया और आज गांव में घना जंगल हो गया है और जंगल में जंगली जानवरों का भी बसेरा है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें- पेड़-पौधे के दादा के नाम से मशहूर जमशेदपुर के सुनील आनंद, निशुल्क बांटते हैं औषधि पेड़


1990 के दशक में था झड़-झंखाड़
लुकूईया गांव के जंगल में पेड़-पौधों की कटाई होने से 1990 के दशक में जंगल झाड़-झंखाड़ का रूप ले लिया था. उसके बाद ग्रामीणों को जंगल की कमी का अहसास हुआ और ग्रामीणों ने बैठक बुलाकर जंगल की रखवाली करने का निर्णय लिया. 1990 में जंगल की रखवाली के लिए वन बचाव समिति का गठन किया गया था और तभी से समिति आज भी सक्रिय है. वन बचाव समिति के नेतृत्व में ग्रामीणों की ओर से जंगल की रखवाली के लिए पहरा दिया जाता है.

example-of-environmental-awareness-in-giridih
हरे-भरे जंगल

की जाती है साप्ताहिक बैठक

वन बचाव समिति के अध्यक्ष राजू पासवान बताते हैं कि रोज 5 लोग जंगल की रखवाली के लिए पहरा देने के लिए निकलते हैं. पहरा कि ड्यूटी जिनकी होती है वे अगर पहरा देने नहीं गए तब उन्हें 21 रुपये जुर्माना लगाया जाता है. जंगल की रखवाली के दौरान जंगल से पेड़- पौधों की कटाई करने वालों पर ग्रामीणों के निर्णय के अनुसार वन बचाव समिति जुर्माना लगाती है. इसके लिए सप्ताह में एक दिन रविवार को साप्ताहिक बैठक होती है. साप्ताहिक बैठक प्रत्येक घर से एक सदस्य को उपस्थित होना पड़ता है. बैठक में उपस्थित होने वाले को 11 रुपये जुर्माना लगाया जाता है.

चेकडैम बनाने की मांग

वन बचाव समिति के अध्यक्ष ने बताया कि वन बचाव समिति के कार्यों से प्रेरित होकर वन विभाग ने जंगल में एक चेकडैम बनाया गया है. गर्मी के दिनों में यह चेकडैम जंगली और घरेलू जानवरों के लिए पीने के पानी का सहारा बना हुआ है. इसके अलावा ग्रामीणों की ओर से इसके पानी से खेती भी की जाती है. उन्होंने जंगल में और एक चेकडैम बनाने की मांग की है.

example-of-environmental-awareness-in-giridih
जंगल
क्या कहते हैं बुजुर्ग व्यक्तिगांव के बुजुर्ग व्यक्ति लालो पासवान बताते हैं कि जंगल रहने से पर्यावरण का संतुलन बना रहता है. जंगली जानवर भी सुरक्षित रहते हैं. शुद्ध हवा के साथ समय पर बारिश भी होती है. इसलिए जंगल की रखवाली जरूरी है. उन्होंने बताया कि आज जहां घना जंगल है वहां तीस साल पूर्व झाड़- झंखाड़ था. उन्होंने बताया कि रखवाली के बाद आज जब जंगल घना है तब यहां जंगली जानवरों का भी बसेरा है. हिरण, मोर, निलगाय, सुअर, अजगर आदि इस जंगल में बड़ी संख्या में विचरण करते देखे जाते हैं.
Last Updated : Jun 5, 2021, 10:21 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.