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बाल मजदूरी में सिसकती जिंदगी को झारखंड की चंपा दिखा रही रोशनी, डायना अवार्ड से हो चुकी है सम्मानित

बाल मजदूरी के खिलाफ आज पूरी दुनिया काम कर रही है. कई लोग अपनी पूरी जिंदगी बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए समर्पित कर रहे हैं. लेकिन झारखंड के गिरिडीह में एक छोटी से बच्ची चंपा ने बाल मजदूरी के खिलाफ और बच्चों पर हो रहे शोषण के खिलाफ इस तरह से काम किया है कि उसे ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में पहचान मिली है.

Champa of giridh is working against child labou
चंपा ठाकुर
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Published : Jun 12, 2020, 6:03 AM IST

गिरिडीह: शहर से दूर गांवा प्रखंड में चंपा नाम की एक लड़की बाल मजदूरी के खिलाफ एक सशक्त आवाज उठा कही है. चंपा के इरादे ना सिर्फ अपने इलाके से बल्कि पूरी दुनिया से बाल मजदूरी को पूरी तरह से खत्म कर बच्चों को स्कूल और शिक्षा से जोड़ने का है. वे चाहती है कि बच्चे मजदूरी छोड़ अपना भविष्य खुद तय करें.

देखें पूरी खबर

चंपा पहले थी बाल मजदूर

चंपा का गुजरा वक्त बेहद दर्दनाक रहा है. छोटी सी उम्र में उसे अपने और परिवार का खर्च चलाने के लिए माइका माइंस में मजदूरी करनी पड़ती थी. बाल मजदूरी की इस दलदल से उसे बाहर निकाला कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन ने. जिसके बाद चंपा ने फैसला किया कि वह अपने जैसे दूसरों बच्चों को भी बाल मजदूरी के अंधरे से शिक्षा के उजाले की ओर जरूर ले जाएगी.

बाल विवाह के खिलाफ भी चंपा उठा रही सवाल

अब चंपा ना सिर्फ बाल मजदूरी करने वाली बच्चों को सही रास्ते पर लाती है बल्कि इलाके में बाल विवाह होने से भी रोकती है. हालांकि, गांव में उसका काफी विरोध भी हुआ लेकिन इस काम में उसके पिता ने हर कदम पर साथ दिया.

2019 में मिल चुका है डायना अवार्ड

चंपा की मेहनत और काबलियत को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उसे 2019 में डायना अवार्ड से सम्मानित किया. चंपा कहती है कि बच्चों की जिंदगी में हर वक्त खुशहाली रहे इसके लिए सभी को कोशिश करनी चाहिए. आज बाल मजदूरी के खिलाफ इस लड़ाई में ना सिर्फ उसके पिता बल्कि पूरे इलाके के लोग हैं. यही वजह है कि पहले जो चंपा को इस तरह के काम को करने से रोकते थे अब वह सहायता करने की अपील कर रहे हैं.

गिरिडीह: शहर से दूर गांवा प्रखंड में चंपा नाम की एक लड़की बाल मजदूरी के खिलाफ एक सशक्त आवाज उठा कही है. चंपा के इरादे ना सिर्फ अपने इलाके से बल्कि पूरी दुनिया से बाल मजदूरी को पूरी तरह से खत्म कर बच्चों को स्कूल और शिक्षा से जोड़ने का है. वे चाहती है कि बच्चे मजदूरी छोड़ अपना भविष्य खुद तय करें.

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चंपा पहले थी बाल मजदूर

चंपा का गुजरा वक्त बेहद दर्दनाक रहा है. छोटी सी उम्र में उसे अपने और परिवार का खर्च चलाने के लिए माइका माइंस में मजदूरी करनी पड़ती थी. बाल मजदूरी की इस दलदल से उसे बाहर निकाला कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन ने. जिसके बाद चंपा ने फैसला किया कि वह अपने जैसे दूसरों बच्चों को भी बाल मजदूरी के अंधरे से शिक्षा के उजाले की ओर जरूर ले जाएगी.

बाल विवाह के खिलाफ भी चंपा उठा रही सवाल

अब चंपा ना सिर्फ बाल मजदूरी करने वाली बच्चों को सही रास्ते पर लाती है बल्कि इलाके में बाल विवाह होने से भी रोकती है. हालांकि, गांव में उसका काफी विरोध भी हुआ लेकिन इस काम में उसके पिता ने हर कदम पर साथ दिया.

2019 में मिल चुका है डायना अवार्ड

चंपा की मेहनत और काबलियत को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उसे 2019 में डायना अवार्ड से सम्मानित किया. चंपा कहती है कि बच्चों की जिंदगी में हर वक्त खुशहाली रहे इसके लिए सभी को कोशिश करनी चाहिए. आज बाल मजदूरी के खिलाफ इस लड़ाई में ना सिर्फ उसके पिता बल्कि पूरे इलाके के लोग हैं. यही वजह है कि पहले जो चंपा को इस तरह के काम को करने से रोकते थे अब वह सहायता करने की अपील कर रहे हैं.

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