गिरिडीह: कोरोना काल के दौरान जहां आम लोग घरों में दुबके रहे वहीं पुलिसकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी के साथ-साथ सफाईकर्मियों ने खूब सेवा की. गली-मोहल्ले, नालियों को साफ करने में सफाईकर्मी जुटे रहे. नगर निगम क्षेत्र की सफाई रोज होती रही. इतना सब करने के बाद भी सफाईकर्मियों की समस्याओं का पूरी तरह से निराकरण नहीं हो सका है. आज भी नगर निगम के अधीन काम करने वाले दैनिक, अनुबंधित और आउटसोर्सिंग सफाईकर्मी विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे हैं.
गिरिडीह नगर निगम में दैनिक वेतनभोगी और मानदेय पर 174 कर्मी कार्यरत हैं. इनमें ठेला मजदूर की संख्या 72 है. जबकि अतिरिक्त मजदूर की संख्या 60 हैं. वहीं 42 सफाईकर्मी भी दैनिक मजदूरी पर हैं. इसके अलावा 20 से 25 चालक भी रोजाना सफाई का काम करते हैं. इन सभी कर्मियों को हर माह वेतन और मानदेय मिल जाता है लेकिन नियमतिकरण की मांग अधूरी है.
आउटसोर्सिंग कर्मियों की हाल-बेहालआउटसोर्सिंग एजेंसी के अधीन काम करनेवाले सफाईकर्मियों की हातल खराब है. यहां पर काम करनेवाले सफाईकर्मी को समय पर मानदेय नहीं मिलता है. हर बार इन्हें हो हल्ला करना पड़ रहा है. निगम के वार्डों में डोर-टू-डोर जाकर कचरा उठाने का कार्यभार लेनेवाली आकांक्षा वेस्ट मैनेजमेंट के कर्मी बताते हैं कि एक तो समय पर वेतन नहीं मिलता है. उसपर पीएफ काटने से लेकर खाता नंबर तक का मामला विवादित हो गया है. विवाद के कारण आकांक्षा एजेंसी के प्रबंधन ने तो प्लांट में ही ताला जड़ दिया है. हालांकि आकांक्षा के स्टेट हेड दिलीप श्रीवास्तव का कहना है अभी झारखंड के 8 स्थानों पर उनकी एजेंसी काम कर रही है. सभी 8 स्थानों पर कुछ महीनों का बिल बकाया है. इसके बावजूद मजदूरों को भुगतान करने का पूरा प्रयास किया जाता है. गिरिडीह में उनकी एजेंसी के अंदर 150 से अधिक सफाईकर्मी काम कर रहे हैं.
क्या कहते हैं मजदूर नेता
इस समस्या पर श्रमिक नेता अशोक सिंह का कहना है कि अंतिम पायदान पर काम करनेवालों के विकास की बात तो की जाती है लेकिन इस दिशा में कुछ सार्थक कदम नहीं उठाया जाता है. उन्होने कहा कि दैनिक वेतनभोगी कर्मियों की सेवा नियमित करने के लिए कई दफा सरकार के साथ समझौता हुआ लेकिन एक भी कर्मी को नियमित नहीं किया गया. जो दैनिक वेतनभोगी कर्मी 4-5 साल से काम कर रहे हैं उनका पीएफ नहीं कट रहा है. न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी होती है तो वह भी पांच छह माह देरी से लागू किया जाता है. जिसके बाद एरियर के नाम पर परेशान किया जाता है. आउटसोर्सिंग में काम करनेवाले कर्मियों की नौकरी भी कब चली जाती है उसका ठिकाना नहीं रहता है.