दुमकाः संथाल क्षेत्र के विधानसभा के 18 सीट हैं. इसमें साल 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ चार सीटों पर ही जीत दर्ज की. इसमें राजमहल, गोड्डा, सारठ और अनुसूचित जाति सुरक्षित सीट देवघर शामिल हैं. राजमहल से अनंत ओझा, गोड्डा से अमित मंडल, देवघर से नारायण दास और सारठ से रणधीर सिंह विधायक चुने गए. अब हेमंत कैबिनेट ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति (1932 Khatian Based Local Policy) की घोषणा की. इसके बाद से यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या ये चारों विधायक हैट्रिक लगा पाने में सफल होंगे या फिर 1932 की हवा में इन्हें नुकसान उठाना पड़ जाएगा.
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इन सीटों पर भाजपा के सभी निर्वाचित विधायक अपने क्षेत्र में किये गये कार्यों और मजबूत जनाधार के बल पर चुनाव जीतने में सफल होते रहे हैं. राजमहल, गोड्डा और सारठ में अल्पसंख्यक और आदिवासी मतदाताओं की बहुलता के बावजूद स्थानीय मुद्दे के बल पर बीजेपी प्रत्याशी जीतते हैं. देवघर सीट एससी के लिए सुरक्षित सीट है, जहां सभी जाति और धर्म को मानने वाले मतदाताओं की बहुलता है. लेकिन हाल के कुछ दशकों में इस क्षेत्र में दूसरे राज्यों से आकर बसने वाले मतदाताओं की तादाद में वृद्धि हुई है. इस वजह से बाबा नगरी देवघर सीट पर बीजेपी का जनाधार मजबूत हुआ है. अब आने वाले चुनाव में राज्य सरकार के खतियान आधारित नयी स्थानीय नीति को मुद्दा बनाकर राजद के टिकट पर तीन बार विधायक चुने गये सुरेश पासवान या किसी अन्य स्थानीय नेता को महागठबंधन अपना साझा उम्मीदवार उतार दे तो फिर भाजपा के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है. इसी तरह गोड्डा से बीजेपी की टिकट पर दूसरी बार विधायक चुने गये अमित मंडल, सारठ से रणवीर सिंह और राजमहल से अनंत ओझा के खिलाफ महागठबंधन अगर साझा उम्मीदवार उतार दें तो इन चारों सीटों पर बीजेपी को महागठबंधन के चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है.
संथाल के सभी 18 सीटों के पूर्व के चुनाव परिणामों पर गौर करेंगे तो झारखंड राज्य गठन के बाद से लगातार सत्तारूढ़ दलों को एंटी इंक्मबेंसी का नुकसान उठाना पड़ा है. इसका बड़ा उदाहरण 2019 के विधानसभा चुनाव में देखा गया. राज्य के तात्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 5 वर्षों में काफी ज्यादा समय संथाल क्षेत्र में दिया. लगभग 170 बार संथाल परगना प्रमंडल का दौरा किया. इसके बावजूद आठों में से सिर्फ चार सीट ही बचा पाई.
15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य अस्तित्व आया. इससे पहले एकीकृत बिहार में संथाल परगना के 18 सीटों में सिर्फ पांच सीटों पर बीजेपी का कब्जा था. इसमें राजमहल, महेशपुर, जरमुंडी, पौड़ैयाहाट और महगामा शामिल हैं. इसके बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन दुमका के सांसद केंद्रीय राज्य मंत्री बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में राज्य में भाजपा की पहली सरकार बनी. बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्रित्व काल में नई डोमिसाइल नीति की घोषणा की गयी. सरकार की इस नीति के खिलाफ राज्य में भारी असंतोष उभर कर सामने आये और 28 माह के भीतर ही बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी और डोमिसाइल के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
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साल 2005 के विधानसभा के चुनाव में संथाल में भाजपा को भारी कामयाबी मिली और 18 में से 7 सीटों पर जीत हासिल की. इसमें जामा, जामताड़ा, मधुपुर, पोड़ैयाहाट, गोड्डा, महगामा शामिल हैं. जदयू के खाते में देवघर सीट आई. साल 2005 में अर्जुन मुंडा की सरकार बनी. लेकिन कुछ महीने के बाद ही सरकार गिर गई. इसके बाद कांग्रेस, झामुमो और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से मधु कोड़ा के नेतृत्व में नयी सरकार बनी. साल 2009 में झारखंड विधानसभा के चुनाव में गैर भाजपा दलों की एक जुटता ने संथाल परगना में भाजपा को हाशिए पर ला खड़ा कर दिया. इस चुनाव में भाजपा को सिर्फ दो सीटें मिली. यह वही वक्त था जब भाजपा और झामुमो मिलकर सरकार बनाई थी. अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने थे और हेमंत सोरेन के साथ सुदेश महतो डिप्टी सीएम.
साल 2014 के विधानसभा चुनाव में परगना प्रमंडल के 18 सीटों में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, झाविमो के टिकट पर सारठ से निर्वाचित रणधीर सिंह कुछ दिनों में भाजपा में शामिल हो गये और राज्य के कृषि मंत्री बने. 2014 में रघुवर दास के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. राज्य गठन के बाद पहली बार भाजपा के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. लेकिन 2019 के चुनाव में बीजेपी के सिर्फ चार सीट मिली. वहीं, जेएमएम को नौ और कांग्रेस को पांच सीटों पर जीत मिली.
वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के प्रस्ताव को मंजूरी देकर आदिवासी और मूलवासियों को अपने पाले में खड़े करने का मारक अस्त्र का प्रयोग किया है. लेकिन विधानसभा चुनाव होने में अभी 27 महीने का समय है. जेएमएम को वर्तमान में 18 में से 9 सीटों पर कब्जा है. 2024 में होने वाली चुनाव तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार अपने वायदे के अनुरूप 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को धरातल पर उतारने में सफल होती हैं तो उसे इसका लाभ मिल सकता है. लेकिन सरकार अपनी घोषणा को सरजमीन पर नहीं उतार पाती है तो इस सरकार को भी पूर्व की तरह ऐंटी इंक्मबेंसी से दो- चार होना पड़ेगा. दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि आने वाले चुनाव की बात अभी से करना ठीक नहीं है. लेकिन इतना तय है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा भी यह जानती है कि 1932 का खतियान लागू होने वाला नहीं है. इसके बावजूद वह लोगों को दिग्भ्रमित करने के लिए यह सब कर रही है.