दुमका: पूरे संथाल परगना क्षेत्र में भूमिगत पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड की समस्या है. इसके कारण सरकार भी अब छोटे-छोटे वाटर सप्लाई स्कीम बनाकर पाइप लाइन से पानी पहुंचाने का काम कर रही है. लेकिन सूखे की मार झेल रहे इन क्षेत्रों में पानी के सतही जलस्रोत भी भूमिगत होने लगे हैं.
जिले में पिछले 2 वर्षों से काफी कम बारिश हो रही है, जिसका असर इस वर्ष भी देखने को मिल रहा है. इस वजह से मयूराक्षी नदी पर बने मसानजोर डैम का जलस्तर काफी नीचे चला गया है. इस वर्ष मसानजोर डैम का जलस्तर अब तक के न्यूनतम स्तर 360 फीट तक पहुंच गया है. 2018 में यह आंकड़ा 370 फीट और 2017 में 367 फीट तक था. स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसी स्थिति उन्होंने आज तक नहीं देखी.
क्या कहते हैं पेयजल विभाग के अभियंता
दुमका जिले के पेयजल विभाग के कार्यपालक अभियंता मनोज चौधरी का कहना है कि पिछले वर्ष बारिश कम होने की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है. मसानजोर डैम से पांच रूरल वाटर प्लांट संचालित हैं. इसमें से 3 पानी के अभाव में बंद हो चुके हैं जबकि 2 वाटर प्लांट रेगुलर पानी नहीं दे पा रहे हैं.
पेयजल विभाग के कार्यपालक अभियंता मनोज चौधरी कहते हैं कि जिस हिसाब से जलस्तर नीचे जा रहा है, इससे लोगों को सचेत होने की जरूरत है. बारिश के पानी को कैसे रोका जाये इसपर विचार करना और उसे अमलीजामा पहनाना काफी जरूरी हो चुका है. इसके साथ ही पानी के बचत को लेकर भी लोगों को जागरूक करने की जरूरत है.
मसानजोर डैम
यह डैम दुमका-सिउड़ी रोड पर स्थित है, जो झारखंड-बंगाल की सीमा को जोड़ता है. मयूराक्षी नदी पर वर्ष 1954 में कनाडा सरकार के सहयोग से यह बांध बनाया गया था. डैम पूरी तरह से झारखंड की भूमि पर है. कनाडा की वास्तु शैली में बने होने के कारण इस बांध को कनाडा बांध या पीयरसन बांध के नाम से भी जाना जाता है. इसके निर्माण का उद्देश्य तत्कालीन बिहार-बंगाल के लिए बिजली उत्पादन और सिंचाई करना था.
डैम के निर्माण के दौरान बिहार सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच हुए करार के मुताबिक डैम से झारखंड क्षेत्र को मात्र दो स्लुईस गेट से सिंचाई का पानी उपलब्ध होना तय है जबकि कुल 21 मुख्य द्वार का पानी पश्चिम बंगाल को मिलना है. डैम के पानी से तैयार होनेवाले चार मेगावाट क्षमता वाली पनबिजली की आपूर्ति भी झारखंड के बजाए पश्चिम बंगाल को ही होती है.