ETV Bharat / city

विलुप्त न हो जाए संथाल आदिवासियों की लोक कला चदर बदोनी, सरकार ने की संरक्षण की पहल

आदिवासियों की संस्कृति हमेशा से सभी को अपनी ओर आकर्षित करने वाली रही है. अनुठी परंपराओं से धनी इस समुदाय में कई तरह के ऐसे रीति-रिवाज हैं जिनका जुड़ाव दूसरी संस्कृति से भी देखा जा सकता है. कुछ ऐसा ही प्रमाण देती है आदिवासियों की चदर-बदोनी की परंपरा जो अब कभी-कभार ही देखने को मिलती है.

लोक कला चदर बदोनी
author img

By

Published : Oct 29, 2019, 7:44 PM IST

दुमकाः कठपुतली नृत्य जैसी एक लोक कला संथाल आदिवासियों से जुड़ी है. झारखंड में इसे चदर बदोनी या चदर बदर कहा जाता है. इस लोक कला में लकड़ी से बनी कठपुतलियों को एक ढांचे पर कसकर 8-10 लोगों की टीम मांदर, नगाड़ा, घुंघरू, झाल और करताल जैसे पांरपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते-गाते हैं. इस कला को बांग्ला में पुटूल और हिंदी में कठपुतली के नाम से जाना जाता है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-रांची रेल मंडल ने तैयार किए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, विश्व पटल पर रोशन कर रहे झारखंड का नाम

क्या कहते हैं लोक कलाकार

आदिवासियों की ये मान्यता है कि इंसान एक कठपुतली के जैसा है, जिसकी डोर भगवान के हाथ में है. चदर बदोनी में इसी भावना को आदिवासी संस्कृति और रीति रिवाज से जोड़कर प्रदर्शित करते हैं. धीरे-धीरे अब ये कला विलुप्त होती जा रही है. लोक कलाकार मानेश्वर मुर्मू के अनुसार चदर बदोनी काफी पुरानी लोक कला है. अब इस कला को जानने वाले काफी कम लोग बचे हैं. उनका ये भी कहना है कि सरकार इस कला को प्रोत्साहित करे तो ये आदिवासियों की संस्कृति के साथ इससे जुड़े लोक कलाकारों का भी विकास होगा.

सरकार की पहल

भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प विभाग ने चदर बदोनी को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है. हस्त शिल्प विभाग की क्षेत्रीय निदेशक वाणी व्रत राय ने ईटीवी भारत को बताया कि विभाग की रिपोर्ट में ये कला विलुप्ति की कगार पर है लेकिन अब इसके विकास के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है. पर्यटन विभाग भी देश-विदेश में इस कला के प्रचार-प्रसार की योजना बना रहा है ताकि इससे जुड़े कलाकारों को मान सम्मान के साथ उचित पारिश्रमिक भी मिले.

चदर बदौनी कठपुतली लोक कला झारखंड के संथाल परगना के अलावा पश्चिम बंगाल और ओडिशा के सीमावर्ती इलाकों में भी लोकप्रिय है. सरकार के प्रयासों से उम्मीद है कि चदर बदोनी की ये चहक बरकार रहेगी और इसके साथ ही लोक कलाकारों का भी भला हो सकेगा.

दुमकाः कठपुतली नृत्य जैसी एक लोक कला संथाल आदिवासियों से जुड़ी है. झारखंड में इसे चदर बदोनी या चदर बदर कहा जाता है. इस लोक कला में लकड़ी से बनी कठपुतलियों को एक ढांचे पर कसकर 8-10 लोगों की टीम मांदर, नगाड़ा, घुंघरू, झाल और करताल जैसे पांरपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते-गाते हैं. इस कला को बांग्ला में पुटूल और हिंदी में कठपुतली के नाम से जाना जाता है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-रांची रेल मंडल ने तैयार किए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, विश्व पटल पर रोशन कर रहे झारखंड का नाम

क्या कहते हैं लोक कलाकार

आदिवासियों की ये मान्यता है कि इंसान एक कठपुतली के जैसा है, जिसकी डोर भगवान के हाथ में है. चदर बदोनी में इसी भावना को आदिवासी संस्कृति और रीति रिवाज से जोड़कर प्रदर्शित करते हैं. धीरे-धीरे अब ये कला विलुप्त होती जा रही है. लोक कलाकार मानेश्वर मुर्मू के अनुसार चदर बदोनी काफी पुरानी लोक कला है. अब इस कला को जानने वाले काफी कम लोग बचे हैं. उनका ये भी कहना है कि सरकार इस कला को प्रोत्साहित करे तो ये आदिवासियों की संस्कृति के साथ इससे जुड़े लोक कलाकारों का भी विकास होगा.

सरकार की पहल

भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प विभाग ने चदर बदोनी को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है. हस्त शिल्प विभाग की क्षेत्रीय निदेशक वाणी व्रत राय ने ईटीवी भारत को बताया कि विभाग की रिपोर्ट में ये कला विलुप्ति की कगार पर है लेकिन अब इसके विकास के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है. पर्यटन विभाग भी देश-विदेश में इस कला के प्रचार-प्रसार की योजना बना रहा है ताकि इससे जुड़े कलाकारों को मान सम्मान के साथ उचित पारिश्रमिक भी मिले.

चदर बदौनी कठपुतली लोक कला झारखंड के संथाल परगना के अलावा पश्चिम बंगाल और ओडिशा के सीमावर्ती इलाकों में भी लोकप्रिय है. सरकार के प्रयासों से उम्मीद है कि चदर बदोनी की ये चहक बरकार रहेगी और इसके साथ ही लोक कलाकारों का भी भला हो सकेगा.

Intro:दुमका -
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प विभाग द्वारा आदिवासियों की लोक कला चदर - बदोनी जिसे चदर - बदरभी कहा जाता है करते हैं उसे संरक्षित किया जाएगा । यह आदिवासी लोक कला कठपुतली कला की तरह ही है । इसमें 8 से 10 लोगों की टीम होती है जो कठपुतली को नचाकर और आदिवासी संस्कृति , उनके रीति रिवाज से जुड़े गीत गाकर लोगों का मनोरंजन करती है । लेकिन धीरे-धीरे अब यह कला विलुप्त होती जा रही है ।




Body:क्या कहते हैं कलाकार ।
---------------------------------
इसके कलाकार मानेश्वर मुर्मू कहते हैं कि यह आदिवासी लोक कला चदर - बदोनी काफी पुरानी है । वे कहते हैं अब इस कला को जानने वाले काफी कम रह गए हैं । उनका कहना है कि सरकार हमारे लिए काम करें और इस कला को प्रोत्साहित करें तो यह लोक कला का काफी विकास होगा । इधर इस कला के जानकर भी मानते हैं कि इस लोक कला के विकास के लिए सरकार को बड़ा प्रयास करना चाहिए ।

बाईंट - मानेश्वर मुर्मू , लोक कलाकार
बाईंट - शिखा आनन्द , स्थानीय


Conclusion:क्या कहते हैं अधिकारी ।
-------------------------------
भारत सरकार के इस विलुप्त लोक कला के संरक्षण में जुट गई है । हस्तशिल्प विभाग के पूर्व क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक वाणीव्रत राय कहते हैं कि हमारे रिपोर्ट में यह विलुप्ति के कगार पर है । लेकिन अब इसके विकास के लिए हम हरसंभव प्रयास में जुट गए हैं । इसका विकास होगा । वे कहते हैं पर्यटन विभाग द्वारा भी इसके विकास के लिए काम किए जाएंगे । देश-विदेश के पर्यटकों के सामने यह कला प्रदर्शित की जाएगी ताकि इससे जुड़े कलाकारों को उनका मान सम्मान के साथ उचित पारिश्रमिक भी मिले ।

बाईंट - वाणी व्रत राय , क्षेत्रीय निदेशक , हस्त शिल्प विभाग , भारत सरकार।

फाईनल वीओ -

आदिवासियों के इस लोक कला चदर बदोनी पर भारत सरकार की अगर नजर गई है तो यह आशा की जानी चाहिए कि अब विलुप्त हो रहे इस कला में नई जान फूंकी जाएगी और इसका समुचित विकास होगा ।

मनोज केशरी
ईटीवी भारत
दुमका
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.