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किसानों की खुशहाली के लिए बना कृषि अनुसंधान केंद्र बदहाल, कर्मचारियों की कमी से नहीं हो रहा काम

दुमका कृषि अनुसंधान केंद्र कर्मचारियों और वैज्ञानिकों की कमी के कारण बदहाली के कगार पर पहुंच गया है. करोड़ों की लागत से बने इस केंद्र से किसानों को फायदा नहीं हो रहा है. झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने भवन का निरीक्षण कर अनुसंधान केंद्र को बेहतर बनाने का आश्वासन दिया है.

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दुमका कृषि अनुसंधान केंद्र
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Published : Jan 29, 2022, 8:25 PM IST

Updated : Jan 29, 2022, 9:19 PM IST

दुमका: केंद्र हो या राज्य सरकार कृषि और किसानों की उन्नति की बात करती है. लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा जब किसानों के विकास के लिए जो सरकारी संस्थान हैं उसका फायदा किसानों को मिले. लेकिन झारखंड की उपराजधानी दुमका में ऐसा होता नहीं दिख रहा है. यहां कृषि अनुसंधान केंद्र की बदहाली की वजह से किसानों को वो फायदा नहीं मिल रहा है जिसका दावा किया गया था.

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कृषि अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिकों का आभाव: 1990 में करोड़ों की लागत से बना कृषि अनुसंधान केंद्र वैज्ञानिकों के आभाव के कारण बेकार पड़ा हुआ है. यहां के लिए वैज्ञानिकों के 15 पद सृजित किए गए थे जिसमें मिट्टी वैज्ञानिक, पौधा प्रजनन अनुवांशिकी विशेषज्ञ , कीट विज्ञान विशेषज्ञ, मौसम वैज्ञानिक जैसे पद सृजित हैं. लेकिन वर्तमान में एक वैज्ञानिक एके साहा उद्यान विज्ञान विशेषज्ञ के तौर पर पदस्थापित हैं. बाकी सभी पद खाली है. इसके अलावे इस संस्थान का सबसे बड़ा एसोसिएट डायरेक्टर का पद भी 3 साल से खाली पड़ा है. फील्ड वर्कर, क्लर्क और फोर्थ ग्रेड के अधिकांश पद भी खाली है. ऐसे में जब इस संस्थान के जिम्मे संथालपरगना के 6 जिलों के अतिरिक्त गिरिडीह, बोकारो और कोडरमा के किसानों को भी लाभ पहुंचाना है वैसे में कर्मियों की कमी सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है.

देखें वीडियो

धूल फांक रही हैं प्रयोगशाला: अनुसंधान के लिए इस केंद्र में कई प्रयोगशाला हैं जो वैज्ञानिकों के अभाव में बेकार पड़ा है. यहां लगभग 10 वर्ष पूर्व उत्तम किस्म के पौधे के उत्पादन के लिए उत्तक संवर्धन केंद्र एक करोड़ की लागत से खोला गया था. जो निर्माण के कुछ ही माह के बाद खराब हो गया. आज तक यह खराब ही पड़ा हुआ है. सारे मशीन बिना इस्तेमाल के ही बेकार हो चुके हैं.

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नहीं पूरा हो रहा है उद्देश्य: दुमका शहर के बीचो बीच लगभग 100 एकड़ जमीन पर फैले इस अनुसंधान केंद्र की स्थापना किसानों को आधुनिक तकनीक, उत्तम नस्ल के पौधे उपलब्ध कराना, और मिट्टी की जांच कर बताना था कि इसकी गुणवत्ता कैसे बढ़ाई जाए. इसके साथ ही कौन सी फसल किस मिट्टी में बेहतर होगा इसकी जानकारी भी उपलब्ध कराना इसका उद्देश्य था. लेकि अब ये सभी इस अनुसंधान केंद्र में बंद है.

क्या कहते हैं इजरायल से लौटे किसान: इस अनुसंधान केंद्र से किसानों को काफी उम्मीदें थी लेकिन वह पूरी नहीं हुई. दुमका के प्रगतिशील किसान जयप्रकाश मंडल जिन्हें झारखंड सरकार ने कृषि क्षेत्र में प्रशिक्षण हेतु इजराइल भेजा था. उनका कहना है कि इस अनुसंधान केन्द्र से कोई लाभ किसानों को प्राप्त नहीं हो रहा है. जबकि यह काफी बड़ा संस्थान है. वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि इस संस्थान का जो उद्देश्य है उस अनुरूप इसे विकसित किया जाए ताकि किसानों को इसका लाभ मिल सके.

ये भी पढ़ें- दुमका में विकास के दावे कितने सच कितने झूठ, पढ़िए पूरी खबर

अनुसंधान केंद्र पर करोड़ों खर्च: इस संस्थान की स्थापना से लेकर मानव संसाधन और अन्य उपकरणों पर हुए खर्च का अगर हिसाब लगाएं तो वह करोड़ों रुपयों का है इसकी जो जमीन है वही वर्तमान समय में काफी कीमती हो चुकी है. इसके साथ ही भले ही वर्तमान समय में यहां वैज्ञानिक नहीं है लेकिन 3 वर्ष पूर्व यहां कई वैज्ञानिक पदस्थापित थे.साथ ही साथ अन्य जो पद हैं उसमें भी लोग बहाल थे.अगर हम यहां के वेतन मद की बात करें तो वह भी करोड़ों रुपए में जाएगा. ऐसे में हम कह सकते हैं कि करोड़ों रुपए के इस संस्थान से किसानों को बहुत कम फायदा हुआ है.

सांसद का सरकार पर निशाना: दुमका के कृषि अनुसंधान केंद्र की बदहाली पर सांसद सुनील सोरेन ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का ध्यान इस दिशा में नहीं है. सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए था. उन्होंने कहा कि मैं केंद्र सरकार के विभागीय मंत्री से बात करूंगा और यह संस्थान कैसे समृद्ध हो इसका प्रयास किया जाएगा.

केंद्र का निरीक्षण करेंगे कृषि मंत्री: इस कृषि अनुसंधान केंद्र की बदहाली को लेकर जब झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख से बात की कई तो उन्होंने कहा कि इस केंद्र की क्या स्थिति है इसका निरीक्षण मैं खुद करूंगा. साथ ही बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अधिकारियों को भी निर्देश दूंगा. कृषि मंत्री ने कहा कि इसे कैसे बेहतर बनाया जाए इस पर काम किया जाएगा.

दुमका: केंद्र हो या राज्य सरकार कृषि और किसानों की उन्नति की बात करती है. लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा जब किसानों के विकास के लिए जो सरकारी संस्थान हैं उसका फायदा किसानों को मिले. लेकिन झारखंड की उपराजधानी दुमका में ऐसा होता नहीं दिख रहा है. यहां कृषि अनुसंधान केंद्र की बदहाली की वजह से किसानों को वो फायदा नहीं मिल रहा है जिसका दावा किया गया था.

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कृषि अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिकों का आभाव: 1990 में करोड़ों की लागत से बना कृषि अनुसंधान केंद्र वैज्ञानिकों के आभाव के कारण बेकार पड़ा हुआ है. यहां के लिए वैज्ञानिकों के 15 पद सृजित किए गए थे जिसमें मिट्टी वैज्ञानिक, पौधा प्रजनन अनुवांशिकी विशेषज्ञ , कीट विज्ञान विशेषज्ञ, मौसम वैज्ञानिक जैसे पद सृजित हैं. लेकिन वर्तमान में एक वैज्ञानिक एके साहा उद्यान विज्ञान विशेषज्ञ के तौर पर पदस्थापित हैं. बाकी सभी पद खाली है. इसके अलावे इस संस्थान का सबसे बड़ा एसोसिएट डायरेक्टर का पद भी 3 साल से खाली पड़ा है. फील्ड वर्कर, क्लर्क और फोर्थ ग्रेड के अधिकांश पद भी खाली है. ऐसे में जब इस संस्थान के जिम्मे संथालपरगना के 6 जिलों के अतिरिक्त गिरिडीह, बोकारो और कोडरमा के किसानों को भी लाभ पहुंचाना है वैसे में कर्मियों की कमी सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है.

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धूल फांक रही हैं प्रयोगशाला: अनुसंधान के लिए इस केंद्र में कई प्रयोगशाला हैं जो वैज्ञानिकों के अभाव में बेकार पड़ा है. यहां लगभग 10 वर्ष पूर्व उत्तम किस्म के पौधे के उत्पादन के लिए उत्तक संवर्धन केंद्र एक करोड़ की लागत से खोला गया था. जो निर्माण के कुछ ही माह के बाद खराब हो गया. आज तक यह खराब ही पड़ा हुआ है. सारे मशीन बिना इस्तेमाल के ही बेकार हो चुके हैं.

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नहीं पूरा हो रहा है उद्देश्य: दुमका शहर के बीचो बीच लगभग 100 एकड़ जमीन पर फैले इस अनुसंधान केंद्र की स्थापना किसानों को आधुनिक तकनीक, उत्तम नस्ल के पौधे उपलब्ध कराना, और मिट्टी की जांच कर बताना था कि इसकी गुणवत्ता कैसे बढ़ाई जाए. इसके साथ ही कौन सी फसल किस मिट्टी में बेहतर होगा इसकी जानकारी भी उपलब्ध कराना इसका उद्देश्य था. लेकि अब ये सभी इस अनुसंधान केंद्र में बंद है.

क्या कहते हैं इजरायल से लौटे किसान: इस अनुसंधान केंद्र से किसानों को काफी उम्मीदें थी लेकिन वह पूरी नहीं हुई. दुमका के प्रगतिशील किसान जयप्रकाश मंडल जिन्हें झारखंड सरकार ने कृषि क्षेत्र में प्रशिक्षण हेतु इजराइल भेजा था. उनका कहना है कि इस अनुसंधान केन्द्र से कोई लाभ किसानों को प्राप्त नहीं हो रहा है. जबकि यह काफी बड़ा संस्थान है. वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि इस संस्थान का जो उद्देश्य है उस अनुरूप इसे विकसित किया जाए ताकि किसानों को इसका लाभ मिल सके.

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अनुसंधान केंद्र पर करोड़ों खर्च: इस संस्थान की स्थापना से लेकर मानव संसाधन और अन्य उपकरणों पर हुए खर्च का अगर हिसाब लगाएं तो वह करोड़ों रुपयों का है इसकी जो जमीन है वही वर्तमान समय में काफी कीमती हो चुकी है. इसके साथ ही भले ही वर्तमान समय में यहां वैज्ञानिक नहीं है लेकिन 3 वर्ष पूर्व यहां कई वैज्ञानिक पदस्थापित थे.साथ ही साथ अन्य जो पद हैं उसमें भी लोग बहाल थे.अगर हम यहां के वेतन मद की बात करें तो वह भी करोड़ों रुपए में जाएगा. ऐसे में हम कह सकते हैं कि करोड़ों रुपए के इस संस्थान से किसानों को बहुत कम फायदा हुआ है.

सांसद का सरकार पर निशाना: दुमका के कृषि अनुसंधान केंद्र की बदहाली पर सांसद सुनील सोरेन ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का ध्यान इस दिशा में नहीं है. सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए था. उन्होंने कहा कि मैं केंद्र सरकार के विभागीय मंत्री से बात करूंगा और यह संस्थान कैसे समृद्ध हो इसका प्रयास किया जाएगा.

केंद्र का निरीक्षण करेंगे कृषि मंत्री: इस कृषि अनुसंधान केंद्र की बदहाली को लेकर जब झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख से बात की कई तो उन्होंने कहा कि इस केंद्र की क्या स्थिति है इसका निरीक्षण मैं खुद करूंगा. साथ ही बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अधिकारियों को भी निर्देश दूंगा. कृषि मंत्री ने कहा कि इसे कैसे बेहतर बनाया जाए इस पर काम किया जाएगा.

Last Updated : Jan 29, 2022, 9:19 PM IST
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