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दुमका में इस साल नहीं लगेगा राजकीय हिजला मेला, 130 साल बाद टूटी परंपरा - दुमका में हिजला मेला

संथाल परगना के मुख्यालय दुमका में हर साल लगने वाला हिजला मेला इस साल नहीं लगेगा. कोरोना की वजह से प्रशासन ने यह निर्णय लिया है. मेला नहीं लगने से लोगों में काफी मायूसी है.

hijla mela will not be held in dumka
दुमका में इस साल नहीं लगेगा राजकीय हिजला मेला
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Published : Jan 19, 2021, 11:04 PM IST

Updated : Jan 19, 2021, 11:10 PM IST

दुमकाः उपराजधानी के लोगों के लिए प्रत्येक वर्ष फरवरी माह विशेष सौगात लेकर आता है. इस माह में पिछले 130 वर्षों से अंग्रेजी शासन काल से ही एक सप्ताह तक चलने वाले जनजातीय राजकीय हिजला मेला का आयोजन होता है. यह आयोजन अब मेला न होकर दुमका के लिए एक बड़ा पर्व-त्योहार बन चुका है. यहां की सभ्यता संस्कृति से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है यह मेला. लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से इस वर्ष प्रशासन ने हिजला मेला आयोजित नहीं करने का निर्णय लिया है. इससे लोगों में काफी मायूसी देखी जा रही है.

देखें पूरी खबर
हिजला मेला के इतिहास पर एक नजरआइए जनजातीय हिजला मेला के इतिहास पर एक नजर डालते हैं. यह मेला अंग्रेजी शासनकाल में 1890 में पहली बार आयोजित हुआ था. इसकी शुरुआत तत्कालीन संथाल परगना के अंग्रेज अधिकारी जॉन रॉबर्ट्स कॉस्टेयर्स ने की थी. दरअसल अंग्रेज अधिकारी स्थानीय लोगों से मिलने-जुलने, उनके रीति-रिवाज, सभ्यता-संस्कृति से रूबरू होने के लिए इस मेले का आयोजन किया. इस मेले के आयोजन की बड़ी वजह जनता के साथ संवाद स्थापित किया जाना था. दरअसल हिजला शब्द हिज़ और लॉ दो शब्दों से मिलकर बना है. इसका अर्थ होता है 'उसका कानून'. मतलब लोगों के बीच उनसे संवाद स्थापित कर उनसे चर्चा कर कानून का निर्माण करना. अंग्रेजी शासक लोगों में उत्सुकता और उन्हें इसका आर्थिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य एक मेला भी आयोजित करते थे. लोग अपना सामान लेकर आते और उसे बेचकर दूसरा सामान खरीद कर ले जाते. इस तरह से इल मेला ने धीरे-धीरे एक बड़ा स्वरूप प्राप्त किया. जो आज तक निरंतर जारी है. मेला का आयोजन नहीं होने से लोगों में निराशा

इस वर्ष हिजला मेला आयोजित नहीं होने से लोग मायूस हैं. लोगों का कहना है कि इस मेले का सामाजिक और आर्थिक दोनों महत्व है. लोग इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. वहीं काफी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है. स्थानीय दुकानदारों के साथ-साथ दूरदराज के लोग भी यहां आकर रोजगार प्राप्त करते हैं और एक अच्छी आमदनी लेकर खुशी-खुशी अपने घर लौटते हैं. एक अनुमान के मुताबिक कम से कम दो हजार दुकानदार और खेल तमाशे वालों को यहां अच्छा रोजगार प्राप्त होता है. अब जब मेला इस वर्ष नहीं हो रहा है तो लोग मायूस हैं. जिस गांव में हिजला मेला लगता है, उस हिजला गांव के ग्राम प्रधान सुनीराम हांसदा ने कहा कि हमारे जो सगे संबंधी जनवरी माह में सोहराय में नहीं आ पाते हैं, वह फरवरी माह में लगने वाले हिजला मेला में आ जाते हैं, लेकिन इस बार मेले का आयोजन नहीं होने से वह लोग भी निराश हैं.


क्या कहना है स्थानीय जनप्रतिनिधि और उपायुक्त राजेश्वरी बी का

संथाल परगना के प्रसिद्ध हिजला मेला को लेकर दुमका जिला मुखिया संघ के अध्यक्ष चंद्रमोहन हांसदा भी मानते हैं कि यह मेला हमारे जीवन का एक अंग बन चुका है. यह सामाजिक और आर्थिक दोनों महत्व रखता है. इधर दुमका की उपायुक्त राजेश्वरी बी का कहना है कि कोरोना की वजह से हमने हिजला मेला नहीं आयोजित करने का निर्णय लिया है.


आने वाले साल का करना है इंतजार

हिजला मेला आयोजित नहीं होने से लोगों में निराशा है. हालांकि प्रशासन ने काफी सोच विचार कर लिया निर्णय लिया है. ऐसे में लोगों को मायूस होने की जरूरत नहीं. अगले वर्ष और ज्यादा धूमधाम से इसे मना लिया जाएगा और हमसब इसमें खुशी-खुशी भाग लेंगे.

दुमकाः उपराजधानी के लोगों के लिए प्रत्येक वर्ष फरवरी माह विशेष सौगात लेकर आता है. इस माह में पिछले 130 वर्षों से अंग्रेजी शासन काल से ही एक सप्ताह तक चलने वाले जनजातीय राजकीय हिजला मेला का आयोजन होता है. यह आयोजन अब मेला न होकर दुमका के लिए एक बड़ा पर्व-त्योहार बन चुका है. यहां की सभ्यता संस्कृति से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है यह मेला. लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से इस वर्ष प्रशासन ने हिजला मेला आयोजित नहीं करने का निर्णय लिया है. इससे लोगों में काफी मायूसी देखी जा रही है.

देखें पूरी खबर
हिजला मेला के इतिहास पर एक नजरआइए जनजातीय हिजला मेला के इतिहास पर एक नजर डालते हैं. यह मेला अंग्रेजी शासनकाल में 1890 में पहली बार आयोजित हुआ था. इसकी शुरुआत तत्कालीन संथाल परगना के अंग्रेज अधिकारी जॉन रॉबर्ट्स कॉस्टेयर्स ने की थी. दरअसल अंग्रेज अधिकारी स्थानीय लोगों से मिलने-जुलने, उनके रीति-रिवाज, सभ्यता-संस्कृति से रूबरू होने के लिए इस मेले का आयोजन किया. इस मेले के आयोजन की बड़ी वजह जनता के साथ संवाद स्थापित किया जाना था. दरअसल हिजला शब्द हिज़ और लॉ दो शब्दों से मिलकर बना है. इसका अर्थ होता है 'उसका कानून'. मतलब लोगों के बीच उनसे संवाद स्थापित कर उनसे चर्चा कर कानून का निर्माण करना. अंग्रेजी शासक लोगों में उत्सुकता और उन्हें इसका आर्थिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य एक मेला भी आयोजित करते थे. लोग अपना सामान लेकर आते और उसे बेचकर दूसरा सामान खरीद कर ले जाते. इस तरह से इल मेला ने धीरे-धीरे एक बड़ा स्वरूप प्राप्त किया. जो आज तक निरंतर जारी है. मेला का आयोजन नहीं होने से लोगों में निराशा

इस वर्ष हिजला मेला आयोजित नहीं होने से लोग मायूस हैं. लोगों का कहना है कि इस मेले का सामाजिक और आर्थिक दोनों महत्व है. लोग इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. वहीं काफी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है. स्थानीय दुकानदारों के साथ-साथ दूरदराज के लोग भी यहां आकर रोजगार प्राप्त करते हैं और एक अच्छी आमदनी लेकर खुशी-खुशी अपने घर लौटते हैं. एक अनुमान के मुताबिक कम से कम दो हजार दुकानदार और खेल तमाशे वालों को यहां अच्छा रोजगार प्राप्त होता है. अब जब मेला इस वर्ष नहीं हो रहा है तो लोग मायूस हैं. जिस गांव में हिजला मेला लगता है, उस हिजला गांव के ग्राम प्रधान सुनीराम हांसदा ने कहा कि हमारे जो सगे संबंधी जनवरी माह में सोहराय में नहीं आ पाते हैं, वह फरवरी माह में लगने वाले हिजला मेला में आ जाते हैं, लेकिन इस बार मेले का आयोजन नहीं होने से वह लोग भी निराश हैं.


क्या कहना है स्थानीय जनप्रतिनिधि और उपायुक्त राजेश्वरी बी का

संथाल परगना के प्रसिद्ध हिजला मेला को लेकर दुमका जिला मुखिया संघ के अध्यक्ष चंद्रमोहन हांसदा भी मानते हैं कि यह मेला हमारे जीवन का एक अंग बन चुका है. यह सामाजिक और आर्थिक दोनों महत्व रखता है. इधर दुमका की उपायुक्त राजेश्वरी बी का कहना है कि कोरोना की वजह से हमने हिजला मेला नहीं आयोजित करने का निर्णय लिया है.


आने वाले साल का करना है इंतजार

हिजला मेला आयोजित नहीं होने से लोगों में निराशा है. हालांकि प्रशासन ने काफी सोच विचार कर लिया निर्णय लिया है. ऐसे में लोगों को मायूस होने की जरूरत नहीं. अगले वर्ष और ज्यादा धूमधाम से इसे मना लिया जाएगा और हमसब इसमें खुशी-खुशी भाग लेंगे.

Last Updated : Jan 19, 2021, 11:10 PM IST
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