दुमकाः उपराजधानी के लोगों के लिए प्रत्येक वर्ष फरवरी माह विशेष सौगात लेकर आता है. इस माह में पिछले 130 वर्षों से अंग्रेजी शासन काल से ही एक सप्ताह तक चलने वाले जनजातीय राजकीय हिजला मेला का आयोजन होता है. यह आयोजन अब मेला न होकर दुमका के लिए एक बड़ा पर्व-त्योहार बन चुका है. यहां की सभ्यता संस्कृति से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है यह मेला. लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से इस वर्ष प्रशासन ने हिजला मेला आयोजित नहीं करने का निर्णय लिया है. इससे लोगों में काफी मायूसी देखी जा रही है.
इस वर्ष हिजला मेला आयोजित नहीं होने से लोग मायूस हैं. लोगों का कहना है कि इस मेले का सामाजिक और आर्थिक दोनों महत्व है. लोग इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. वहीं काफी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है. स्थानीय दुकानदारों के साथ-साथ दूरदराज के लोग भी यहां आकर रोजगार प्राप्त करते हैं और एक अच्छी आमदनी लेकर खुशी-खुशी अपने घर लौटते हैं. एक अनुमान के मुताबिक कम से कम दो हजार दुकानदार और खेल तमाशे वालों को यहां अच्छा रोजगार प्राप्त होता है. अब जब मेला इस वर्ष नहीं हो रहा है तो लोग मायूस हैं. जिस गांव में हिजला मेला लगता है, उस हिजला गांव के ग्राम प्रधान सुनीराम हांसदा ने कहा कि हमारे जो सगे संबंधी जनवरी माह में सोहराय में नहीं आ पाते हैं, वह फरवरी माह में लगने वाले हिजला मेला में आ जाते हैं, लेकिन इस बार मेले का आयोजन नहीं होने से वह लोग भी निराश हैं.
क्या कहना है स्थानीय जनप्रतिनिधि और उपायुक्त राजेश्वरी बी का
संथाल परगना के प्रसिद्ध हिजला मेला को लेकर दुमका जिला मुखिया संघ के अध्यक्ष चंद्रमोहन हांसदा भी मानते हैं कि यह मेला हमारे जीवन का एक अंग बन चुका है. यह सामाजिक और आर्थिक दोनों महत्व रखता है. इधर दुमका की उपायुक्त राजेश्वरी बी का कहना है कि कोरोना की वजह से हमने हिजला मेला नहीं आयोजित करने का निर्णय लिया है.
आने वाले साल का करना है इंतजार
हिजला मेला आयोजित नहीं होने से लोगों में निराशा है. हालांकि प्रशासन ने काफी सोच विचार कर लिया निर्णय लिया है. ऐसे में लोगों को मायूस होने की जरूरत नहीं. अगले वर्ष और ज्यादा धूमधाम से इसे मना लिया जाएगा और हमसब इसमें खुशी-खुशी भाग लेंगे.