दुमकाः जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड में स्थित मंदिरों के गांव मलूटी निवासी गोपाल दास मुखर्जी अब हमारे बीच नहीं रहे. 96 वर्ष की उम्र में मलूटी ग्राम (maluti) में ही उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन से लोगों में शोक व्याप्त है.
ये भी पढ़ेंः 400 साल पुराने मलूटी के मंदिर खस्ताहाल, अरसे से जीर्णोद्धार कार्य ठप
मलूटी के मंदिरों को दिलाई थी ख्याति
दरअसल मलूटी ग्राम में जो 68 मंदिर हैं. तीन-चार दशक पहले तक उसकी जानकारी काफी सीमित थी, लेकिन गोपाल दास मुखर्जी ने उस पर हिंदी में पुस्तक लिखी. देवभूमि मलूटी और एक बांग्ला किताब बाजरे बादले राज. इन किताबों के माध्यम से लोगों ने मलूटी के मंदिरों को जाना. जब भी कोई पुरातत्ववेत्ता या अधिकारी मलूटी जाते तो वे गोपाल दास से जानकारी शेयर करते. इससे धीरे धीरे यहां के मंदिरों की ख्याति दूर दूर तक फैलनी शुरू हुई. गोपाल दास का जन्म मलूटी गांव(maluti) में हुआ था. उन्होंने पहले वायुसेना में नौकरी की और बाद में उन्होंने गांव में ही शिक्षक के तौर पर सेवा दी.
2015 में झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास(raghubar das) दुमका गणतंत्र दिवस समारोह में आए थे. सीएम ने उस समारोह में मलूटी मंदिरों के लिए योगदान देने के लिए गोपाल दास मुखर्जी को सम्मानित किया था. उन्हें शॉल और 51 हज़ार रुपये नगद राशि दी गई थी.
आपको बता दें कि दुमका जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर शिकारीपाड़ा के मलूटी गांव में 68 मंदिर हैं. इसलिए मलूटी को मंदिरों का गांव कहा जाता है. यह मंदिर 400 वर्ष पुराने बताए जाते हैं. इसमें अधिकांश भगवान शिव के मंदिर हैं. इसके साथ ही यहां कई अन्य देवी देवताओं के मंदिर हैं. कहा जाता है कि पहले यहां 108 मंदिर हुआ करते थे लेकिन रखरखाव के अभाव में अब 68 मंदिर शेष रह गए हैं. पिछले कई वर्षों से इन मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है लेकिन बीच-बीच में रुकावट आने की वजह से काम पूरा नहीं हो पाया. 2020 और 2021 में कोरोना लहर की वजह से काम लगभग ठप पड़ा हुआ है. सरकार अगर मलूटी गांव पर ध्यान दें और इन मंदिरों का सौंदर्यीकरण कराये तो यह एक प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र के रूप में सामने आ सकता है.