दुमका: प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बासुकीनाथ धाम में इस बार श्रावणी मेले में प्रतिदिन औसतन एक लाख श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं. देश के कोने-कोने से ये शिवभक्त अपने परिवार या मित्र मंडली के साथ यहां आते हैं. बासुकीनाथ मंदिर परिसर देवघर के बैद्यनाथ धाम के मुकाबले छोटा है. ऐसे में यहां अत्यधिक भीड़ लग जाती है और अक्सर लोग अपने परिवार, सगे संबंधी, मित्रजनों से बिछड़ जाते हैं. इन्हीं बिछड़े लोगों को मिलवाने के लिए जिला प्रशासन ने पूरे मेला परिसर में पांच खोया-पाया शिविर की व्यवस्था की है. जैसे ही कोई श्रद्धालु अपनों से अलग होता है वह सीधे खोया पाया केंद्र में जाकर वहां मौजूद कर्मियों को इसकी जानकारी देता है.
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कैसे काम करता है यह केंद्र: जैसे ही कोई गुम होता उनके लोग इस केंद्र के कर्मियीं से मिलते हैं, खोये व्यक्ति का पूरा डिटेल नोट किया जाता है, जैसे उसका नाम क्या है, वे कहां के रहने वाले हैं. पूरे मेला परिसर में दर्जनों स्थानों पर लाउडस्पीकर की व्यवस्था है जो व्यक्ति खोए हुए का नाम माईकिंग के जरिए पूरे मेला परिसर में गूंजने लगता है. इसमें कहा जाता है कि आप जहां कहीं भी हैं इस जगह पर आ जाएं आपके लोग आपका इंतजार कर रहे हैं.
भटके लोगों को बाइक से पहुंचाया जाता है: अगर कोई श्रद्धालु आकर इस केंद्र के कर्मियों को कहते हैं कि वह अपनों से भटक गए हैं और उसे याद नहीं है कि हमने उसमे वाहन कहा पार्क किया था तो वहां मौजूद कर्मी अपनी बाइक से उन सभी स्थानों पर ले जाते हैं जहां वाहन पार्किंग की व्यवस्था है. उसे तब तक अपने साथ रखते हैं जब तक श्रद्धालु अपनों से नहीं मिल जाता.
घर तक पहुंचने के लिए दिये जाते हैं रुपये: इन सभी प्रयासों के बावजूद भी अगर कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो अपने दल से अलग हो गए और मिल नहीं पाए. एक दो दिन बीत गया तो प्रशासन के द्वारा उनसे उनका पता ठिकाना लिया जाता है. अगर वह खुद अपने घर तक जाने के लिए सक्षम है तो उन्हें रास्ते का भाड़ा और अन्य खर्च दिया जाता है. अगर कोई बुजुर्ग है और खुद जाने की स्थिति में नहीं है तो किसी कर्मी को उनके साथ उनके घर तक भेजने की भी व्यवस्था है. कुल मिलाकर अगर कोई बासुकीनाथ में अपनों से बिछड़ गया है तो हर हाल में आपको मिलवाने का काम किया जाएगा.
क्या कहते हैं कार्यरत कर्मी और श्रद्धालु: खोया पाया केंद्र में दर्जनों कर्मी काम कर रहे हैं. वे सेवा भाव से अपनी ड्यूटी करते हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि उन्हें उस वक्त काफी खुशी मिलती है जब वह किसी को उनके अपनों से मिलवा देते हैं. ऐसा लगता है कि उन्होंने भी कोई पुण्य का काम किया है. सबसे बड़ी बात यह है कि जिसे वे मिलवाते हैं वे और उनके परिवार वाले दोनों काफी आशीर्वाद देते हैं. यह हमारे लिए एक बड़ा पुरस्कार होता है.