ETV Bharat / city

The Great Escape: सुभाष चंद्र बोस का भारत में आखिरी सफर - नेताजी सुभाष चंद्र बोस

17 जनवरी 1941 की रात करीब 1.35 बजे कोलकाता के एलगिन रोड स्थिति 38/2 मकान एक ऐतिहासिक घटना का गवाह बना. ये तारीख, ये वक्त और ये जगह तीनों हिंदुस्तान में सदियों तक याद रखे जाएंगे. इतिहास का ये वो अध्याय है, जो आज तक पूरा नहीं हो सका है.

The Great Escape: Last journey of Subhash Chandra Bose in India
सुभाष चंद्र बोस का आखिरी सफर
author img

By

Published : Jan 22, 2021, 8:14 PM IST

Updated : Jan 22, 2021, 10:30 PM IST

कोलकाता/धनबादः उन दिनों ब्रिटिश हुकुमत ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को घर में नजरबंद कर दिया था लेकिन जो पूरे देश को आजाद करने का सपना देख रहे हों, उन्हें भला ये कैसे मंजूर होता. सुभाष चंद्र बोस ने एक पठान का वेश लिया और अपनी कार बीएलए 7169 में बैठकर ब्रिटिश एजेंटों की आंखों में धूल झोंकते हुए कोलकाता की सीमा से ओझल हो गए. नेताजी के भतीजे डॉ. शिशिर बोस रातभर कार चलाते रहे और धनबाद पहुंच गए.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

डॉ. शिशिर बोस के बेटे सुगातो बसु ने ईटीवी भारत को बताया कि 16-17 जनवरी की रात करीब एक बजकर पैंतीस मिनट पर नेताजी अपने कमरे से बाहर निकले, घर के नीचे आए. उनके पिता नेताजी को कार में बिठाकर ले गए. वे रातभर कार चलाते रहे जबतक कि वे धनबाद के पास बरारी नाम की जगह तक नहीं पहुंचे.

ये भी पढ़ें- एक ऐसी कुर्सी जिस पर बैठकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस घंटों करते थे मंथन, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

सुभाष चंद्र बोस का आखिरी सफर
इसी कार से रवाना हुए थे नेताजी

धनबाद के गोमो में देखे गए आखिरी बार

महानिष्क्रमण से पहले सुभाष चंद्र बोस आखिरी बार धनबाद के गोमो में देखे गए थे. नेताजी के मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पोते शेख मोहम्मद फखरुल्लाह ने ईटीवी भारत को बताया कि आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी कई बार उनके दादा से मिलने वेश बदलकर आया करते थे. 18 जनवरी 1941 की सुबह नेताजी पठान के वेश में आए. शेख अबदुल्ला से मुलाकात के बाद उन्हें अमीन नाम के एक दर्जी ने रात करीब 12 बजे गोमो स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर खड़ी कालका मेल में बिठाया.

सुभाष चंद्र बोस का आखिरी सफर
गोमो स्टेशन पर लगा स्मारक

अमृतसर से पेशावर होते हुए पहुंचे जापान

सुभाष चंद्र बोस अगले दिन अमृतसर पहुंचे और सड़क मार्ग के जरिए पेशावर होते हुए अफगानिस्तान चले गए. सुभाष चंद्र बोस ने न केवल ब्रिटिश हुकुमत को चकमा दिया बल्कि लगभग आधी दुनिया घूमते हुए टर्की और बर्लिन होते हुए जापान पहुंच गए. इतिहास के पन्नों में ये घटना द ग्रेट स्केप ऑफ नेताजी के नाम से दर्ज है.

इसके कई महीनों बाद उन्होंने रेडियो स्टेशन से देशवासियों को संबोधित किया. आजाद हिंद फौज की कमान संभाली और ब्रिटिश हुकूमत को सीधी चुनौती दी. सुभाष चंद्र बोस का वो संबोधन आज भी हमारी रगों में बहते रक्त को लावा बना देता है. उन्होंने कहा था कि ‘अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.’

सुभाष चंद्र बोस के आगे की जिंदगी आज भी दुनिया के सबसे बड़े रहस्यों में हैं, जिसकी गुत्थी नहीं सुलझ सकी है. कहा जाता है कि 1945 में ताइपे में एक विमान हादसे में नेताजी की जान चली गई लेकिन इसकी पुख्ता पुष्टि अब तक नहीं हो सकी है.

कोलकाता/धनबादः उन दिनों ब्रिटिश हुकुमत ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को घर में नजरबंद कर दिया था लेकिन जो पूरे देश को आजाद करने का सपना देख रहे हों, उन्हें भला ये कैसे मंजूर होता. सुभाष चंद्र बोस ने एक पठान का वेश लिया और अपनी कार बीएलए 7169 में बैठकर ब्रिटिश एजेंटों की आंखों में धूल झोंकते हुए कोलकाता की सीमा से ओझल हो गए. नेताजी के भतीजे डॉ. शिशिर बोस रातभर कार चलाते रहे और धनबाद पहुंच गए.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

डॉ. शिशिर बोस के बेटे सुगातो बसु ने ईटीवी भारत को बताया कि 16-17 जनवरी की रात करीब एक बजकर पैंतीस मिनट पर नेताजी अपने कमरे से बाहर निकले, घर के नीचे आए. उनके पिता नेताजी को कार में बिठाकर ले गए. वे रातभर कार चलाते रहे जबतक कि वे धनबाद के पास बरारी नाम की जगह तक नहीं पहुंचे.

ये भी पढ़ें- एक ऐसी कुर्सी जिस पर बैठकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस घंटों करते थे मंथन, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

सुभाष चंद्र बोस का आखिरी सफर
इसी कार से रवाना हुए थे नेताजी

धनबाद के गोमो में देखे गए आखिरी बार

महानिष्क्रमण से पहले सुभाष चंद्र बोस आखिरी बार धनबाद के गोमो में देखे गए थे. नेताजी के मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पोते शेख मोहम्मद फखरुल्लाह ने ईटीवी भारत को बताया कि आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी कई बार उनके दादा से मिलने वेश बदलकर आया करते थे. 18 जनवरी 1941 की सुबह नेताजी पठान के वेश में आए. शेख अबदुल्ला से मुलाकात के बाद उन्हें अमीन नाम के एक दर्जी ने रात करीब 12 बजे गोमो स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर खड़ी कालका मेल में बिठाया.

सुभाष चंद्र बोस का आखिरी सफर
गोमो स्टेशन पर लगा स्मारक

अमृतसर से पेशावर होते हुए पहुंचे जापान

सुभाष चंद्र बोस अगले दिन अमृतसर पहुंचे और सड़क मार्ग के जरिए पेशावर होते हुए अफगानिस्तान चले गए. सुभाष चंद्र बोस ने न केवल ब्रिटिश हुकुमत को चकमा दिया बल्कि लगभग आधी दुनिया घूमते हुए टर्की और बर्लिन होते हुए जापान पहुंच गए. इतिहास के पन्नों में ये घटना द ग्रेट स्केप ऑफ नेताजी के नाम से दर्ज है.

इसके कई महीनों बाद उन्होंने रेडियो स्टेशन से देशवासियों को संबोधित किया. आजाद हिंद फौज की कमान संभाली और ब्रिटिश हुकूमत को सीधी चुनौती दी. सुभाष चंद्र बोस का वो संबोधन आज भी हमारी रगों में बहते रक्त को लावा बना देता है. उन्होंने कहा था कि ‘अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा.’

सुभाष चंद्र बोस के आगे की जिंदगी आज भी दुनिया के सबसे बड़े रहस्यों में हैं, जिसकी गुत्थी नहीं सुलझ सकी है. कहा जाता है कि 1945 में ताइपे में एक विमान हादसे में नेताजी की जान चली गई लेकिन इसकी पुख्ता पुष्टि अब तक नहीं हो सकी है.

Last Updated : Jan 22, 2021, 10:30 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.