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झरिया सीट पर सिंह मेंशन का रहा है दबदबा, 2014 में चचेरे भाईयों के बीच हुई थी दिलचस्प जंग

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Published : Nov 5, 2019, 6:16 PM IST

झरिया सीट पर पिछले तीन दशक से एक ही परिवार यानी सिंह मेंशन का कब्जा रहा है. सूर्यदेव सिंह यहां से तीन बार विधायक रहे. उनके बाद भाई बच्चा सिंह एक बार विधायक रहे. बाद में सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती सिंह दो बार यहां की विधायक रहीं. फिलहाल उनके बेटे संजीव यहां के विधायक हैं.

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रांची: देश में कोयला उत्पादन के लिए मशहूर झरिया सीट पर पिछले तीन दशक से एक ही परिवार यानी सिंह मेंशन का कब्जा रहा है. सूर्यदेव सिंह यहां से तीन बार विधायक रहे. उनके बाद भाई बच्चा सिंह एक बार विधायक रहे. बाद में सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती सिंह दो बार यहां की विधायक रहीं. फिलहाल उनके बेटे संजीव यहां के विधायक हैं. यहां पड़ोसी राज्यों से आकर बसने वाले भी काफी तादाद में हैं. जो इस सीट पर निर्णायक की भूमिका निभाते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

सिंह मेंशन की परंपरागत सीट
साल 2014 में इस सीट पर चचेरे भाइयों ने एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकी थी. बीजेपी की टिकट पर संजीव सिंह और कांग्रेस की टिकट पर नीरज सिंह मैदान में थे. झरिया विधानसभा सीट सिंह मेंशन की परंपरागत सीट मानी जाती है. झरिया विधानसभा सीट पूरे झारखंड में हॉट सीट मानी जाती है. यहां दो परिवार के बीच लड़ाई काफी रोचक होती है. 2005, 2009 में बीजेपी से कुंती देवी जीत कर विधानसभा पहुंची थी, तो वहीं 2014 में बीजेपी ने संजीव सिंह को टिकट दिया और वो जीतकर विधानसभा पहुंचे.

नीरज सिंह से मिली थी चुनौती
संजीव सिंह को चुनौती उन्हें अपने ही चचेरे भाई और कांग्रेस उम्मीदवार नीरज सिंह से मिली, लेकिन 33 हजार से भी अधिक मत से नीरज सिंह को हार का हार का मुंह देखना पड़ा.
कुंती देवी के उत्तराधिकारी के तौर पर इन्हें झरिया का टिकट मिला था, संजीव सिंह फिलहाल जेल में बंद हैं.

ये भी पढ़ें- 'लाल' का गढ़ है निरसा, झारखंड बनने के बाद आज तक यहां नहीं खिला 'कमल'

सूर्यदेव सिंह को मजदूर संगठन से मिली थी पहचान
सूर्यदेव सिंह ने 1964 से 1974 तक कई मजदूर संगठनों में रहकर श्रमिकों की सेवा की राह पकड़ी. जेपी आंदोलन में सूर्यदेव सिंह ने खुलकर भागीदारी निभाई. वर्ष 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर उन्होंने झरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने. उसी वर्ष जनता मजदूर संघ, मजदूर संगठन बनाया. मजदूरों के हितों के लिए इसी संगठन के माध्यम से वे अंत तक लड़ाई लड़ते रहे. 1977 से लेकर 1991 तक वह झरिया क्षेत्र के विधायक रहे. 1991 में उनके निधन के बाद हुए उचुनाव में उनकी पत्नी कुंती सिंह चुनाव जीतकर विधायक बनीं. 2005 और 2009 में कुंती सिंह बीजेपी की टिकट पर फिर से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं.

12 प्रत्याशियों की हुई जमानत जब्त
2014 के विधानसभा चुनाव में संजीव सिंह को 74062 वोट मिले थे. वहीं नीरज सिंह को कुल 40370 वोट मिले थे. 15 प्रत्याशियों ने नोमिनेशन फाइल किया था. बाद में एक प्रत्याशी ने अपना नामांकन वापस ले लिया था. इस तरह झरिया के दंगल में कुल 14 प्रत्याशियों में से जनता को एक को अपना प्रतिनिधि चुनना था. यहां नीरज सिंह और संजीव सिंह के आगे दूसरा कोई प्रत्याशी नहीं टिका, चुनाव लड़ने वाले 12 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. अगर दोनों प्रत्याशियों की उम्र की बात करें तो संजीव सिंह की उम्र 30 साल से ज्यादा, तो नीरज सिंह की उम्र 2014 के चुनाव के वक्त 35 साल थी.

रांची: देश में कोयला उत्पादन के लिए मशहूर झरिया सीट पर पिछले तीन दशक से एक ही परिवार यानी सिंह मेंशन का कब्जा रहा है. सूर्यदेव सिंह यहां से तीन बार विधायक रहे. उनके बाद भाई बच्चा सिंह एक बार विधायक रहे. बाद में सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती सिंह दो बार यहां की विधायक रहीं. फिलहाल उनके बेटे संजीव यहां के विधायक हैं. यहां पड़ोसी राज्यों से आकर बसने वाले भी काफी तादाद में हैं. जो इस सीट पर निर्णायक की भूमिका निभाते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

सिंह मेंशन की परंपरागत सीट
साल 2014 में इस सीट पर चचेरे भाइयों ने एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकी थी. बीजेपी की टिकट पर संजीव सिंह और कांग्रेस की टिकट पर नीरज सिंह मैदान में थे. झरिया विधानसभा सीट सिंह मेंशन की परंपरागत सीट मानी जाती है. झरिया विधानसभा सीट पूरे झारखंड में हॉट सीट मानी जाती है. यहां दो परिवार के बीच लड़ाई काफी रोचक होती है. 2005, 2009 में बीजेपी से कुंती देवी जीत कर विधानसभा पहुंची थी, तो वहीं 2014 में बीजेपी ने संजीव सिंह को टिकट दिया और वो जीतकर विधानसभा पहुंचे.

नीरज सिंह से मिली थी चुनौती
संजीव सिंह को चुनौती उन्हें अपने ही चचेरे भाई और कांग्रेस उम्मीदवार नीरज सिंह से मिली, लेकिन 33 हजार से भी अधिक मत से नीरज सिंह को हार का हार का मुंह देखना पड़ा.
कुंती देवी के उत्तराधिकारी के तौर पर इन्हें झरिया का टिकट मिला था, संजीव सिंह फिलहाल जेल में बंद हैं.

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सूर्यदेव सिंह को मजदूर संगठन से मिली थी पहचान
सूर्यदेव सिंह ने 1964 से 1974 तक कई मजदूर संगठनों में रहकर श्रमिकों की सेवा की राह पकड़ी. जेपी आंदोलन में सूर्यदेव सिंह ने खुलकर भागीदारी निभाई. वर्ष 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर उन्होंने झरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने. उसी वर्ष जनता मजदूर संघ, मजदूर संगठन बनाया. मजदूरों के हितों के लिए इसी संगठन के माध्यम से वे अंत तक लड़ाई लड़ते रहे. 1977 से लेकर 1991 तक वह झरिया क्षेत्र के विधायक रहे. 1991 में उनके निधन के बाद हुए उचुनाव में उनकी पत्नी कुंती सिंह चुनाव जीतकर विधायक बनीं. 2005 और 2009 में कुंती सिंह बीजेपी की टिकट पर फिर से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं.

12 प्रत्याशियों की हुई जमानत जब्त
2014 के विधानसभा चुनाव में संजीव सिंह को 74062 वोट मिले थे. वहीं नीरज सिंह को कुल 40370 वोट मिले थे. 15 प्रत्याशियों ने नोमिनेशन फाइल किया था. बाद में एक प्रत्याशी ने अपना नामांकन वापस ले लिया था. इस तरह झरिया के दंगल में कुल 14 प्रत्याशियों में से जनता को एक को अपना प्रतिनिधि चुनना था. यहां नीरज सिंह और संजीव सिंह के आगे दूसरा कोई प्रत्याशी नहीं टिका, चुनाव लड़ने वाले 12 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. अगर दोनों प्रत्याशियों की उम्र की बात करें तो संजीव सिंह की उम्र 30 साल से ज्यादा, तो नीरज सिंह की उम्र 2014 के चुनाव के वक्त 35 साल थी.

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