धनबाद: कुम्हारों को उम्मीद है कि इस साल उनके चाक से बने मिट्टी के दीपक लोगों के घरों को जगमग करेंगे (Potters hoped for better diwali this year). इस बार बेहतर कमाई होगी इसकी सोच के साथ धनबाद के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कुम्हार और उसके परिवार के सदस्य मिट्टी के दिए और मूर्तियां बनाने में जुटे हुए हैं. दीया का अलावा वे लक्ष्मी गणेश की छोटी-छोटी मूर्तियां, बच्चों को खेलने के लिए खिलौने और गुल्लक भी बना रहे हैं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा कुम्हारों के चाक से बनने वाले दीपक से घरों को जगमग करने के लिए की गई अपील का असर भी धनबाद में देखने को मिल रहा है. इस बार मिट्टी के दीयों की जोरदार खरीदारी होगी इस आस में बड़े पैमाने पर दीये बनाए जा रहे हैं. कुम्हारों ने बताया कि कोरोना के बाद चाय के लिए बनाए जाने वाले कुल्हड़ की डिमांड कुछ बड़ी है. इस बार मिट्टी के दीयों की भी अच्छी बिक्री की उम्मीद है.
बढ़ती महंगाई की वजह से मिट्टी के दाम भी वृद्धि हुई है. झारखंड के कुम्हारों के द्वारा जो मिट्टी इस्तेमाल किया जाता है वह बिहार के गंगा पार से मंगाई जाती है. लोकल मिट्टी का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है. समय के साथ इसके मूल्यों में भी वृद्धि होती रहती है. यही वजह है कि यहां पर कुम्हार के लिए दीया या मिट्टी के अन्य सामान बनाने तोड़ा महंगा पड़ता है. बाजार में पहुंचने पर यह और भी महंगा हो जाता है. जबकि चाइनीस लाइट, झालर, चीनी मिट्टी से बने दीपक, आसानी से बाजारों में उपलब्ध है जो सस्ते होते हैं.
सस्ता होने के कारण अब आम लोगों ने घरों को सजाने के लिए चाइनीज लाइट और झालरों का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि वोकल फॉर लोकल का नारा बुलंद होने के कारण फिर से लोगों का रुझान मिट्टी के बनाए गए पारंपरिक दीपक और अन्य सामग्री की ओर बढ़ने लगा है. ऐसे में कुम्हारों की आस जगी है. हालांकि अब पारंपरिक तौर पर अपना पुश्तैनी काम करने वाले कुम्हार अपने बच्चों को इस धंधे में लाना नहीं चाहते. कुम्हारों ने बताया कि परिवार के बच्चों को इस पेशे में लाने की कोई मंशा नहीं है क्योंकि अगर उन्होंने पारंपरिक व्यवसाय को अपनाया तो सदैव आर्थिक रूप से पिछड़े रह जाएंगे.