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21वीं सदी में भी आधुनिकता से कोसों दूर हैं कोड़ा आदिवासी, प्रकृति से रखते हैं गहरा लगाव - etv bharat jharkhand special

धनबाद में आदिवासी समाज के कोड़ा समुदाय के लोग पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं. इनका रहन-सहन औरों से काफी अलग है. ये लोग प्रकृति प्रेमी तो हैं ही, साथ ही इनका अंदाज भी दूसरों से निराला.

कोड़ा आदिवासी समाज
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Published : Aug 9, 2019, 6:40 PM IST

धनबाद: कोयलांचल नगर निगम क्षेत्र के रंगिनीभीठा में कोड़ा आदिवासी समुदाय 4-5 पीढ़ी से रहते आ रहे हैं. इनका पेशा मिट्टी खोदकर तालाब और कुएं का निर्माण करना है. इसके अलावा यह समुदाय खेती का भी काम करता है. अभी तक इन पर आधुनिकता का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है.

देखें पूरी खबर

इनके खान-पान में मुख्य रूप से तीतर, बगुला, कौआ, मैना, चुहा, नेवला और बेमौत नामक चींटी शामिल है. उनका कहना है कि इस चींटी की चटनी खाने से सर्दी, खांसी और बुखार नहीं होता, यह एक एंटीबायोटिक की तरह काम करती है.

इनकी परंपरा अपने आप में काफी धनी है. धार्मिक त्योहारों की बात करें तो सबसे पहले इनकी जबान में भेलवा फाड़ी नामक पूजा का जिक्र होता है. इसके अलावा सीमा पूजा और सरहुल पर्व का खास महत्व है. वहीं महुआ को ये अपनी हर पूजा और रीति-रिवाज में पहले भोग की तरह इस्तेमाल करते हैं. उनका कहना है कि इसके बिना उनकी पूजा और त्योहार अधूरे हैं.

प्रकृति से जुड़ाव और उसके प्रति कोड़ा आदिवासियों का प्यार हमेशा से सराहनीय रहा है. जल, जंगल और जमीन ही इनकी कर्ता-धर्ता हैं. वर्तमान में जिस तरह तकनीकीकरण ने अपनी शाख फैलाई है, प्रकृति को बचा पाना मुश्किल हो रहा है. इससे इनकी परंपरा पर भी गहरा असर पड़ रहा है.

वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो बढ़ती तकनीक के बावजूद जिले में बसने वाले कोड़ा समुदाय के लिए इतनी भी सुविधा उपलब्ध नहीं है कि ये लोग साफ पानी के बारे में सोच सके. गांव में चापाकल हैं पर किसी काम के नहीं. महिलाओं को पानी के लिए एक से डेढ़ किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है.

मामले में जब धनबाद नगर निगम के उप विकास आयुक्त राजेश कुमार सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह जिम्मेवारी वहां के वार्ड पार्षद की है, कि वह नगर निगम को इससे अवगत कराए लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने ईटीवी भारत को इस मामले से निगम को अवगत कराने के लिए धन्यवाद दिया

धनबाद: कोयलांचल नगर निगम क्षेत्र के रंगिनीभीठा में कोड़ा आदिवासी समुदाय 4-5 पीढ़ी से रहते आ रहे हैं. इनका पेशा मिट्टी खोदकर तालाब और कुएं का निर्माण करना है. इसके अलावा यह समुदाय खेती का भी काम करता है. अभी तक इन पर आधुनिकता का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है.

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इनके खान-पान में मुख्य रूप से तीतर, बगुला, कौआ, मैना, चुहा, नेवला और बेमौत नामक चींटी शामिल है. उनका कहना है कि इस चींटी की चटनी खाने से सर्दी, खांसी और बुखार नहीं होता, यह एक एंटीबायोटिक की तरह काम करती है.

इनकी परंपरा अपने आप में काफी धनी है. धार्मिक त्योहारों की बात करें तो सबसे पहले इनकी जबान में भेलवा फाड़ी नामक पूजा का जिक्र होता है. इसके अलावा सीमा पूजा और सरहुल पर्व का खास महत्व है. वहीं महुआ को ये अपनी हर पूजा और रीति-रिवाज में पहले भोग की तरह इस्तेमाल करते हैं. उनका कहना है कि इसके बिना उनकी पूजा और त्योहार अधूरे हैं.

प्रकृति से जुड़ाव और उसके प्रति कोड़ा आदिवासियों का प्यार हमेशा से सराहनीय रहा है. जल, जंगल और जमीन ही इनकी कर्ता-धर्ता हैं. वर्तमान में जिस तरह तकनीकीकरण ने अपनी शाख फैलाई है, प्रकृति को बचा पाना मुश्किल हो रहा है. इससे इनकी परंपरा पर भी गहरा असर पड़ रहा है.

वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो बढ़ती तकनीक के बावजूद जिले में बसने वाले कोड़ा समुदाय के लिए इतनी भी सुविधा उपलब्ध नहीं है कि ये लोग साफ पानी के बारे में सोच सके. गांव में चापाकल हैं पर किसी काम के नहीं. महिलाओं को पानी के लिए एक से डेढ़ किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है.

मामले में जब धनबाद नगर निगम के उप विकास आयुक्त राजेश कुमार सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह जिम्मेवारी वहां के वार्ड पार्षद की है, कि वह नगर निगम को इससे अवगत कराए लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने ईटीवी भारत को इस मामले से निगम को अवगत कराने के लिए धन्यवाद दिया

Intro:धनबाद: कोलाचल धनबाद में आदिवासियों की संख्या कम नहीं है: यहां पर आदिवासी समुदाय के कोड़ा, मुर्मू, टुडू, बिरहोर आदि कई अन्य समुदाय के लोग रहते हैं. झारखंड राज्य की स्थापना आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए ही हुआ था लेकिन 18 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी आज आदिवासी समुदाय के जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है,देखिए स्पेशल रिपोर्ट। आपको बता दें कि धनबाद में कोयला समुदाय के लोग कब आए हैं यह निश्चित तौर पर नहीं बता रहे हैं लेकिन वह इतना जरूर कहते हैं कि हमारे 4-5 पीढ़ी से पूर्वज यहां पर रहते आ रहे हैं. इन्होंने बस इतना ही कहा कि वह लोग सिंहभूम से यहां पर आए हैं. उन्होंने नागपुर-खड़गपुर का सिंहभूम में होने का जिक्र किया और कहा कि वे लोग मिट्टी खोदने का काम करते थे. जिसकी वजह से यहां के राजा ने तालाब खोदने के काम के लिए उन्हें बुलाया था जिसके बाद वह यहीं पर बस गए. उन्होंने कहा कि जितने भी कोड़ा समुदाय के जो लोग दूसरे जगह बसे हुए हैं वह मिट्टी खोदने के लिए ही आए हुए थे.


Body:हम कोयलांचल धनबाद के नगर निगम क्षेत्र वार्ड नंबर 23 रंगिनीभीठा में पड़ने वाले आदिवासी समुदाय कोड़ा की बात कर रहे हैं.वैसे तो इस जाति से झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी आते हैं. मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस समुदाय के लोगों को विश्वास हुआ था कि इनका उत्थान अब जरूर होगा, लेकिन आज तक इस समुदाय के लोगों को यंहा कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिल पाई है. यह समुदाय अपने पारंपरिक दिनचर्या में ही जीने को विवश है. यहां पर आपको बताना जरूरी है कि आज भी यह अपने खान-पान में तीतीर,बगुला,कौवा, मैना(सभी पक्षी), चूहा, नेवला आदि खाते हैं.साथ ही साथ बेमौत नामक एक चींटी की चटनी बड़े ही स्वाद से खाते हैं क्योंकि इस चींटी की चटनी को खाने से बरसात के दिनों में सर्दी खांसी नहीं होती है.ऐसा इस समुदाय का मानना है. लोगों ने कहा कि यह बरसात के दिनों में एंटीबायोटिक के काम करती हैं. जिससे सर्दी खांसी और बुखार नहीं होती है. अगर हम कोड़ा समुदाय के मुख्य धार्मिक त्योहारों की बात करें तो सबसे पहले इनके मुंह में भेलवा फाड़ी नामक एक पूजा करने की बात आती है. जिसे यह टांटी(दरवाजा)के कोना में करते हैं. इस पूजा में काला मुर्गा की बलि दी जाती है और यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़- अगहन के महीनों में की जाती है इसमें महुआ के दारू का भोग लगता है. दूसरी महत्वपूर्ण पूजा इस समुदाय की सीमा पूजा होती है जो घर के बाड़ी( घर के पीछे जहां साग-सब्जी लगाई जाती है उसे बाड़ी अर्थात बारी कहते हैं) में होती है, जहां पर लाल मुर्गा की बलि दी जाती है और इस मुर्गे को घर के अंदर नहीं बल्कि बाहर ही खाना होता है वहां भी महुआ शराब का भोग लगता है और सभी प्रसाद लेकर घर के अंदर प्रवेश करते हैं. यह पूजा हिंदू धर्म के कैलेंडर के अनुसार माघ महीने में होती है. तीसरी सबसे बड़ी पूजा सरहुल नामक पूजा और त्यौहार है जो लगभग झारखंड में सभी आदिवासी समुदाय के लोग मनाते हैं. इसमें कोड़ा समुदाय के लोग सादा(सफेद) मुर्गा की बलि देते हैं घर में पुआ,पूड़ी और पकवान बनाते हैं.यह हिंदू धर्म की कैलेंडर के अनुसार चैत् महीने में होता है इस पूजा में भी महुआ के शराब का भोग लगाया जाता है. अगर हम कहें तो आदिवासी समुदाय के लिए महुआ शराब एक पूजा के प्रसाद के तौर पर माना जाता है तो यह गलत नहीं होगा. एक और सबसे बड़ी बात कि यह आदिवासी समुदाय मौत के बाद भी लाश को गाड़ने के बाद महुआ शराब का सेवन करते हैं अगर मरने वाला शराब का सेवन करता है तो. आज भी जितने भी आदिवासी समुदाय है सभी समुदायों में लगभग अपने कुटुंब आने पर चाय पानी देने के पहले उन्हें महुआ शराब को ही चाय पानी की तौर पर परोसा जाता है, कोड़ा समुदाय भी ऐसा ही करता है हालांकि कुछ जगहों पर यह परंपरा पहले की है लेकिन आज भी कुछ जगहों पर चाय पानी के बाद महुआ शराब दी ही जाती है, नहीं तो आदिवासी समुदाय अपने आप को अधूरा महसूस करता है अर्थात वह गरीब आदिवासी है यह माना जाता है. धनबाद नगर निगम के शहरी क्षेत्र में रहने वाले वार्ड नंबर 23 में रंगीनी भीठा नामक एक शहरी गांव में रहने के बावजूद भी आज इस कोड़ा समुदाय के लोग तीतिर(पक्षी), नेवला,घोंघा,बेमुत(चींटी) की चटनी आदि इन सभी चीजों को नहीं भूले हैं और इन चीजों का सेवन आज ही कर रहे हैं. हालांकि आज यह सब काफी कम हो गया है लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि यह लोग सुखी संपन्न हो गए हैं,बल्कि जंगल कम हो जाने की वजह से इन लोगों को अब यह सब चीज नहीं मिल पा रहा है. हालांकि आज भी चूहा और पक्षी फसाने वाली कुछ ऐसे तरकीबें इनके पास है जो दूसरों के पास देखने को भी नहीं मिलती है. झारखंड राज्य की स्थापना ही आदिवासियों के उत्थान के लिए हुई थी,लेकिन जिस समुदाय के मुख्यमंत्री भी झारखंड में रह चुके हैं अगर हम इस समुदाय की बात करें तो धनबाद मुख्यालय से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित यह शहरी गांव नगर निगम में होने के बावजूद भी विकास की बाट जोह रहा है. क्योंकि लगभग 50 घर कोड़ा समुदाय के इस आदिवासी गांव की हकीकत यह है कि इस गांव में एक भी सरकारी कुआं नहीं है. 8 चापानल है जिसमें से 7 खराब है और कोड़ा समुदाय के अलावा और भी जाति के लोग एक चापानल पर ही निर्भर है.


Conclusion:जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने धनबाद नगर निगम के उप विकास आयुक्त राजेश कुमार सिंह से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि यह जिम्मेवारी वहां के वार्ड पार्षद की है, कि वह नगर निगम को इससे अवगत कराए लेकिन मैं ईटीवी भारत को धन्यवाद देता हूं कि इस प्रकार की जानकारी उन्होंने नगर निगम को दी है. जल्द ही एक टीम भेजकर वहां की सारी समस्याओं का निदान किया जाएगा. बाइट 1.छेगी देवी- ग्रामीण महिला 2.रघुनाथ कोड़ा- ग्रामीण 3.फुलकुमारी कोड़ा- ग्रामीण महिला 4.कार्तिक मोदी-ग्रामीण 5.नरेश मोदी-ग्रामीण 6.राजेश कुमार सिंह- उप नगर आयुक्त-धनबाद नगर निगम
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