धनबाद: न घरबार और न ही कोई संपत्ति सरकार की तरफ से मिलनेवाली पेंशन भी जिसने दान में दे दी हो. ऐसे ही हैं झारखंड के एक राजनीतिक संत, जिन्होंने शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो के साथ झारखंड आंदोलन को गति देने का काम किया था. लेकिन पिछले 10 सालों से बीमार हैं. उनके कार्यकर्ता ही अब 24 घंटे उनकी देखभाल करते हैं.
तीन बार सांसद और तीन बार विधायक रहे एके राय अब कुछ बोल नही सकते हैं,जो भी इनके सामने आते हैं, तहे दिल से उनका अभिवादन करते हैं. एके राय भी उन्हें अपनी मुट्ठी बांधते हुए हाथ उठाकर लाल सलाम जरूर करते हैं. इनकी ईमानदारी की कहानी आज भी लोगों के दिलों में है. साल 1960 में एके राय ने सिंदरी पीडीआई में बतौर रिसर्च इंजीनियर की नौकरी ज्वाइन की. अधिकारी रहते हुए साल 1966 में मजदूरों के आंदोलन में शरीक हो गए. आंदोलन में शामिल होने पर कंपनी ने उन्हें बर्खास्त कर दिया. इसके बाद मजदूरों के साथ आंदोलन की शुरुआत हुई और एके राय राजनीति में आ गए.
साल 1967 और 1969 में सीपीआईएम की टिकट से सिंदरी विधानसभा चुनाव लड़े और विधायक बने.1972 में जनवादी किसान संग्राम समिति के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत हासिल किया. साल 1977 में जेपी आंदोलन को लेकर राय जेल में थे, जेल में रहकर इन्होंने चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की.1980 और 1989 के लोकसभा चुनाव में भी राय विजयी रहे. बीपी सिंह की सरकार में राय सांसद थे, संसद में सांसदों के वेतन और सुविधाएं बढ़ाए जाने का प्रस्ताव आया. राय ने उस प्रस्ताव का विरोध किया था. यही नहीं राय ने अपना सांसद पेंशन राष्ट्रपति कोष में दान कर दिया और जेपी आंदोलन में विधायक पद से इस्तीफा देने वाले एके राय बिहार के पहले नेता थे.
पिछले 10 सालों से अब वे बीमार हैं, शूगर और प्रेशर की बीमारी के साथ ये पैरालाइसिस का शिकार हो गए हैं. इनकी यादाश्त भी चली गयी है, नुनुडीह स्थित मासस नेता सबूर गोराई और वीरेन गोराई के घर पर उनकी देखभाल होती है. उन्हें देखने के लिए सभी दलों के नेता पहुंचते हैं. एके राय की देखभाल में लगे लोग अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं।वह कहते हैं कि यह उनका सौभाग्य है कि ऐसे नेता की सेवा करने का उन्हें मौका मिला है.