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इस आग को बुझाने में असफल है सरकार, नहीं कराया जा रहा पुनर्वास

विख्यात झरिया कोयला खान में पिछले सौ साल से लगी भूमिगत आग अब झरिया शहर के नजदीक पहुंच गई है. आग बुझाने के सारे प्रयास विफल साबित हो चुके हैं. भूमिगत आग के कारण कोलियरियों के पास बसी एक दर्जन बस्तियां खत्म हो चुकी है. हर तरफ आग ली लपटें और गैस-धुएं के गुबार भयावह हालात बयां कर रहे हैं.

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Published : Sep 19, 2019, 9:29 PM IST

आग बुझने के आस में झरिया के लोग

धनबाद: कोयलांचल को देश की कोयले की राजधानी के नाम से जाना जाता है और इसकी यह पहचान खासकर झरिया इलाके से होती है. लेकिन, इसी झरिया इलाके में आज लगभग 100 वर्षों से अधिक समय से भी लोग आग के ऊपर आशियानो में रहने को मजबूर हैं. पीड़ा ऐसी कि देखने वाले भयभीत हो जाए. लेकिन सरकार और जिला प्रशासन को इससे कोई खास मतलब नहीं दिखता. जरेडा (झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार) के तहत की जा रही पुनर्वास योजना का भी हाल बहुत ही बेहाल है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

आपको बता दें कि झरिया इलाके में भूमिगत आग कोयले में फैली हुई है और यह आग लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से लगी हुई है. लेकिन कभी भी सरकार द्वारा इस आग को बुझाने का ठोस प्रयास नहीं किया गया. विज्ञान के इतने तरक्की के बाद इस आग को बुझाना नामुमकिन भी नहीं है. यहां पर रहने वाले लोग कोयला उत्खनन करने वाली कंपनी बीसीसीएल को ही दोषी मानते हैं.

ये भी पढ़ें - हजारीबाग: सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए करना होगा इंतजार, निगम बेपरवाह

BCCL दे रहा है बढ़ावा

लोगों का कहना है कि आग को जानबूझकर बीसीसीएल प्रबंधन बढ़ावा दे रही है ताकि यहां से लोग खुद ही डर से भाग जाए और वह कोयला उत्खनन आसानी से कर सके. लोगों ने कहा कि यहां पर आग को बुझा दिया गया था जिंदगी भी सामान्य हो चली थी लेकिन झरिया से धनबाद रेलवे लाइन जो अब बंद हो चुकी है. बीसीसीएल प्रबंधन ने जानबूझकर ट्रेंच कटिंग करवाया और दबी हुई आग को भड़का दिया गया. जिसके बाद हवा पकड़ने के साथ-साथ आग धीरे-धीरे फैलने लगी. लोगों ने कहा बीसीसीएल जानबूझकर इस आग को बढ़ावा दे रही है ताकि लोग डरकर यहां से भाग जाए.

ये भी पढ़ें - गोड्डा होमियोपैथी कॉलेज में 40 छात्रों को हुआ फूड पॉइजनिंग, सवालों के घेरे में कॉलेज प्रबंधन

धनबाद के इन कोलियरी इलाकों के लोगों के पुनर्वास के लिए जरेडा की स्थापना की गई थी लेकिन इसकी रफ्तार काफी धीमी है. लगभग एक लाख लोगों का पुनर्वास किया जाना है लेकिन अभी तक मात्र 3100 लोगों को ही मकान मिल पाया है और आने वाले 1-2 महीनों में 2000 लोगों को और मकान मिलेगा. यानी कि कुल मिलाकर 5000 लोगों को मकान मिल पाएगा. ऐसे में अपने तय समय सीमा 2021 तक बाकी लोगों का पुनर्वास करा पाना जरेडा के लिए भी एक चुनौती है और यह असंभव सा दिखता है.

कब तक मिलेगा न्याय

अब सवाल यह उठता है कि जो कोयला नगरी कोयले के नाम से ही जानी जाती है तो वहां बसे लोगों का दुख और दर्द को कौन समझेगा और इन्हें कब न्याय मिलेगा. 2021 तक जरेडा को सभी लोगों को इन इलाकों से दूसरी जगह शिफ्ट कर देना था. लेकिन अब यह नामुमकिन सा दिखता है वहीं जरेडा प्रभारी अजफर हसनैन का कहना है कि वह इस काम को तय समय तक पूरा करने का प्रयास करेंगे.

ये भी पढ़ें - 172 आंगनबाड़ी केंद्रों पर लटका ताला, सेविका सहायिकाओं ने की चालू करने की मांग

कैसे लगी थी आग

गलत माइनिंग से साल 1916 में लगी आग सुरंग बनाकर खनन की प्रक्रिया अवैज्ञानिक थी, जिसे आजादी के बाद निजी कोल मालिकों ने जारी रखा. कोयले का गुण है जलना. अगर एक तय समय में कोयले को नहीं निकाला जाए तो वह खुद जल उठेंगे. झरिया व आसपास के खदानों में 45 प्रतिशत कोयला जमीन के अंदर ही रह गया. अंदर के तापमान ने इन्हें जलने का मौका दिया. कोयला धधक उठा. साल 1916 में भौरा कोलियरी में आग लगने का पहला प्रमाण मिला था.

धनबाद: कोयलांचल को देश की कोयले की राजधानी के नाम से जाना जाता है और इसकी यह पहचान खासकर झरिया इलाके से होती है. लेकिन, इसी झरिया इलाके में आज लगभग 100 वर्षों से अधिक समय से भी लोग आग के ऊपर आशियानो में रहने को मजबूर हैं. पीड़ा ऐसी कि देखने वाले भयभीत हो जाए. लेकिन सरकार और जिला प्रशासन को इससे कोई खास मतलब नहीं दिखता. जरेडा (झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार) के तहत की जा रही पुनर्वास योजना का भी हाल बहुत ही बेहाल है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

आपको बता दें कि झरिया इलाके में भूमिगत आग कोयले में फैली हुई है और यह आग लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से लगी हुई है. लेकिन कभी भी सरकार द्वारा इस आग को बुझाने का ठोस प्रयास नहीं किया गया. विज्ञान के इतने तरक्की के बाद इस आग को बुझाना नामुमकिन भी नहीं है. यहां पर रहने वाले लोग कोयला उत्खनन करने वाली कंपनी बीसीसीएल को ही दोषी मानते हैं.

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BCCL दे रहा है बढ़ावा

लोगों का कहना है कि आग को जानबूझकर बीसीसीएल प्रबंधन बढ़ावा दे रही है ताकि यहां से लोग खुद ही डर से भाग जाए और वह कोयला उत्खनन आसानी से कर सके. लोगों ने कहा कि यहां पर आग को बुझा दिया गया था जिंदगी भी सामान्य हो चली थी लेकिन झरिया से धनबाद रेलवे लाइन जो अब बंद हो चुकी है. बीसीसीएल प्रबंधन ने जानबूझकर ट्रेंच कटिंग करवाया और दबी हुई आग को भड़का दिया गया. जिसके बाद हवा पकड़ने के साथ-साथ आग धीरे-धीरे फैलने लगी. लोगों ने कहा बीसीसीएल जानबूझकर इस आग को बढ़ावा दे रही है ताकि लोग डरकर यहां से भाग जाए.

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धनबाद के इन कोलियरी इलाकों के लोगों के पुनर्वास के लिए जरेडा की स्थापना की गई थी लेकिन इसकी रफ्तार काफी धीमी है. लगभग एक लाख लोगों का पुनर्वास किया जाना है लेकिन अभी तक मात्र 3100 लोगों को ही मकान मिल पाया है और आने वाले 1-2 महीनों में 2000 लोगों को और मकान मिलेगा. यानी कि कुल मिलाकर 5000 लोगों को मकान मिल पाएगा. ऐसे में अपने तय समय सीमा 2021 तक बाकी लोगों का पुनर्वास करा पाना जरेडा के लिए भी एक चुनौती है और यह असंभव सा दिखता है.

कब तक मिलेगा न्याय

अब सवाल यह उठता है कि जो कोयला नगरी कोयले के नाम से ही जानी जाती है तो वहां बसे लोगों का दुख और दर्द को कौन समझेगा और इन्हें कब न्याय मिलेगा. 2021 तक जरेडा को सभी लोगों को इन इलाकों से दूसरी जगह शिफ्ट कर देना था. लेकिन अब यह नामुमकिन सा दिखता है वहीं जरेडा प्रभारी अजफर हसनैन का कहना है कि वह इस काम को तय समय तक पूरा करने का प्रयास करेंगे.

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कैसे लगी थी आग

गलत माइनिंग से साल 1916 में लगी आग सुरंग बनाकर खनन की प्रक्रिया अवैज्ञानिक थी, जिसे आजादी के बाद निजी कोल मालिकों ने जारी रखा. कोयले का गुण है जलना. अगर एक तय समय में कोयले को नहीं निकाला जाए तो वह खुद जल उठेंगे. झरिया व आसपास के खदानों में 45 प्रतिशत कोयला जमीन के अंदर ही रह गया. अंदर के तापमान ने इन्हें जलने का मौका दिया. कोयला धधक उठा. साल 1916 में भौरा कोलियरी में आग लगने का पहला प्रमाण मिला था.

Intro:धनबाद: कोयलांचल धनबाद को देश की कोयला राजधानी के नाम से जाना जाता है और इसकी यह पहचान खासकर झरिया इलाके से होती है लेकिन, इसी झरिया इलाके में आज लगभग 100 वर्षों से अधिक समय से भी लोग आग के ऊपर आशियानो में रहने को मजबूर हैं.पीड़ा ऐसी कि देखने वाले भयभीत हो जाए लेकिन सरकार और जिला प्रशासन को इससे कोई खास मतलब नहीं दिखता. जरेडा (झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार) के तहत की जा रही पुनर्वास योजना का भी हाल बहुत ही बेहाल है. आइए जानते हैं क्या है पूरी कहानी


Body:आपको बता दें कि झरिया इलाके में भूमिगत आग कोयले में फैली हुई है और यह आग लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से लगी हुई है.लेकिन कभी भी इस आग को बुझाने का ठोस प्रयास नहीं किया गया क्योंकि आज विज्ञान इतना तरक्की कर चुका है कि इस भूमिगत आग को नहीं बुझाया जा सके यह नामुमकिन सा लगता है. यहां पर रहने वाले लोग कोयला उत्खनन करने वाली कंपनी बीसीसीएल को ही दोषी मानते हैं. लोगों का कहना है कि आग को जानबूझकर बीसीसीएल प्रबंधन बढ़ावा दे रही है ताकि यहां से लोग खुद ही डर से भाग जाए और वह कोयला उत्खनन आसानी से कर सके.

यह आग जो आप देख रहे हैं यह झरिया इलाके के लिलोरी पथरा की है. लोगों ने कहा कि यहां पर आग को बुझा दिया गया था जिंदगी भी सामान्य हो चली थी लेकिन झरिया से धनबाद रेलवे लाइन जो अब बंद हो चुकी है उस पर बीसीसीएल प्रबंधन ने जानबूझकर ट्रेंच कटिंग करवाया और दबी हुई आग को भड़का दिया गया. जिसके बाद हवा पकड़ने के साथ-साथ आग धीरे-धीरे फैलने लगी.लोगों ने कहा बीसीसीएल जानबूझकर इस आग को बढ़ावा दे रही है ताकि लोग डरकर यहां से भाग जाए.

यह आग जो आप देख रहे हैं इसकी लपटें 20 से 30 फुट ऊपर तक उठ रही है. देखने में ही यह नजारा भयावह लग रहा है लेकिन रिहायशी इलाकों से यह मात्र 10 कदम की दूरी का नजारा है.एक सड़क के दूसरी तरफ यह आग दिख रही है वहीं,सड़क के दूसरी तरफ हजारों स्थानीय लोग अपने मकानों में रहते हैं.ऐसे में किसी दिन बड़ी अनहोनी से भी इनकार नहीं किया जा सकता. स्थानीय लोगों ने कहा कि आए दिन इस आग की लपटों में जानवर अंदर चले जाते हैं. अपने बच्चों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है ताकि वह गलती से वंहा चला जाए.

लोगों ने कहा कि वह यहां रहना भी नहीं चाहते लेकिन मजबूरी है कि रहना पड़ रहा है क्योंकि दो तीन पीढ़ी से इनके पूर्वज यहां पर रहते चले आए हैं. इनका सारा कुछ रोजी रोटी जीवन यापन का जरिया सब कुछ यही है. फिर भी यह लोग यहां से जाने को तैयार हैं लेकिन सरकार या जिला प्रशासन इनके पुनर्वास की व्यवस्था कर दें ताकि यह दूसरी जगह चले जाएं.

धनबाद के इन कोलियरी इलाकों के लोगों के पुनर्वास के लिए जरेडा की स्थापना की गई थी लेकिन इसकी रफ्तार काफी धीमी है.लगभग एक लाख लोगों का पुनर्वास किया जाना है लेकिन अभी तक मात्र 3100 लोगों को ही मकान मिल पाया है और आने वाले 1-2 महीने में 2000 लोगों को और मकान मिलेगा. यानी कि कुल मिलाकर 5000 लोगों को मकान मिल पाएगा. ऐसे में अपने तय समय सीमा 2021 तक बाकी लोगों का पुनर्वास करा पाना जरेडा के लिए भी एक चुनौती है और यह असंभव सा दिखता है.

इस आग के लपटें और जहरीली गैस रिसाव से यहां के रहने वाले लोगों को कई तरह की बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है लोग बताते हैं कि बहुत ही तरह की ऐसी बीमारियां हैं जो इन जहरीली गैसों से होती है. खासकर सांस लेने में ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ता है.


झरिया के इन इलाकों में रहने वाले लोगों को बीसीसीएल प्रबंधन के द्वारा बीच-बीच में वहां से हटने की नोटिस थमा दी जाती है. जिससे लोगों में काफी भय का माहौल रहता है. लोगों को यह समझ नहीं आता कि आखिर वहां जाए तो कहां जाए वहीं, दूसरी तरफ इस नोटिस के बारे में जरेडा प्रबंधन को ही कोई जानकारी नहीं होती है. अगर हम यह कहें कि बीसीसीएल जानबूझकर लोगों में भय पैदा करने का प्रयास करती है तो यह कहना भी गलत नहीं होगा.


Conclusion:अब सवाल यह उठता है कि जो कोयला नगरी कोयले के नाम से ही जानी जाती है उसी कोयले की खानों के ऊपर बसे इन लोगों का दुख और दर्द को कौन समझेगा और इन्हें कब न्याय मिलेगा, यह देखने वाली बात होगी. 2021 तक जरेडा को सभी लोगों को इन इलाकों से दूसरी जगह शिफ्ट कर देना था लेकिन अब यह नामुमकिन सा दिखता है वही जरेडा प्रभारी अजफर हसनैन का कहना है कि वह इस काम को तय समय तक पूरा करने का प्रयास करेंगे.

बाइट-स्थानीय पुरुष और महिला
बाइट- अजफर हसनैन-जरेडा प्रभारी
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