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रावण के मुक्के की वार से प्रकट हुई है शिवगंगा, स्नान मात्र से होता है कल्याण! - jharkhand news

शिवगंगा के जल का उतना ही महत्व है, जितना गंगा जल का है. कांवरिया जब बाबधाम पहुंचते है तो सबसे पहले इसी शिवगंगा में स्नान करते हैं और फिर जल लेकर बाबा पर जलार्पण करते हैं. ऐसा माना जाता है कि शिवगंगा में स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है.

शिवगंगा में पूजा करते भक्त
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Published : Jul 27, 2019, 4:03 PM IST

देवघर: शिवगंगा सरोवर की कथा निराली है. ऐसा कहा जाता है कि रावण के मुक्के की प्रहार से इसकी उत्पत्ति हुई और ये पाताल गंगा है. इस जल का महत्व उतना ही है, जितना गंगा जल का. कांवरिया जब सुल्तानगंज से जल लेकर देवनगरी पहुंचते हैं, तो सबसे पहले इसी शिवगंगा में स्नान कर संकल्प कराकर बाबा को जल अर्पण करने जाते हैं.

देखें स्पेशल पैकेज

शिवगंगा सरोवर की कहानी
शिवगंगा सरोवर के बारे में कहा जाता है कि इसका जल कभी नहीं सूखता है. इसमें स्नान मात्र से मानव का कल्याण हो जाता है. पवित्र शिवगंगा सरोवर की कहानी के अनुसार रावण जब शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था, तब उसे लघुशंका का अहसास हुआ. लघुशंका के बाद उसे शुद्धि के लिए जल की जरूरत हुई, तो उसे जल नहीं मिला. उसने गुस्से में आकर अपने मुष्टि का प्रहार कर जल की उत्पत्ति की थी, इसे ही शिवगंगा कहा जाता है.

ये भी पढ़ें-डॉक्टर ने महिला मरीज को दी ऐसी सलाह, जिससे विधानसभा में मचा हंगामा

105 किलोमीटर की सुल्तानगंज से देवघर की यात्रा कर जब कांवरिया शिवगंगा के तट पर पहुंचते हैं, तो सबसे पहले यहां स्नान कर पूजा पाठ करते हैं. फिर ये जल लेकर बाबा पर अर्पण करते हैं. इस तट पर पहुंचकर शिवभक्त पहले स्नान कर पुरोहितों से संकल्प कराकर मनोकामना मांगते हैं. उसके बाद ये बाबा भोले के दर्शन के लिए जाते है. यह शिवगंगा सरोवर बाबा मंदिर से उत्तर दिशा में 500 मीटर की दूरी पर स्थित है.

बहरहाल, इसके पीछे की कहानी यह भी है कि देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को जब भयानक शारीरिक बीमारी हो गई थी, तब उन्होंने भी शिवगंगा में स्नान किया था. जिसके बाद उनकी बीमारी खत्म हो गई थी.
कहा जाता है कि ये जल पाताल गंगा से आई है. इसलिए इस जल का खास महत्व है. इसमें नहाने से शरीर की कई बीमारियां दूर हो जाती है. भक्त इस शिवगंगा के जल को गंगाजल की तरह ही इस्तेमाल करते हैं. इसमें स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है. भक्त जब बाबाधाम आते हैं, तो शिवगंगा में स्नान करना जरूरी समझते हैं.

देवघर: शिवगंगा सरोवर की कथा निराली है. ऐसा कहा जाता है कि रावण के मुक्के की प्रहार से इसकी उत्पत्ति हुई और ये पाताल गंगा है. इस जल का महत्व उतना ही है, जितना गंगा जल का. कांवरिया जब सुल्तानगंज से जल लेकर देवनगरी पहुंचते हैं, तो सबसे पहले इसी शिवगंगा में स्नान कर संकल्प कराकर बाबा को जल अर्पण करने जाते हैं.

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शिवगंगा सरोवर की कहानी
शिवगंगा सरोवर के बारे में कहा जाता है कि इसका जल कभी नहीं सूखता है. इसमें स्नान मात्र से मानव का कल्याण हो जाता है. पवित्र शिवगंगा सरोवर की कहानी के अनुसार रावण जब शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था, तब उसे लघुशंका का अहसास हुआ. लघुशंका के बाद उसे शुद्धि के लिए जल की जरूरत हुई, तो उसे जल नहीं मिला. उसने गुस्से में आकर अपने मुष्टि का प्रहार कर जल की उत्पत्ति की थी, इसे ही शिवगंगा कहा जाता है.

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105 किलोमीटर की सुल्तानगंज से देवघर की यात्रा कर जब कांवरिया शिवगंगा के तट पर पहुंचते हैं, तो सबसे पहले यहां स्नान कर पूजा पाठ करते हैं. फिर ये जल लेकर बाबा पर अर्पण करते हैं. इस तट पर पहुंचकर शिवभक्त पहले स्नान कर पुरोहितों से संकल्प कराकर मनोकामना मांगते हैं. उसके बाद ये बाबा भोले के दर्शन के लिए जाते है. यह शिवगंगा सरोवर बाबा मंदिर से उत्तर दिशा में 500 मीटर की दूरी पर स्थित है.

बहरहाल, इसके पीछे की कहानी यह भी है कि देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को जब भयानक शारीरिक बीमारी हो गई थी, तब उन्होंने भी शिवगंगा में स्नान किया था. जिसके बाद उनकी बीमारी खत्म हो गई थी.
कहा जाता है कि ये जल पाताल गंगा से आई है. इसलिए इस जल का खास महत्व है. इसमें नहाने से शरीर की कई बीमारियां दूर हो जाती है. भक्त इस शिवगंगा के जल को गंगाजल की तरह ही इस्तेमाल करते हैं. इसमें स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है. भक्त जब बाबाधाम आते हैं, तो शिवगंगा में स्नान करना जरूरी समझते हैं.

Intro:देवघर रावण के मुष्टि प्रहार से हुई है शिवगंगा की उत्पत्ति,पाताल गंगा की है मान्यता।


Body:एंकर शिवगंगा सरोवर की कथा भी निराली है। कहा जाता है कि रावण की मुष्टि प्रहार से इनकी उत्पत्ति हुई। और ये पाताल गंगा है। यानी इस जल का महत्व उतना ही है जितना गंगा जल का। कावरिया जब सुल्तानगंज से जल लेकर देवनगरी पहुचते है तो सबसे पहले इसी शिवगंगा में स्नान कर संकल्प कराकर बाबा को जल अर्पण करने जाते है। इस सरोवर के बारे में कहा जाता है। कि इसका जल कभी नही सूखता है साथ ही इसके स्नान मात्र से मानव का कल्याण हो जाता है। ये है पवित्र शिवगंगा सरोवर की कथा के मुताबिक रावण जब शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था तब उसे लघुशंका का अहसास हुआ ओर जब लघुशंका के बाद उसे सुद्धि के लिए जल की जरूरत हुई तो उसे जल नही मिला तभी गुस्से में आकर उसने अपने मुष्टि का प्रहार कर जल की उत्पत्ति की थी इसे ही शिवगंगा कहा जाता है। 105 किलोमीटर की सुल्तानगंज से देवघर का यात्रा कर जब कावरिया शिवगंगा के तट पर पहुचते है तो सबसे पहले यहां स्नान कर पूजा पाठ करते है। ओर फिर ये जल लेकर बाबा भोले का जयकारा लगते हुए बाबा पर जलार्पण करते है।इसी तट पर पहुचकर शिवभक्त पहले स्नान कर पुरोहितों से संकल्प कराकर मनोकामना मांगते है और उसके बाद ये बाबा भोले के दर्शन के लिए जाते है। ये शिवगंगा सरोवर बाबा मंदिर से उत्तर दिशा में 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।


Conclusion:बहरहाल,इसके पीछे की कहानी ये भी है कि देवताओं के बैध अश्वनी कुमार को भी जब एक भयानक शारीरिक बीमारी हो गयी थी तब उन्होंने भी शिवगंगा में स्नान किया था। और इनका बीमारी छूट गयी थी। कहा जाता है कि ये जल पाताल गंगा से आई है इसी लिए इस जल का खास महत्व है। इसमें नहाने से शरीर की कई बीमारियां दूर हो जाती है। भक्त इस शिवगंगा के जल जो गंगाजल की तरह ही इस्तेमाल करते है भक्त बड़े ही श्रद्धा भाव से इस पवित्र जल से स्नान कर भोले को जल अर्पण करते है।इस पवित्र शिवगंगा की पवित्रता जगजाहिर है इसी लिए इस गंगा में स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है तभी तो भक्त जब बाबाधाम आते है तो शिवगंगा में स्नान करना जरूरी समझते है ओर इस सरोवर का जल कभी नही सूखता है। लिहाजा आज भी इसका महत्व काफी है।

बाइट प्रमोद श्रृंगारी, पुरोहित बाबा मंदिर।
बाइट भक्त।
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