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युवाओं को बायोफ्लॉक प्रणाली से मत्स्य पालन का मिला प्रशिक्षण, कम लागत में कमा सकेंगे ज्यादा मुनाफा

दिन प्रतिदिन मछलियों की बढ़ती खपत को देखते हुए मत्स्य पालन विभाग ने मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जिले के मत्स्य मित्रों और बेरोजगार युवाओं को बायोफ्लॉक प्रणाली से मत्स्य पालन करने का प्रशिक्षण दिया गया.

Bioflock system training program
बायोफ्लॉक प्रणाली प्रशिक्षण कार्यक्रम
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Published : Feb 11, 2020, 5:53 PM IST

पश्चिम सिंहभूम: दिन प्रतिदिन मछलियों की बढ़ती खपत को देखते हुए मत्स्य पालन विभाग मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई तकनीक को अपना रहा है. इसी कड़ी में पश्चिम सिंहभूम जिला मत्स्य कार्यालय चाईबासा में भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची और एक्वा सॉल्यूशन कोलकाता से आए वैज्ञानिकों ने मत्स्य मित्रों को बायो फ्लॉक प्रणाली से मछली पालन करने का प्रशिक्षण दिया गया. जिस दौरान जिले के 18 प्रखंडों से मत्स्य मित्र एवं बेरोजगार युवा उपस्थित रहे और इसकी जानकारी ली.

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क्या है जिला मत्स्य पदाधिकारी का कहना
मीडिया से बातचीत के दौरान दौरान जिला मत्स्य पदाधिकारी जयंत रंजन ने बताया कि जिले के प्रत्येक मछुआरे या मत्स्य मित्र के पास तालाब नहीं हैं. इसके साथ ही झारखंड में पर्याप्त रूप से वर्षा नहीं होने के कारण मछली पालन में कई कठिनाइयों का सामना मत्स्य मित्रों को करना पड़ता है. जिसके मद्देनजर वैज्ञानिकों ने एक तकनीक बायोफ्लॉक प्रणाली बनाई है. जिससे कम पानी या बिना तालाब के भी किसी छोटे स्थल पर पर्याप्त मत्स्य पालन किया जा सकेगा, इस तकनीक की शुरुआत इजराइल से शुरू की गई थी, धीरे-धीरे ये पूरे विश्व में विकसित हो रही है. प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत मछुआरे और बेरोजगार युवा छोटे से क्षेत्र में भी उच्च उपज वाली संघन मछली की खेती कर सकेंगे.

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कम जगह में कर सकते हैं अच्छा उत्पादन
भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची से आए वैज्ञानिक डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक को एक्वाकल्चर में नई नीली क्रांति भी माना जाता है. बायोफ्लॉक में सम्मिलित सूक्ष्मजीव न रोगजनक और न हानिकारक होते हैं, इस बायोफ्लॉक प्रणाली को अपनाकर मत्स्य कृषक और बेरोजगार युवक आय अर्जित कर धनवान बन सकते हैं.

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ये लोग रहे मौजूद
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में परियोजना निदेशक आत्मा पंकज कुमार जिला पशुपालन पदाधिकारी सहित मत्स्य कार्यालय के पदाधिकारी और कर्मी उपस्थित थे.

पश्चिम सिंहभूम: दिन प्रतिदिन मछलियों की बढ़ती खपत को देखते हुए मत्स्य पालन विभाग मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई तकनीक को अपना रहा है. इसी कड़ी में पश्चिम सिंहभूम जिला मत्स्य कार्यालय चाईबासा में भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची और एक्वा सॉल्यूशन कोलकाता से आए वैज्ञानिकों ने मत्स्य मित्रों को बायो फ्लॉक प्रणाली से मछली पालन करने का प्रशिक्षण दिया गया. जिस दौरान जिले के 18 प्रखंडों से मत्स्य मित्र एवं बेरोजगार युवा उपस्थित रहे और इसकी जानकारी ली.

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क्या है जिला मत्स्य पदाधिकारी का कहना
मीडिया से बातचीत के दौरान दौरान जिला मत्स्य पदाधिकारी जयंत रंजन ने बताया कि जिले के प्रत्येक मछुआरे या मत्स्य मित्र के पास तालाब नहीं हैं. इसके साथ ही झारखंड में पर्याप्त रूप से वर्षा नहीं होने के कारण मछली पालन में कई कठिनाइयों का सामना मत्स्य मित्रों को करना पड़ता है. जिसके मद्देनजर वैज्ञानिकों ने एक तकनीक बायोफ्लॉक प्रणाली बनाई है. जिससे कम पानी या बिना तालाब के भी किसी छोटे स्थल पर पर्याप्त मत्स्य पालन किया जा सकेगा, इस तकनीक की शुरुआत इजराइल से शुरू की गई थी, धीरे-धीरे ये पूरे विश्व में विकसित हो रही है. प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत मछुआरे और बेरोजगार युवा छोटे से क्षेत्र में भी उच्च उपज वाली संघन मछली की खेती कर सकेंगे.

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कम जगह में कर सकते हैं अच्छा उत्पादन
भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची से आए वैज्ञानिक डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक को एक्वाकल्चर में नई नीली क्रांति भी माना जाता है. बायोफ्लॉक में सम्मिलित सूक्ष्मजीव न रोगजनक और न हानिकारक होते हैं, इस बायोफ्लॉक प्रणाली को अपनाकर मत्स्य कृषक और बेरोजगार युवक आय अर्जित कर धनवान बन सकते हैं.

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ये लोग रहे मौजूद
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में परियोजना निदेशक आत्मा पंकज कुमार जिला पशुपालन पदाधिकारी सहित मत्स्य कार्यालय के पदाधिकारी और कर्मी उपस्थित थे.

Intro:चाईबासा। पश्चिम सिंहभूम जिला मत्स्य कार्यालय चाईबासा में भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची एवं एक्वा सॉल्यूशन कोलकाता से आए वैज्ञानिकों के द्वारा मत्स्य मित्रों को बायो फ्लॉक प्रणाली से मछली पालन करने का प्रशिक्षण दिया गया. इस दौरान पश्चिम सिंहभूम जिले के 18 प्रखंडों से मत्स्य मित्र एवं बेरोजगार युवा उपस्थित रहे.


Body:इस दौरान जिला मत्स्य पदाधिकारी जयंत रंजन ने बताया कि जिले के मत्स्य मित्र और बेरोजगार युवा बायो फ्लॉक प्रणाली से छोटे क्षेत्र में उच्च उपज वाली संघन मछली की खेती कर सकेंगे उन्होंने कहा कि प्रत्येक मछुआरे या मत्स्य मित्र के पास तालाब नहीं है. इसके साथ ही झारखंड में पर्याप्त रूप से वर्षा नहीं होने के कारण मछली पालन में कई कठिनाइयों का सामना मत्स्य मित्रों को करना पड़ता है. इसके मद्देनजर वैज्ञानिकों के द्वारा एक तकनीक बायोफ्लॉक प्रणाली बनाई गई है. जिस से कम पानी या बिना तालाब के भी किसी छोटे स्थल पर पर्याप्त मत्स्य पालन की जा सकेगी यह तकनीक की शुरुआत इसराइल से शुरू की गई थी. यह धीरे-धीरे पूरे विश्व में विकसित हो रही है. जिसे देख जिले में भी भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची एवं एक्वा डॉक्टर सॉल्यूशन कोलकाता से आए वैज्ञानिकों के द्वारा मत्स्य मित्रों को प्रशिक्षण दी जा रही है. प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत मछुआरे एवं बेरोजगार युवा छोटे से क्षेत्र में भी उच्च उपज वाली संघन मछली की खेती कर सकेंगे.

भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची से आए वैज्ञानिक डॉ संजय गुप्ता ने कहा कि बायोफ्लॉक पानी में मौजूद एक प्रोटीन युक्त ऑर्गेनिक पदार्थों और सूक्ष्म जीव का मिश्रण है. जिसमें टाइटन, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, मल पदार्थ एवं मृत जीवो के अवशेष आदि शामिल है. इसमें जल विनिमय द्वारा लाभकारी पोषक तत्वों का लगातार पुनर्नवीकरण कर खाद्य संसाधन के रूप में उपयोग किया जाता है. इस प्रणाली को शून्य जल विनिमय तकनीक भी कहा जाता है. बायोफ्लॉक तकनीक को एक्वाकल्चर में नई नीली क्रांति भी माना जाता है. बायो फ्लॉक में सम्मिलित होने वाले सूक्ष्म जीव ट्रॉफिक परिस्थिति की यंत्र का अभिन्न अंग है क्योंकि इसमें निरंतर और प्राकृतिक पोषक तत्वों की उपलब्धता है. दोनों स्वपोषी एवं परपोषी सूक्ष्मजीवों का समावेश है. इसमें सम्मिलित सूक्ष्मजीव अपने प्रति क्रियाओं से नाइट्रोजन पदार्थों को अवयव के रूप में बदलकर खाद्य संसाधन प्रदान करते हैं. बायोफ्लॉक में सम्मिलित सूक्ष्मजीव ना रोगजनक और ना हानिकारक होते हैं इस बायो फ्लॉक प्रणाली को अपनाकर मत्स्य कृषक और बेरोजगार युवक आय अर्जित कर धनवान बन सकते हैं.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में परियोजना निदेशक आत्मा पंकज कुमार जिला पशुपालन पदाधिकारी सहित मत्स्य कार्यालय के पदाधिकारी एवं कर्मी उपस्थित थे.


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