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जिन हाथों में था 'भीख का कटोरा', अब उन बच्चों को मिला शिक्षा का 'मंदिर'

बोकारो में घुमंतू लोगों के बच्चे आम तौर पर स्कूल नहीं जाते थे. लेकिन अब वह स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. जिससे उनके इलाके के रहने वाले अन्य बच्चों को भी पढ़ने की ललक जगी है और इसके लिए डीसी और वहां के मुखिया उनके सहयोग में जुट गए है.

सड़क पर घूमने वाले बच्चे पहुंचे DAV स्कूल
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Published : Jul 15, 2019, 2:16 PM IST

Updated : Jul 18, 2019, 12:51 PM IST

बोकारो: कहा जाता है बच्चे ईश्वर का वरदान होते हैं, लेकिन जब इन बच्चों से इनका बचपन छीन कर इनके हाथ में किताब, कॉपी और स्लेट की जगह भीख का कटोरा थमा दिया जाता है, तो यह शर्मनाक हो जाता है. देश के लिए समाज के लिए और उन मां-बाप के लिए जो बच्चे को जन्म तो देते हैं लेकिन उन्हें उनका बचपन नहीं दे पाते हैं. कुछ ऐसे ही बच्चे जिन्हें जन्म के बाद से ही भीख का कटोरा हाथ में थमा दिया गया था. लेकिन अब इनकी जिंदगी में जो बदलाव हुआ है वह इनके लिए सपने से कम नहीं है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
गोमिया के गांधीग्राम में कुछ दिनों पहले तक लोग जिन बच्चों को देख लोग मुंह फेर लेते थे आज उन्हीं बच्चों की तारीफ कर रहे हैं. इन बच्चों का पेशा कभी भीख मांगना हुआ करता था. लेकिन आज इनके हाथों में स्कूल के बस्ते के साथ आगे बढ़ने का जज्बा है. इन बच्चों के हाथ अब किसी के आगे भीख के लिए नहीं बढ़ रहे हैं. बल्कि इनके कदम प्रतिष्ठित स्कूल की तरफ बढ़ रहे हैं, जो बच्चे कल तक दूसरों के सामने एक 2 रुपए के लिए गिड़गिड़ाते थे आज वह बच्चे पोयम सुना रहे हैं, जो इनके लिए गर्व की बात है. आज इनके मां-बाप इन्हें स्कूल जाता देख फूले नहीं समाते हैं. वहीं, स्कूल के शिक्षक और प्रिसिंपल भी इनकी बदलाव को देख कर काफी खुश हैं.

वहीं, डीसी कृपानंद झा का कहना है कि जो दूसरे बच्चे डीएवी और दूसरे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना चाहते हैं उन्हें भी राइट टू एजुकेशन के तहत ऐडमिशन दिलाया जाएगा.

बोकारो: कहा जाता है बच्चे ईश्वर का वरदान होते हैं, लेकिन जब इन बच्चों से इनका बचपन छीन कर इनके हाथ में किताब, कॉपी और स्लेट की जगह भीख का कटोरा थमा दिया जाता है, तो यह शर्मनाक हो जाता है. देश के लिए समाज के लिए और उन मां-बाप के लिए जो बच्चे को जन्म तो देते हैं लेकिन उन्हें उनका बचपन नहीं दे पाते हैं. कुछ ऐसे ही बच्चे जिन्हें जन्म के बाद से ही भीख का कटोरा हाथ में थमा दिया गया था. लेकिन अब इनकी जिंदगी में जो बदलाव हुआ है वह इनके लिए सपने से कम नहीं है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
गोमिया के गांधीग्राम में कुछ दिनों पहले तक लोग जिन बच्चों को देख लोग मुंह फेर लेते थे आज उन्हीं बच्चों की तारीफ कर रहे हैं. इन बच्चों का पेशा कभी भीख मांगना हुआ करता था. लेकिन आज इनके हाथों में स्कूल के बस्ते के साथ आगे बढ़ने का जज्बा है. इन बच्चों के हाथ अब किसी के आगे भीख के लिए नहीं बढ़ रहे हैं. बल्कि इनके कदम प्रतिष्ठित स्कूल की तरफ बढ़ रहे हैं, जो बच्चे कल तक दूसरों के सामने एक 2 रुपए के लिए गिड़गिड़ाते थे आज वह बच्चे पोयम सुना रहे हैं, जो इनके लिए गर्व की बात है. आज इनके मां-बाप इन्हें स्कूल जाता देख फूले नहीं समाते हैं. वहीं, स्कूल के शिक्षक और प्रिसिंपल भी इनकी बदलाव को देख कर काफी खुश हैं.

वहीं, डीसी कृपानंद झा का कहना है कि जो दूसरे बच्चे डीएवी और दूसरे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना चाहते हैं उन्हें भी राइट टू एजुकेशन के तहत ऐडमिशन दिलाया जाएगा.

Intro:बच्चे वरदान होते हैं। बच्चे शान होते हैं, आन बान होते हैं। लेकिन जब इन बच्चों से इनका बचपन छीन कर इनके हाथ में किताब कॉपी स्लेट की जगह भीख का कटोरा थमा दिया जाता है। तो यह शर्मनाक हो जाता है। देश के लिए समाज के लिए और उन मां-बाप के लिए जो बच्चे को जन्म तो देते हैं लेकिन उन्हें उनका बचपन नहीं दे पाते हैं। कुछ ऐसे ही बच्चे जिन्हें जन्म के बाद से ही भीख का कटोरा हाथ में थमा दिया गया था। और इनकी नियति भीख मांगना बना दी गई थी। ऐसे ही कुछ बच्चों की जिंदगी में वो परिवर्तन हुआ है जो किसी सपने से कम नहीं है।


Body:जी हां इन बच्चों के हाथ अब किसी के आगे भीख के लिए नहीं बढ़ रहे हैं। बल्कि बढ़ रहे हैं इनके कदम स्कूल की ओर। वह भी dav पब्लिक स्कूल जैसे प्रतिष्ठित स्कूल की तरफ। जो बच्चे कल तक दूसरों के सामने एक रुपैया 2 रुपैया के लिए गिड़गिड़ाते थे आज वह बच्चे पोयम गा रहे हैं वह भी अंग्रेजी वाली। बोकारो के गोमिया के गांधीग्राम जिसे कुछ दिनों पहले तक गुलगुलवा धौरा कहा जाता था के बच्चे जिनका पेशा भीख मांगना हुआ करता था। आज वहां के बच्चों के हाथ में स्कूल का बस्ता है। कलम है, किताब है, कॉपी है और कुछ करने आगे बढ़ने का जज्बा है


Conclusion:गांधीग्राम जहां के लोग का पैसा भीख मांगना हुआ करता था उस गांधीग्राम में आग लगी है शिक्षा की यही वजह है कि यहां के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं सरकारी स्कूल जा रहे हैं यहां के 6 बच्चे जैकी, कोमल कुमारी, सुंदर कुमार, सारिका कुमारी, वर्षा कुमारी और यशोदा कुमारी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। चंद्रिका और सुलोचना के दो बच्चे अभी-dav में पढ़ रहे हैं। चंद्रिका चाकू छुरी में धार कर परिवार के लिए बमुश्किल 2 जून की रोटी जुगाड़ कर पाता है। लेकिन चंद्रिका के बच्चे आज dav में पढ़ रहे हैं।अपने बच्चों को यहां पढ़ने जाते देख सुलोचना कहती है बच्चों को dav स्कूल ड्रेस में देख कर मन गदगदा जाता है। आत्मा तृप्त हो जाता है। इसके साथ ही कई परिवार हैं जिनके भी बच्चे दूसरे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। तो कई बच्चे सरकारी स्कूल में भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जिस गांव में बच्चे की नियति भीख इं मांगने की थी आज वहां के बच्चे स्कूलों में है। तो यह संभव हो पाया है यहां के पूर्व मुखिया विनोद और गुलाब चंद जैसे समाजसेवियों की बदौलत। इसी में इनका सहयोग स्वांग कोलियरी के सीईओ और डीएवी पब्लिक स्कूल का भी है। जिन्होंने बच्चों को अपने यहां दाखिला दिया बिना किसी भेदभाव के। अब यह बच्चे यहां के दूसरे बच्चों की तरह पढ़ रहे हैं। आगे बढ़ रहे हैं। इन को पढ़ाने वाली इन की क्लास टीचर कहती हैं। जब यह बच्चे आए थे तो किसी चैलेंज से कम नहीं थे। बहुत गंदे रहते थे। जमीन पर बैठ जाते थे।खाना गंदे तरीके से खाते थे। कपड़े गंदे पहनते थे। लेकिन आज ये वही बच्चे हैं जो दूसरे बच्चों से किसी भी मायने में नहीं है। उनका कहना है बच्चों में इस बदलाव के पीछे उनकी मेहनत तो है साथ ही इन बच्चों के मां-बाप और बच्चों की ललक है। इन बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्चा डीएवी और दूसरे समाज से भी कर रहे हैं। बोकारो उपायुक्त कृपानंद झा कहते हैं जो दूसरे बच्चे डीएवी और दूसरे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना चाहते हैं उन्हें राइट टू एजुकेशन के तहत ऐडमिशन दिलाया जाएगा। वहीं समाजसेवी गुलाब चंद्र का कहना है यह एक अच्छी शुरुआत है। अब जरूरत है सरकार का सहयोग मिले। तो वहीं आजसू के केंद्रीय महासचिव लंबोदर महतो ने यहां के लोगों से वादा किया है कि वह हर संभव मदद करेंगे। कहते हैं जहां चाह है वहां राह है। बस जरूरत कदम बढ़ाने की है। और वह कदम जब समाज के लिए होता है उस कदम की सराहना चहुओर होती है।

डीएवी में पढ़ने वाले बच्चे
शिक्षिका, स्वांग डीएवी
प्रिंसपल, स्वांग डीएवी
सुलोचना, बच्चे की मां
चमेली देवी, मुखिया स्वांग उत्तरी
गुलाब चंद्र, समाजसेवी
लंबोदर महतो, केंद्रीय सचिव आजसू
कृपानंद झा, डीसी बोकारो
Last Updated : Jul 18, 2019, 12:51 PM IST
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