बोकारो: जब सेल की स्थापना की गई थी तब इसके पीछे यह सोच थी कि इससे एक ओर जहां उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा. लेकिन 50 साल बाद भी इसकी कीमत वहां के लोग चुका रहे हैं. प्लांट में लगे बिजली उत्पादन संयंत्र से निकलने वाली छाय से ऐश पोंड के करीब बसे 5 गांव की 10 हाजर से ज्यादा आबादी बुरी तरह से प्रभावित है.
ये सभी 5 गांव उन 19 विस्थापित गांवों में से हैं, इन गांवों के लोगों को सरकार चुनने का भी अधिकार है. लेकिन कागजी तौर पर इन गांवों को कोई मान्यता नहीं है. यह गांव ना ही किसी पंचायत में है और ना ही किसी नगर निगम में. बोकारो से महज 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में कोई सरकारी सुविधा नहीं है. इस गांव के लोग सिस्टम की दोहरी मार को झेल रहे हैं.
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बीएसएल ने इनकी जमीन इस शर्त पर अधिकृत किया था, इन्हें अपने प्लांट में नौकरी देगी. लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी गुजरती जा रही है लेकिन इन्हें आज तक एक अदद नौकरी अब तक नहीं मिली. उस पर जुल्मों सितम यह है बीएसएल इनके घर के पास छाई का पहाड़ खड़ा कर रही हो. जिससे यहां के लोगों को सांस लेना भी दूभर हो गया है पाउडर से भी बारीके यह ऐश लोगों के की सांसों में जहर घोल रहा है. जिससे कैंसर, टीवी, किडनी और सांस संबंधित बीमारी हो रही है. तो वहीं छाई के पहाड़ जैसे भंडारण से इलाके की जमीन भी बंजर हो रही है. इसका असर खेती पर भी पड़ रहा है.
बता दें कि बोकारो स्टील प्लांट को चलाने के बीएसएल और डीबीसी के ज्वाइंट वेंचर से बीपीएसीएल पावर प्लांट का निर्माण किया गया था. इसके पीछे यह तर्क था की प्लांट के पास अपना बिजली उत्पादन यूनिट होगा तो उन्हें किसी और पर निर्भर नहीं रहना होगा. और इससे उत्पादन प्रभावित नहीं होगा. जिसके बाद यहां बीपीएसएल में बिजली उत्पादन के लिए कोयले को जलाया जाता है. जब वह कोयला जल जाता है उसके राख को विस्थापित गांव के समीप जिसे ऐश पौंड कहा जाता है वहां डंप कर दिया जाता है. इससे महुआर, पिपराडीह, आगरडीह और महेशपुर सहित कोई गांव हैं जो पूरी तरह से प्रभावित है.इस मामले पर बोकारो के उपायुक्त कृपानंद झा का कहना है कि छाय के निस्तारण के लिए रूल रेगुलेशन बने हुए हैं. अगर उसका पालन नहीं हो रहा है उस पर कार्रवाई की जाएगी.