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रोजगार की आस में दी थी जमीन, अब 'जहरीली हवा' के बीच जीवन जीने को मजबूर

बोकारो के सेल के विस्थापित गांवों के लोग नारकीय जीवन जीने को मजूबर हैं. उन्हें न तो स्वच्छ हवा मिल पा रही और न ही किसी तरह की कोई सरकारी सुविधा. अब तो उनके खेती का जमीनें भी बंजर हो चुकी है.

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Published : Jun 25, 2019, 7:24 PM IST

बोकारो: जब सेल की स्थापना की गई थी तब इसके पीछे यह सोच थी कि इससे एक ओर जहां उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा. लेकिन 50 साल बाद भी इसकी कीमत वहां के लोग चुका रहे हैं. प्लांट में लगे बिजली उत्पादन संयंत्र से निकलने वाली छाय से ऐश पोंड के करीब बसे 5 गांव की 10 हाजर से ज्यादा आबादी बुरी तरह से प्रभावित है.

देखें स्पेशल स्टोरी

ये सभी 5 गांव उन 19 विस्थापित गांवों में से हैं, इन गांवों के लोगों को सरकार चुनने का भी अधिकार है. लेकिन कागजी तौर पर इन गांवों को कोई मान्यता नहीं है. यह गांव ना ही किसी पंचायत में है और ना ही किसी नगर निगम में. बोकारो से महज 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में कोई सरकारी सुविधा नहीं है. इस गांव के लोग सिस्टम की दोहरी मार को झेल रहे हैं.

ये भी पढ़ें- 'मॉब लिंचिंग' मामले में 11 आरोपी गिरफ्तार, गिरफ्तारी के डर से गांव खाली कर भागे लोग

बीएसएल ने इनकी जमीन इस शर्त पर अधिकृत किया था, इन्हें अपने प्लांट में नौकरी देगी. लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी गुजरती जा रही है लेकिन इन्हें आज तक एक अदद नौकरी अब तक नहीं मिली. उस पर जुल्मों सितम यह है बीएसएल इनके घर के पास छाई का पहाड़ खड़ा कर रही हो. जिससे यहां के लोगों को सांस लेना भी दूभर हो गया है पाउडर से भी बारीके यह ऐश लोगों के की सांसों में जहर घोल रहा है. जिससे कैंसर, टीवी, किडनी और सांस संबंधित बीमारी हो रही है. तो वहीं छाई के पहाड़ जैसे भंडारण से इलाके की जमीन भी बंजर हो रही है. इसका असर खेती पर भी पड़ रहा है.

बता दें कि बोकारो स्टील प्लांट को चलाने के बीएसएल और डीबीसी के ज्वाइंट वेंचर से बीपीएसीएल पावर प्लांट का निर्माण किया गया था. इसके पीछे यह तर्क था की प्लांट के पास अपना बिजली उत्पादन यूनिट होगा तो उन्हें किसी और पर निर्भर नहीं रहना होगा. और इससे उत्पादन प्रभावित नहीं होगा. जिसके बाद यहां बीपीएसएल में बिजली उत्पादन के लिए कोयले को जलाया जाता है. जब वह कोयला जल जाता है उसके राख को विस्थापित गांव के समीप जिसे ऐश पौंड कहा जाता है वहां डंप कर दिया जाता है. इससे महुआर, पिपराडीह, आगरडीह और महेशपुर सहित कोई गांव हैं जो पूरी तरह से प्रभावित है.इस मामले पर बोकारो के उपायुक्त कृपानंद झा का कहना है कि छाय के निस्तारण के लिए रूल रेगुलेशन बने हुए हैं. अगर उसका पालन नहीं हो रहा है उस पर कार्रवाई की जाएगी.

बोकारो: जब सेल की स्थापना की गई थी तब इसके पीछे यह सोच थी कि इससे एक ओर जहां उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा. लेकिन 50 साल बाद भी इसकी कीमत वहां के लोग चुका रहे हैं. प्लांट में लगे बिजली उत्पादन संयंत्र से निकलने वाली छाय से ऐश पोंड के करीब बसे 5 गांव की 10 हाजर से ज्यादा आबादी बुरी तरह से प्रभावित है.

देखें स्पेशल स्टोरी

ये सभी 5 गांव उन 19 विस्थापित गांवों में से हैं, इन गांवों के लोगों को सरकार चुनने का भी अधिकार है. लेकिन कागजी तौर पर इन गांवों को कोई मान्यता नहीं है. यह गांव ना ही किसी पंचायत में है और ना ही किसी नगर निगम में. बोकारो से महज 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में कोई सरकारी सुविधा नहीं है. इस गांव के लोग सिस्टम की दोहरी मार को झेल रहे हैं.

ये भी पढ़ें- 'मॉब लिंचिंग' मामले में 11 आरोपी गिरफ्तार, गिरफ्तारी के डर से गांव खाली कर भागे लोग

बीएसएल ने इनकी जमीन इस शर्त पर अधिकृत किया था, इन्हें अपने प्लांट में नौकरी देगी. लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी गुजरती जा रही है लेकिन इन्हें आज तक एक अदद नौकरी अब तक नहीं मिली. उस पर जुल्मों सितम यह है बीएसएल इनके घर के पास छाई का पहाड़ खड़ा कर रही हो. जिससे यहां के लोगों को सांस लेना भी दूभर हो गया है पाउडर से भी बारीके यह ऐश लोगों के की सांसों में जहर घोल रहा है. जिससे कैंसर, टीवी, किडनी और सांस संबंधित बीमारी हो रही है. तो वहीं छाई के पहाड़ जैसे भंडारण से इलाके की जमीन भी बंजर हो रही है. इसका असर खेती पर भी पड़ रहा है.

बता दें कि बोकारो स्टील प्लांट को चलाने के बीएसएल और डीबीसी के ज्वाइंट वेंचर से बीपीएसीएल पावर प्लांट का निर्माण किया गया था. इसके पीछे यह तर्क था की प्लांट के पास अपना बिजली उत्पादन यूनिट होगा तो उन्हें किसी और पर निर्भर नहीं रहना होगा. और इससे उत्पादन प्रभावित नहीं होगा. जिसके बाद यहां बीपीएसएल में बिजली उत्पादन के लिए कोयले को जलाया जाता है. जब वह कोयला जल जाता है उसके राख को विस्थापित गांव के समीप जिसे ऐश पौंड कहा जाता है वहां डंप कर दिया जाता है. इससे महुआर, पिपराडीह, आगरडीह और महेशपुर सहित कोई गांव हैं जो पूरी तरह से प्रभावित है.इस मामले पर बोकारो के उपायुक्त कृपानंद झा का कहना है कि छाय के निस्तारण के लिए रूल रेगुलेशन बने हुए हैं. अगर उसका पालन नहीं हो रहा है उस पर कार्रवाई की जाएगी.

Intro:देश बदल रहा है। आगे बढ़ रहा है। विकास के नए प्रतिमान स्थापित हुए। हैं लेकिन उसके लिए आम लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। बोकारो में जब सेल की स्थापना की गई थी तब इसके पीछे यह सोच थी कि इससे एक ओर जहां उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। तो वहीं लोगों को रोजगार भी। लेकिन इस रोजगार और उद्योग को बढ़ावा देने की कीमत शेल की स्थापना के 50 साल बाद भी वहां लोग चुका रहे हैं। यहां तक कि लोगों के मौलिक अधिकार का भी यहां हनन हो रहा है। यहां मौलिक अधिकार का भी हनन हो रहा है। यहां सांस लेने के अधिकार का हर रोज हनन हो रहा है। बोकारो स्टील प्लांट में लगे बिजली उत्पादन संयंत्र बीपीएससीएल से निकलने वाली छाय से ऐश पोंड के करीब बसे 5 गांव की 10000 से ज्यादा की आबादी बुरी तरह से प्रभावित है। यहां के लोगों को साफ हवा भी मयस्सर नहीं है। ये सभी 5 गांव उन 19 विस्थापित गांव में से हैं। जो गांव की शक्ल में तो है और चुनने सरकार चुनने के लिए वोट भी करते हैं। लेकिन कागजी तौर पर इस गांव की कोई मान्यता नहीं है। यह गांव ना ही किसी पंचायत में है और ना ही किसी नगर निगम में। बोकारो से महज 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में कोई सरकारी सुविधा नहीं है। इस गांव के लोग सिस्टम की दोहरी मार को झेल रहे हैं। एक और तो गांव के लोगों को सरकारी सुविधा भी नहीं मिलता है। तो वही बीएसएल भी इनके साथ सालों से छल चल कर रही है। बीएसएल ने इनकी जमीन को इस शर्त पर अधिकृत किया था। कि इन्हें अपने प्लांट में नौकरी देगी। लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी गुजरती जा रही है लेकिन इन्हें आज तक एक अदद नौकरी अब तक नहीं मिली। उस पर जुल्मों सितम यह है बीएसएल इनके घर के पास छाई का पहाड़ खड़ा कर रही हो। जिससे यहां के लोगों को सांस लेना भी दूभर हो गया है। पाउडर से भी बारीके यह ऐश लोगों के की सांसों में जहर घोल रहा है। जिससे कैंसर, टीवी, किडनी और सांस संबंधित बीमारी हो रही है। तो वही छाई के पहाड़ जैसे भंडारण से इलाके की जमीन भी बंजर हो रही है। जिससे मध्यमवर्गीय परिवार जिनका एकमात्र आसरा खेती बचा है वह भूखे मरने के कगार पर हैं। तो दूसरी ओर इसका असर जानवरों पर भी पड़ रहा है। छाई के उड़ने से पानी भी विषैली हो रही है। जिसे पीकर पशु पंछी भी बीमार हो रहे हैं और मर रहे हैं। लेकिन बीएसएल प्रबंधन पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है। बीएसएल प्रबंधन का कहना है की वह छाई का डंप अपनी अधिकृत जमीन पर कर रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रबंधन प्लांट से निकले कचरे का निस्तारण जिस तरीके से कर रही है क्या वह सही। है प्लांट से निकले छाई को खुले में रखना नियम के विरुद्ध है। जानकार कहते हैं कि की प्लांट में जलाए जाने वाले कोयले से निकले राख का उस जगह पर भंडारण किया जाना चाहिए था। जहां से वह जलाने के लिए कोयला लाया गया था। इससे एक ओर जहां खदान में हुआ गड्ढा भर जाता। तो पेड़ लगाकर प्रदूषण को रोकने में भी मददगार साबित होता। लेकिन कोयला कंपनियों और बोकारो स्टील प्लांट के अधिकारियों के बीच सामंजस्य नहीं होने की वजह से राख को खुले में निस्तारित किया जा रहा है। जो कि नियमों के खिलाफ है। बता दें कि बोकारो स्टील प्लांट को चलाने के बीएसएल और डीबीसी के ज्वाइंट वेंचर से बीपीएसीएल पावर प्लांट का निर्माण किया गया था। इसके पीछे यह तर्क था की प्लांट के पास अपना बिजली उत्पादन यूनिट होगा तो उन्हें किसी और पर निर्भर नहीं रहना होगा। और इससे उत्पादन प्रभावित नहीं होगा। जिसके बाद यहां बीपीएसएल में बिजली उत्पादन के लिए कोयले को जलाया जाता है।और जब वह कोयला जल जाता है उसके राख को विस्थापित गांव के समीप जिसे ऐश पौंड कहा जाता है वहां डंप कर दिया जाता है। इससे महुआर, पिपराडीह, आगरडीह और महेशपुर सहित कोई गांव हैं जो पूरी तरह से प्रभावित है। यहां विस्थापितों के अधिकारों की लड़ाई करने वाले राजेंद्र महतो कहते हैं की उन्होंने बीएसएल प्रबंधन का ध्यान इस तरह कई बार दिलाया। लेकिन प्रबंधन हमें इंसान ही नहीं समझती है। तो वह हमारी बातों पर क्या गौर करेगी। मामले में बोकारो के उपायुक्त कृपानंद झा का कहना है कि छाय के निस्तारण के लिए रूल रेगुलेशन बने हुए हैं। अगर उसका पालन नहीं हो रहा है उस पर कार्रवाई की जाएगी।


Body:ग्रामीण


Conclusion:राजेंद्र महतो, विस्थापित नेता
कृपानंद झा, उपायुक्त बोकारो
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