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राज्य से पलायन कर रहे बेबस मजदूर, हेमंत सरकार के दावों पर उठे सवाल

प्रवासियों को घर में रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उनका स्किल सर्वे और पंजीकरण शुरू किया गया, जिससे उन्हें उनकी क्षमता के अनुरूप काम मिल सके. हालांकि ये सब सरकारी फाइलो में ही दब कर रह गया. अपनों के भरण-पोषण की बेचैनी ने प्रवासियों को दोबारा लौटने को विवश कर दिया है. रोजगार मुहैया कराने के सरकारी दावों के उलट प्रवासी मजदूर योजनाओं की हकीकत में तब्दील होने को लेकर असमंजस में हैं.

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राज्य से पलायन कर रहे बेबस मजदूर
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Published : Oct 9, 2020, 10:03 PM IST

चंदनकियारी, बोकारो: लॉकडाउन की अवधि में प्रवासी कामगार जहां जिस हालत में थे वहां से कई जतन करके अपने घर लौट आए. इस उम्मीद पर कि यहां कुछ भी करके परिवार वालों के साथ जीवनयापन कर लेंगे. अपेक्षा के अनुरुप सरकार भी सक्रिय हुई और रोजगार सृजन के विकल्पों पर विचार भी हुआ. प्रवासियों को घर में रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उनका स्किल सर्वे और पंजीकरण शुरू किया गया, जिससे उन्हें उनकी क्षमता के अनुरूप काम मिल सके. हालांकि ये सब सरकारी फाइलो में ही दब कर रह गया. ऐसा ही एक मामला चंदनकियारी में देखने को मिला, जहां गोआ कि एक फैक्ट्री के मालिक की ओर से बस में ठूस ठूसकर मजदूरों को ले जाया गया.

देखें पूरी खबर

राज्य सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत उन्हें गांव में ही काम मिल सके. साथ ही यह भी तलाशने की कोशिश की गई कि वर्तमान में जो औद्योगिक इकाइयां चालू हैं उनमें प्रवासी कामगारों को कैसे समायोजित किया जाए. हालांकि इन प्रयासों के अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. पेट की ज्वाला और अपनों के भरण-पोषण की बेचैनी ने प्रवासियों को दोबारा लौटने को विवश कर दिया है. रोजगार मुहैया कराने के सरकारी दावों के उलट प्रवासी मजदूर योजनाओं की हकीकत में तब्दील होने को लेकर असमंजस में हैं.

ये भी पढ़ें- 11 अक्टूबर को झारखंड अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का समापन समारोह, देश विदेश से जुड़ेंगे फिल्मकार

क्या कहते हैं विधायक
सूबे के पूर्व मंत्री सह चंदनकियारी विधायक अमर कुमार बाउरी ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि हेमंत सोरेन सरकार ने जिस ताम-झाम और गांव में ही मजदूरों को काम देने के वादे पर घर वापसी कराई, आज वो पूरी तरह विफल हैं. लोगों के पास केंद्र सरकार की ओर से मुहैया कराए गए चावल तो हैं, लेकिन अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत है. लगातार आठ माह तक घर बैठे मजदूरों का हाल बेहाल हो गया है. मजबूरन उन्हें पेट की आग बुझाने के लिए दोबारा दूसरे प्रदेश में जाना पड़ रहा है. गरीब मजदूर अपनी रोजी-रोटी के लिए बिना रजिस्ट्रेशन के ही जाने लिए बाध्य हैं. वहीं, फैक्टरी के मालिक भी गुपचुप तरीके से मजदूरों को ले जा रहे हैं. जिसकी सूचना न तो प्रशासन को है और न ही सरकार को. मनरेगा कर्मचारियों की हड़ताल भी एक महीने पूर्व ही समाप्त हुई है. ऐसे प्रवासी मजदूरों को कागज में ही रोजगार मिलता रहा. हेमन्त सरकार हर मोर्चे पर फैल हैं.

चंदनकियारी, बोकारो: लॉकडाउन की अवधि में प्रवासी कामगार जहां जिस हालत में थे वहां से कई जतन करके अपने घर लौट आए. इस उम्मीद पर कि यहां कुछ भी करके परिवार वालों के साथ जीवनयापन कर लेंगे. अपेक्षा के अनुरुप सरकार भी सक्रिय हुई और रोजगार सृजन के विकल्पों पर विचार भी हुआ. प्रवासियों को घर में रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उनका स्किल सर्वे और पंजीकरण शुरू किया गया, जिससे उन्हें उनकी क्षमता के अनुरूप काम मिल सके. हालांकि ये सब सरकारी फाइलो में ही दब कर रह गया. ऐसा ही एक मामला चंदनकियारी में देखने को मिला, जहां गोआ कि एक फैक्ट्री के मालिक की ओर से बस में ठूस ठूसकर मजदूरों को ले जाया गया.

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राज्य सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत उन्हें गांव में ही काम मिल सके. साथ ही यह भी तलाशने की कोशिश की गई कि वर्तमान में जो औद्योगिक इकाइयां चालू हैं उनमें प्रवासी कामगारों को कैसे समायोजित किया जाए. हालांकि इन प्रयासों के अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. पेट की ज्वाला और अपनों के भरण-पोषण की बेचैनी ने प्रवासियों को दोबारा लौटने को विवश कर दिया है. रोजगार मुहैया कराने के सरकारी दावों के उलट प्रवासी मजदूर योजनाओं की हकीकत में तब्दील होने को लेकर असमंजस में हैं.

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क्या कहते हैं विधायक
सूबे के पूर्व मंत्री सह चंदनकियारी विधायक अमर कुमार बाउरी ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि हेमंत सोरेन सरकार ने जिस ताम-झाम और गांव में ही मजदूरों को काम देने के वादे पर घर वापसी कराई, आज वो पूरी तरह विफल हैं. लोगों के पास केंद्र सरकार की ओर से मुहैया कराए गए चावल तो हैं, लेकिन अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत है. लगातार आठ माह तक घर बैठे मजदूरों का हाल बेहाल हो गया है. मजबूरन उन्हें पेट की आग बुझाने के लिए दोबारा दूसरे प्रदेश में जाना पड़ रहा है. गरीब मजदूर अपनी रोजी-रोटी के लिए बिना रजिस्ट्रेशन के ही जाने लिए बाध्य हैं. वहीं, फैक्टरी के मालिक भी गुपचुप तरीके से मजदूरों को ले जा रहे हैं. जिसकी सूचना न तो प्रशासन को है और न ही सरकार को. मनरेगा कर्मचारियों की हड़ताल भी एक महीने पूर्व ही समाप्त हुई है. ऐसे प्रवासी मजदूरों को कागज में ही रोजगार मिलता रहा. हेमन्त सरकार हर मोर्चे पर फैल हैं.

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