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IAS अशोक खेमका की तरह है झारखंड का यह जिला, 28 साल में मिले 31 उपायुक्त - बोकारो के उपायुक्त

बोकारो में पिछले 28 सालों में 31 डीसी की तैनाती हो चुकी है. यानी औसत कार्यकाल 1 साल से भी कम का है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि सूबे में ट्रांसफर पोस्टिंग का धंधा चल रहा है, यही नहीं उनका ये भी आरोप है कि तबादले की जोर पर सरकार 65 प्लस का आंकड़ा पाने की कोशिश कर रही है.

मुकेश कुमार नए उपायुक्त
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Published : Aug 24, 2019, 4:43 PM IST

बोकारो: मुकेश कुमार नए उपायुक्त बने हैं. इन्होंने कृपानंद झा की जगह. इनके पदभार ग्रहण करने के साथ ही एक बार फिर से यह चर्चा होने लगी है कि मुकेश जिले में कितने दिन टिक पाएंगे. क्योंकि बोकारो में गिने चुने डीसी ही है जिन्होंने एक से से अधिक समय तक बने रहे हैं.

देखिए स्पेशल स्टोरी
बोकारो जिले को बने हुई अभी 28 साल ही हुए हैं. खास बात ये है कि इन 28 सालों के दौरान बोकारो में 31 डीसी की तैनाती हो चुकी है. यानी एक डीसी का औसत कार्यकाल 1 साल से भी कम का है. 1991 के बाद जिले में राय महिमापत रे, रवि मित्तल और मिरतुंज कुमार वर्णवाल का कार्यकाल सबसे लंबा है. इनमें सबसे लंबा कार्यकाल 1 साल 5 महीने का है. बात करें 2019 की तो अब तक जिले को 3 डीसी मिल चुके हैं जबकि अभी साल खत्म होने में 4 महीने बाकी हैं. यानी एक डीसी का औसतन कार्यकाल ढाई महीने से भी कम का है.

ये भी पढे़ं: रांची लोहरदगा ट्रेन मामले पर रांची रेल मंडल ने दी सफाई, कहा मामले की होगी जांच

मुकेश कुमार बने नए उपायुक्त
बुधवार को मुकेश कुमार बोकारो के नए उपायुक्त बने, उन्होंने कृपानंद झा की जगह पदभार संभाला. कृपानंद झा की तैनाती बोकारो में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुई थी. वह यहां 4 महीने 24 दिन रहे. इससे पहले शैलेश कुमार चौरसिया को बोकारो का उपायुक्त बनाया गया था. चौरसिया महज 54 दिनों तक बोकारो के उपायुक्त रहे. 2019 में तीन नए डीसी का पदस्थापन हो चुका है.

28 साल में 31 डीसी का तबादला
1991 में धनबाद जिले से अलग कर बोकारो को जिला बनाया गया था. तब चास और चंदनकियारी प्रखंड को जोड़कर बोकारो जिला बना और बाद में इसमें बेरमो अनुमंडल को भी जोड़ा गया. जिला बनाने के लिए यहां के लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी. तब उन्होंने सोच था कि जिला बनने से इलाके का विकास हो पाएगा. पिछले 28 साल में ही 31 डीसी का तबादला हो चुका है मतलब यहां आए उपायुक्त जिले को जब तक समझते हैं और विकास योजनाओं को लागू कराने के लिए तैयार होते हैं तब तक उनका तबादला हो जाता है.

ये भी पढ़ें: बीआईटी थाने के मुंशी ने मानसिक तनाव के बाद की आत्महत्या, परिजनों को सौंपा गया शव

ट्रांसफर पोस्टिंग बना उद्योग
बोकारो में हो रहे मैराथन तबादले पर विपक्ष के नेताओं का कहना है की राज्य में ट्रांसफर पोस्टिंग का उद्योग चल रहा है. जो बड़ी बोली लगाता है उसे वहां पदस्थापित कर दिया जाता है, साथ ही बीजेपी अधिकारियों के सहारे ही 65 प्लस का आंकड़ा पाने की कोशिश कर रही है.

बोकारो: मुकेश कुमार नए उपायुक्त बने हैं. इन्होंने कृपानंद झा की जगह. इनके पदभार ग्रहण करने के साथ ही एक बार फिर से यह चर्चा होने लगी है कि मुकेश जिले में कितने दिन टिक पाएंगे. क्योंकि बोकारो में गिने चुने डीसी ही है जिन्होंने एक से से अधिक समय तक बने रहे हैं.

देखिए स्पेशल स्टोरी
बोकारो जिले को बने हुई अभी 28 साल ही हुए हैं. खास बात ये है कि इन 28 सालों के दौरान बोकारो में 31 डीसी की तैनाती हो चुकी है. यानी एक डीसी का औसत कार्यकाल 1 साल से भी कम का है. 1991 के बाद जिले में राय महिमापत रे, रवि मित्तल और मिरतुंज कुमार वर्णवाल का कार्यकाल सबसे लंबा है. इनमें सबसे लंबा कार्यकाल 1 साल 5 महीने का है. बात करें 2019 की तो अब तक जिले को 3 डीसी मिल चुके हैं जबकि अभी साल खत्म होने में 4 महीने बाकी हैं. यानी एक डीसी का औसतन कार्यकाल ढाई महीने से भी कम का है.

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मुकेश कुमार बने नए उपायुक्त
बुधवार को मुकेश कुमार बोकारो के नए उपायुक्त बने, उन्होंने कृपानंद झा की जगह पदभार संभाला. कृपानंद झा की तैनाती बोकारो में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुई थी. वह यहां 4 महीने 24 दिन रहे. इससे पहले शैलेश कुमार चौरसिया को बोकारो का उपायुक्त बनाया गया था. चौरसिया महज 54 दिनों तक बोकारो के उपायुक्त रहे. 2019 में तीन नए डीसी का पदस्थापन हो चुका है.

28 साल में 31 डीसी का तबादला
1991 में धनबाद जिले से अलग कर बोकारो को जिला बनाया गया था. तब चास और चंदनकियारी प्रखंड को जोड़कर बोकारो जिला बना और बाद में इसमें बेरमो अनुमंडल को भी जोड़ा गया. जिला बनाने के लिए यहां के लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी. तब उन्होंने सोच था कि जिला बनने से इलाके का विकास हो पाएगा. पिछले 28 साल में ही 31 डीसी का तबादला हो चुका है मतलब यहां आए उपायुक्त जिले को जब तक समझते हैं और विकास योजनाओं को लागू कराने के लिए तैयार होते हैं तब तक उनका तबादला हो जाता है.

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ट्रांसफर पोस्टिंग बना उद्योग
बोकारो में हो रहे मैराथन तबादले पर विपक्ष के नेताओं का कहना है की राज्य में ट्रांसफर पोस्टिंग का उद्योग चल रहा है. जो बड़ी बोली लगाता है उसे वहां पदस्थापित कर दिया जाता है, साथ ही बीजेपी अधिकारियों के सहारे ही 65 प्लस का आंकड़ा पाने की कोशिश कर रही है.

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