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बिजनेस 2019: अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं रहा साल, लगे झटके पर झटके

इस साल आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को एक के बाद एक कई बड़े झटके लगे. जीडीपी ग्रोथ से लेकर टैक्‍स कलेक्‍शन तक में सुस्‍ती नजर आई. देखिए पूरी रिपोर्ट.

बिजनेस 2019: अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं रहा साल, लगे झटके पर झटके
बिजनेस 2019: अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं रहा साल, लगे झटके पर झटके
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Published : Dec 30, 2019, 2:04 PM IST

Updated : Dec 30, 2019, 5:50 PM IST

हैदराबाद: साल 2019 खत्‍म होने को है. यह साल राजनीतिक से लेकर अन्‍य दूसरे क्षेत्रों में ऐतिहासिक रहा लेकिन अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज से बुरा रहा. लोकसभा चुनाव की वजह से इस साल दो बार बजट पेश किया गया.

भारत की अर्थव्यवस्था ने व्यापार युद्ध और आम चुनावों के संभावित परिणाम के संदर्भ के साथ शुरुआत की. वर्ष के अंत तक अर्थव्यवस्था का धीमा होना सबसे बड़ा भय था.

ये भी पढ़ें- साल 2026 में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है भारत : रिपोर्ट

तेल की कीमतें स्थिर होने के कारण सरकार ने राहत की सांस ली. इसके साथ ही व्यापार में संतुलन बना रहा जिसने मुद्रा की गिरावट को रोक दिया. इस वर्ष सरकार ने नई कंपनियों को 15% की दर से कर में कटौती और इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त कर कटौती जैसे उपायों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को किक-स्टार्ट करने के लिए कड़ी मेहनत की.

बैंकिंग की समस्याएं बनी रहीं
इस साल बैंकिंग समस्याएं लगातार जारी रहीं. सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बेहतर पूंजीकरण के बावजूद मई 2019 के चुनावों के बाद हाल ही में 70,000 करोड़ रुपये पुनर्पूंजीकरण की घोषणा की गई.

हालांकि साल के अंत तक पीएसबी के एनपीए में मामूली गिरावट दर्ज की है. गिरावट संभव थी क्योंकि पीएसबी बस उधार देने में बहुत सतर्क थे या उधार देने के लिए तैयार नहीं थे. पीएसबी के एनपीए में 11.2% से 9.1% की मामूली गिरावट आई.

सरकारों को बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य के प्रति बेहद सतर्क रहने की जरूरत है. हालांकि बैंकिंग क्षेत्र की शोधन क्षमता से संबंधित कोई समस्या नहीं है और बैंक इस समय सुरक्षित हैं लेकिन उन्हें सावधान और सतर्क रहने की आवश्यकता है.

एनबीएफसी संकट
एनबीएफसी संकट को वर्ष की बढ़ती हुई आर्थिक संकट के लिए याद किया जाएगा. एनबीएफसी ऋण का लगभग 40% ऑटोमोबाइल उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों जुड़ा हुआ है. मार्च 2018 के अंत तक एनबीएफसी ऋण 30.85 लाख करोड़ तक था और मार्च 2019 के अंत में यह 32.57 लाख करोड़ तक पहुंच गया.

इस वर्ष में इंसॉल्वेंसी बैंकरप्सी कोड, पंचाट अधिनियम और औद्योगिक संबंध कोड के रूप में औद्योगिक संबंधों से संबंधित विभिन्न कानूनों का पारित होना एक प्रमुख कदम रहा. वर्ष के दौरान दूरसंचार क्षेत्र में भारी उथल-पुथल देखने को मिली. सेक्टर और सरकार की मांगों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कर्ज हो गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश में दूरसंचार क्रांति से उपभोक्ताओं को फायदा हुआ है. समायोजित सकल राजस्व के रूप में 92,000 करोड़ रुपये के भुगतान पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के कारण दूरसंचार क्षेत्र दिवालियापन के कगार पर हैं.

आगे का रास्ता
यदि मंदी इसी तरह जारी रही तो आगे ये खतरनाक रुप ले सकता है. मंदी के कारण जीएसटी संग्रह में कमी आई है. केंद्र सरकार को जीएसटी दरों को बढ़ाने के लिए राज्यों के दबाव में नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे समस्या और बढ़ जाएगी. इसके बजाय इसे राज्यों को समेकित करने और यहां तक ​​कि उनकी बेकार की सब्सिडी को कम करने के लिए कहना चाहिए जो वोट बैंक की राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं है.

भारत को वैकल्पिक मॉडल के बारे में सोचने और विकास के एक नए मॉडल के साथ आने की जरूरत है ताकि यह उपभोग के बाद के ईंधन के वैश्वीकरण से प्रेरित विकास की चुनौतियों का सामना कर सकें. ऐतिहासिक रूप से भारत में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास के प्रत्येक नए चरण में विकास के लिए नए उद्योगों की आवश्यकता होती है.

केंद्र सरकार को निम्नलिखित विषयों पर विचार करना चाहिए

  • केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह विवेकपूर्ण और समझदारी से खर्च करने का समय है. केंद्र सरकार प्रति माह लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की दर से उधार ले रही है, जबकि सभी राज्य प्रति माह लगभग 50,000 करोड़ रुपये की दर से उधार ले रहे हैं.
  • सरकारों को सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि अधिकांश ऋण बैंकों, बीमा कंपनियों, म्युचुअल फंडों आदि जैसे सार्वजनिक संस्थानों के स्वामित्व में हैं. कुल सरकारी ऋण का लगभग 10% केवल विदेशियों या व्यक्तियों के स्वामित्व में है. इस प्रकार, अगर कुछ गलत हो जाता है तो खासकर मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा नुकसान होगा.
  • समय आ गया है कि सब्सिडी पर भारी मात्रा में उधार लिया गया पैसा खर्च करने से बचें, जो उत्पादकता या आर्थिक विकास को बढ़ाता है. सरकार के लिए सब कुछ करना और सब कुछ मुफ्त प्रदान करना असंभव है.
  • मोटर वाहन उद्योग के लिए इलेक्ट्रिक वाहन तंत्र को प्रोत्साहित करना होगा, जो अन्य बुनियादी ढांचे पर भारी खर्चों द्वारा समर्थित होगा.
  • सरकार को एक या दो साल के लिए सब्सिडी पर खर्च को रोकना या काफी कम करना होगा और बचाए गए धन का उपयोग बेहतर जगह करना होगा. बैंकों की सभी गैर निष्पादित आस्तियों को वापस लाना और अत्यधिक परिवर्तन करना जिस तरह से बैंक संचालित होते हैं ताकि अर्थव्यवस्था जल्द से जल्द ठीक हो सके. हालांकि, इस तरह के एक छोटे से सुधार के लिए बड़ी मात्रा में राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी.
  • एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जिसे समर्थन की आवश्यकता है वह है दूरसंचार क्षेत्र. सरकार को 5जी जैसे भविष्य की तकनीकी जरूरतों में अपने निवेश को सब्सिडी देनी चाहिए. यह भारतीय व्यवसायों को प्रतिस्पर्धी होने के साथ-साथ दीर्घावधि में अधिक उत्पादक बनने में सक्षम करेगा.
  • मुद्रा ऋण, माइक्रोफाइनेंस ऋण आदि जैसी योजनाओं पर पैसा फेंकने से बचें और इसके बजाय भविष्य की तकनीकी जरूरतों को पूरा करने/समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करें.

( लेखक - डॉ.एस.अनंत, आर्थिक विशेषज्ञ )

हैदराबाद: साल 2019 खत्‍म होने को है. यह साल राजनीतिक से लेकर अन्‍य दूसरे क्षेत्रों में ऐतिहासिक रहा लेकिन अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज से बुरा रहा. लोकसभा चुनाव की वजह से इस साल दो बार बजट पेश किया गया.

भारत की अर्थव्यवस्था ने व्यापार युद्ध और आम चुनावों के संभावित परिणाम के संदर्भ के साथ शुरुआत की. वर्ष के अंत तक अर्थव्यवस्था का धीमा होना सबसे बड़ा भय था.

ये भी पढ़ें- साल 2026 में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है भारत : रिपोर्ट

तेल की कीमतें स्थिर होने के कारण सरकार ने राहत की सांस ली. इसके साथ ही व्यापार में संतुलन बना रहा जिसने मुद्रा की गिरावट को रोक दिया. इस वर्ष सरकार ने नई कंपनियों को 15% की दर से कर में कटौती और इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त कर कटौती जैसे उपायों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को किक-स्टार्ट करने के लिए कड़ी मेहनत की.

बैंकिंग की समस्याएं बनी रहीं
इस साल बैंकिंग समस्याएं लगातार जारी रहीं. सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बेहतर पूंजीकरण के बावजूद मई 2019 के चुनावों के बाद हाल ही में 70,000 करोड़ रुपये पुनर्पूंजीकरण की घोषणा की गई.

हालांकि साल के अंत तक पीएसबी के एनपीए में मामूली गिरावट दर्ज की है. गिरावट संभव थी क्योंकि पीएसबी बस उधार देने में बहुत सतर्क थे या उधार देने के लिए तैयार नहीं थे. पीएसबी के एनपीए में 11.2% से 9.1% की मामूली गिरावट आई.

सरकारों को बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य के प्रति बेहद सतर्क रहने की जरूरत है. हालांकि बैंकिंग क्षेत्र की शोधन क्षमता से संबंधित कोई समस्या नहीं है और बैंक इस समय सुरक्षित हैं लेकिन उन्हें सावधान और सतर्क रहने की आवश्यकता है.

एनबीएफसी संकट
एनबीएफसी संकट को वर्ष की बढ़ती हुई आर्थिक संकट के लिए याद किया जाएगा. एनबीएफसी ऋण का लगभग 40% ऑटोमोबाइल उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों जुड़ा हुआ है. मार्च 2018 के अंत तक एनबीएफसी ऋण 30.85 लाख करोड़ तक था और मार्च 2019 के अंत में यह 32.57 लाख करोड़ तक पहुंच गया.

इस वर्ष में इंसॉल्वेंसी बैंकरप्सी कोड, पंचाट अधिनियम और औद्योगिक संबंध कोड के रूप में औद्योगिक संबंधों से संबंधित विभिन्न कानूनों का पारित होना एक प्रमुख कदम रहा. वर्ष के दौरान दूरसंचार क्षेत्र में भारी उथल-पुथल देखने को मिली. सेक्टर और सरकार की मांगों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कर्ज हो गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश में दूरसंचार क्रांति से उपभोक्ताओं को फायदा हुआ है. समायोजित सकल राजस्व के रूप में 92,000 करोड़ रुपये के भुगतान पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के कारण दूरसंचार क्षेत्र दिवालियापन के कगार पर हैं.

आगे का रास्ता
यदि मंदी इसी तरह जारी रही तो आगे ये खतरनाक रुप ले सकता है. मंदी के कारण जीएसटी संग्रह में कमी आई है. केंद्र सरकार को जीएसटी दरों को बढ़ाने के लिए राज्यों के दबाव में नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे समस्या और बढ़ जाएगी. इसके बजाय इसे राज्यों को समेकित करने और यहां तक ​​कि उनकी बेकार की सब्सिडी को कम करने के लिए कहना चाहिए जो वोट बैंक की राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं है.

भारत को वैकल्पिक मॉडल के बारे में सोचने और विकास के एक नए मॉडल के साथ आने की जरूरत है ताकि यह उपभोग के बाद के ईंधन के वैश्वीकरण से प्रेरित विकास की चुनौतियों का सामना कर सकें. ऐतिहासिक रूप से भारत में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास के प्रत्येक नए चरण में विकास के लिए नए उद्योगों की आवश्यकता होती है.

केंद्र सरकार को निम्नलिखित विषयों पर विचार करना चाहिए

  • केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह विवेकपूर्ण और समझदारी से खर्च करने का समय है. केंद्र सरकार प्रति माह लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की दर से उधार ले रही है, जबकि सभी राज्य प्रति माह लगभग 50,000 करोड़ रुपये की दर से उधार ले रहे हैं.
  • सरकारों को सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि अधिकांश ऋण बैंकों, बीमा कंपनियों, म्युचुअल फंडों आदि जैसे सार्वजनिक संस्थानों के स्वामित्व में हैं. कुल सरकारी ऋण का लगभग 10% केवल विदेशियों या व्यक्तियों के स्वामित्व में है. इस प्रकार, अगर कुछ गलत हो जाता है तो खासकर मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा नुकसान होगा.
  • समय आ गया है कि सब्सिडी पर भारी मात्रा में उधार लिया गया पैसा खर्च करने से बचें, जो उत्पादकता या आर्थिक विकास को बढ़ाता है. सरकार के लिए सब कुछ करना और सब कुछ मुफ्त प्रदान करना असंभव है.
  • मोटर वाहन उद्योग के लिए इलेक्ट्रिक वाहन तंत्र को प्रोत्साहित करना होगा, जो अन्य बुनियादी ढांचे पर भारी खर्चों द्वारा समर्थित होगा.
  • सरकार को एक या दो साल के लिए सब्सिडी पर खर्च को रोकना या काफी कम करना होगा और बचाए गए धन का उपयोग बेहतर जगह करना होगा. बैंकों की सभी गैर निष्पादित आस्तियों को वापस लाना और अत्यधिक परिवर्तन करना जिस तरह से बैंक संचालित होते हैं ताकि अर्थव्यवस्था जल्द से जल्द ठीक हो सके. हालांकि, इस तरह के एक छोटे से सुधार के लिए बड़ी मात्रा में राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी.
  • एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जिसे समर्थन की आवश्यकता है वह है दूरसंचार क्षेत्र. सरकार को 5जी जैसे भविष्य की तकनीकी जरूरतों में अपने निवेश को सब्सिडी देनी चाहिए. यह भारतीय व्यवसायों को प्रतिस्पर्धी होने के साथ-साथ दीर्घावधि में अधिक उत्पादक बनने में सक्षम करेगा.
  • मुद्रा ऋण, माइक्रोफाइनेंस ऋण आदि जैसी योजनाओं पर पैसा फेंकने से बचें और इसके बजाय भविष्य की तकनीकी जरूरतों को पूरा करने/समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करें.

( लेखक - डॉ.एस.अनंत, आर्थिक विशेषज्ञ )

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इस साल आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को एक के बाद एक कई बड़े झटके लगे. जीडीपी ग्रोथ से लेकर टैक्‍स कलेक्‍शन तक में सुस्‍ती नजर आई. देखिए पूरी रिपोर्ट.



बिजनेस 2019: अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं रहा साल 

हैदराबाद: साल 2019 खत्‍म होने को है. यह साल राजनीतिक से लेकर अन्‍य दूसरे क्षेत्रों में ऐतिहासिक रहा लेकिन अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज से बुरा रहा. लोकसभा चुनाव की वजह से इस साल दो बार बजट पेश किया गया. वहीं अलग- अलग समय में वित्त मंत्री के तौर पर तीन लोग सक्रिय रहे.

भारत की अर्थव्यवस्था ने व्यापार युद्ध और आम चुनावों के संभावित परिणाम के संदर्भ के साथ शुरुआत की. वर्ष के अंत तक अर्थव्यवस्था का धीमा होना सबसे महत्वपूर्ण भय था. 

तेल की कीमतें स्थिर होने के कारण सरकार ने राहत की सांस ली.  इसके साथ ही व्यापार में संतुलन बना रहा जिसने मुद्रा की गिरावट को रोक दिया. इस वर्ष सरकार ने नई कंपनियों को 15% की दर से कर में कटौती और इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त कर कटौती जैसे उपायों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को किक-स्टार्ट करने के लिए कड़ी मेहनत की.



बैंकिंग की समस्याएं बनी रहीं

इस साल बैंकिंग समस्याएं लगातार जारी रहीं. सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बेहतर पूंजीकरण के बावजूद मई 2019 के चुनावों के बाद हाल ही में 70,000 करोड़ रुपये पुनर्पूंजीकरण की घोषणा की गई. 

हालांकि साल के अंत तक पीएसबी के एनपीए में मामूली गिरावट दर्ज की है. गिरावट संभव थी क्योंकि पीएसबी बस उधार देने में बहुत सतर्क थे या उधार देने के लिए तैयार नहीं थे. पीएसबी के एनपीए में 11.2% से 9.1% की मामूली गिरावट आई. 

सरकारों को बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य के प्रति बेहद सतर्क रहने की जरूरत है. हालांकि बैंकिंग क्षेत्र की शोधन क्षमता से संबंधित कोई समस्या नहीं है और बैंक इस समय सुरक्षित हैं लेकिन उन्हें सावधान और सतर्क रहने की आवश्यकता है. 

एनबीएफसी संकट

एनबीएफसी संकट को वर्ष की बढ़ती हुई आर्थिक संकट के लिए याद किया जाएगा. एनबीएफसी ऋण का लगभग 40% ऑटोमोबाइल उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों जुड़ा हुआ है. मार्च 2018 के अंत तक एनबीएफसी ऋण 30.85 लाख करोड़ तक था और मार्च 2019 के अंत में यह 32.57 लाख करोड़ तक पहुंच गया. 

इस वर्ष में इंसॉल्वेंसी बैंकरप्सी कोड, पंचाट अधिनियम और औद्योगिक संबंध कोड के रूप में औद्योगिक संबंधों से संबंधित विभिन्न कानूनों का पारित होना एक प्रमुख कदम रहा. वर्ष के दौरान दूरसंचार क्षेत्र में भारी उथल-पुथल देखने को मिली. सेक्टर और सरकार की मांगों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण इस क्षेत्र में भारी मात्रा में कर्ज हो गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश में दूरसंचार क्रांति से उपभोक्ताओं को फायदा हुआ है. समायोजित सकल राजस्व के रूप में 92,000 करोड़ रुपये के भुगतान पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के कारण दूरसंचार क्षेत्र दिवालियापन के कगार पर हैं.



आगे का रास्ता

यदि मंदी इसी तरह जारी रही तो आगे ये खतरनाक रुप ले सकता है. मंदी के कारण जीएसटी संग्रह में कमी आई है. केंद्र सरकार को जीएसटी दरों को बढ़ाने के लिए राज्यों के दबाव में नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे समस्या और बढ़ जाएगी. इसके बजाय इसे राज्यों को समेकित करने और यहां तक ​​कि उनकी बेकार की सब्सिडी को कम करने के लिए कहना चाहिए जो वोट बैंक की राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं है. 

भारत को वैकल्पिक मॉडल के बारे में सोचने और विकास के एक नए मॉडल के साथ आने की जरूरत है ताकि यह उपभोग के बाद के ईंधन के वैश्वीकरण से प्रेरित विकास की चुनौतियों का सामना कर सकें. ऐतिहासिक रूप से भारत में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास के प्रत्येक नए चरण में विकास के लिए नए उद्योगों की आवश्यकता होती है.

केंद्र सरकार को निम्नलिखित विषयों पर विचार करना चाहिए

केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह विवेकपूर्ण और समझदारी से खर्च करने का समय है. केंद्र सरकार प्रति माह लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की दर से उधार ले रही है, जबकि सभी राज्य प्रति माह लगभग 50,000 करोड़ रुपये की दर से उधार ले रहे हैं. 

सरकारों को सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि अधिकांश ऋण बैंकों, बीमा कंपनियों, म्युचुअल फंडों आदि जैसे सार्वजनिक संस्थानों के स्वामित्व में हैं. कुल सरकारी ऋण का लगभग 10% केवल विदेशियों या व्यक्तियों के स्वामित्व में है. इस प्रकार, अगर कुछ गलत हो जाता है तो खासकर मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा नुकसान होगा.

समय आ गया है कि सब्सिडी पर भारी मात्रा में उधार लिया गया पैसा खर्च करने से बचें, जो उत्पादकता या आर्थिक विकास को बढ़ाता है. सरकार के लिए सब कुछ करना और सब कुछ मुफ्त प्रदान करना असंभव है. 

मोटर वाहन उद्योग के लिए इलेक्ट्रिक वाहन तंत्र को प्रोत्साहित करना होगा, जो अन्य बुनियादी ढांचे पर भारी खर्चों द्वारा समर्थित होगा. 

सरकार को एक या दो साल के लिए सब्सिडी पर खर्च को रोकना या काफी कम करना होगा और बचाए गए धन का उपयोग बेहतर जगह करना होगा. बैंकों की सभी गैर निष्पादित आस्तियों को वापस लाना और अत्यधिक परिवर्तन करना जिस तरह से बैंक संचालित होते हैं ताकि अर्थव्यवस्था जल्द से जल्द ठीक हो सके. हालांकि, इस तरह के एक छोटे से सुधार के लिए बड़ी मात्रा में राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी.

एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जिसे समर्थन की आवश्यकता है वह है दूरसंचार क्षेत्र. सरकार को 5जी जैसे भविष्य की तकनीकी जरूरतों में अपने निवेश को सब्सिडी देनी चाहिए. यह भारतीय व्यवसायों को प्रतिस्पर्धी होने के साथ-साथ दीर्घावधि में अधिक उत्पादक बनने में सक्षम करेगा.

मुद्रा ऋण, माइक्रोफाइनेंस ऋण आदि जैसी योजनाओं पर पैसा फेंकने से बचें और इसके बजाय भविष्य की तकनीकी जरूरतों को पूरा करने/समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करें.


Conclusion:
Last Updated : Dec 30, 2019, 5:50 PM IST

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