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सरकार के पास रहेगी डिफाल्टरों को एनसीएलटी में भेजने की शक्ति

उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने मंगलवार को आरबीआई के इस परिपत्र को निरस्त कर दिया. इस परिपत्र में बड़े कर्जदारों की किस्त में एक भी दिन की चूक होने पर उसे एनसीएलटी में भेजने का प्रावधान था. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 35-एए की संवैधानिक मान्यता को बरकरार रखा है.

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Published : Apr 3, 2019, 9:54 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 12 फरवरी 2018 के परिपत्र को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश से केंद्र सरकार को कर्ज चूक के मामलों को अलग अलग विचार कर जनहित में दिवाला कानून के तहत समाधान के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) भेजने के लिए रिजर्व बैंक के निर्देश देने का विवेकाधिकार मिलेगा. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी.

उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने मंगलवार को आरबीआई के इस परिपत्र को निरस्त कर दिया. इस परिपत्र में बड़े कर्जदारों की किस्त में एक भी दिन की चूक होने पर उसे एनसीएलटी में भेजने का प्रावधान था. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 35-एए की संवैधानिक मान्यता को बरकरार रखा है. यह धारा केंद्र सरकार को चूककर्ताओं के खिलाफ प्रत्यक्ष या रिजर्व बैंक को निर्देश देकर कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है.

धारा 35-एए केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक को इस बात के लिए प्राधिकृत करने की शक्ति देती है कि वह किसी बैंकिंग कंपनी या बैंकिंग कंपनियों को किसी चूककर्ता के खिलाफ दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत समाधान प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दे सके.

मई 2017 में बैंकिंग नियमन अधिनियम में संशोधन करके धारा 35-एए और 35-एबी को जोड़ा गया है. आरबीआई का 12 फरवरी 2018 के परिपत्र के तहत बैंकों को 2,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक के ऋणों के ममले में एक दिन की चूक पर 180 दिन के भीतर समाधान निकालने करना जरूरी था. ऐसा नहीं होने पर मामले मो एनसीएलटी में भेजना पड़ता था.

सूत्रों के अनुसार उच्चतम न्यायालय का इस परिपत्र पर आदेश सरकार की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के समाधान के लिए सरकारी बैंकों को निर्देश देने की शक्तियों को सीमित नहीं करता है. हालांकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बैकिंग उद्योग पर असर को लेकर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है.

विदेशी ब्रोकरेज कंपनी जेफरीज ने इसकी तुलना भारत द्वारा पाकिस्तान में बालाकोट में किए गए हवाई हमले से करते हुए कहा कि यह 'आरबीआई पर बालाकोट हमला' है. कंपनी ने कहा कि न्यायालय का मंगलवार का आदेश एक बड़ा कुठाराघात है क्योंकि अब रिजर्व बैंक 'सामान्य शोधन अक्षमता' कार्रवाइयों के लिए निर्देश नहीं दे पाएगा.

कंपनी ने कहा कि इसे लेकर केंद्रीय बैंक के पास उच्चतम न्यायालय में समीक्षा की अर्जी लगाने या फिर नया परिपत्र लाने के दोनों विकल्प हैं. वहीं जापानी ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा का कहना है कि इस आदेश से बैंकों के समाधान प्रक्रिया तलाशने का लचीलापन बढ़ेगा.
ये भी पढ़ें : आईसीटी उत्पादों पर शुल्क को लेकर यूरोपीय संघ ने भारत को डब्ल्यूटीओ में घसीटा

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 12 फरवरी 2018 के परिपत्र को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश से केंद्र सरकार को कर्ज चूक के मामलों को अलग अलग विचार कर जनहित में दिवाला कानून के तहत समाधान के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) भेजने के लिए रिजर्व बैंक के निर्देश देने का विवेकाधिकार मिलेगा. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी.

उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने मंगलवार को आरबीआई के इस परिपत्र को निरस्त कर दिया. इस परिपत्र में बड़े कर्जदारों की किस्त में एक भी दिन की चूक होने पर उसे एनसीएलटी में भेजने का प्रावधान था. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 35-एए की संवैधानिक मान्यता को बरकरार रखा है. यह धारा केंद्र सरकार को चूककर्ताओं के खिलाफ प्रत्यक्ष या रिजर्व बैंक को निर्देश देकर कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है.

धारा 35-एए केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक को इस बात के लिए प्राधिकृत करने की शक्ति देती है कि वह किसी बैंकिंग कंपनी या बैंकिंग कंपनियों को किसी चूककर्ता के खिलाफ दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत समाधान प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दे सके.

मई 2017 में बैंकिंग नियमन अधिनियम में संशोधन करके धारा 35-एए और 35-एबी को जोड़ा गया है. आरबीआई का 12 फरवरी 2018 के परिपत्र के तहत बैंकों को 2,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक के ऋणों के ममले में एक दिन की चूक पर 180 दिन के भीतर समाधान निकालने करना जरूरी था. ऐसा नहीं होने पर मामले मो एनसीएलटी में भेजना पड़ता था.

सूत्रों के अनुसार उच्चतम न्यायालय का इस परिपत्र पर आदेश सरकार की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के समाधान के लिए सरकारी बैंकों को निर्देश देने की शक्तियों को सीमित नहीं करता है. हालांकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बैकिंग उद्योग पर असर को लेकर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है.

विदेशी ब्रोकरेज कंपनी जेफरीज ने इसकी तुलना भारत द्वारा पाकिस्तान में बालाकोट में किए गए हवाई हमले से करते हुए कहा कि यह 'आरबीआई पर बालाकोट हमला' है. कंपनी ने कहा कि न्यायालय का मंगलवार का आदेश एक बड़ा कुठाराघात है क्योंकि अब रिजर्व बैंक 'सामान्य शोधन अक्षमता' कार्रवाइयों के लिए निर्देश नहीं दे पाएगा.

कंपनी ने कहा कि इसे लेकर केंद्रीय बैंक के पास उच्चतम न्यायालय में समीक्षा की अर्जी लगाने या फिर नया परिपत्र लाने के दोनों विकल्प हैं. वहीं जापानी ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा का कहना है कि इस आदेश से बैंकों के समाधान प्रक्रिया तलाशने का लचीलापन बढ़ेगा.
ये भी पढ़ें : आईसीटी उत्पादों पर शुल्क को लेकर यूरोपीय संघ ने भारत को डब्ल्यूटीओ में घसीटा

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नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 12 फरवरी 2018 के परिपत्र को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश से केंद्र सरकार को कर्ज चूक के मामलों को अलग अलग विचार कर जनहित में दिवाला कानून के तहत समाधान के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) भेजने के लिए रिजर्व बैंक के निर्देश देने का विवेकाधिकार मिलेगा. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी.

उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने मंगलवार को आरबीआई के इस परिपत्र को निरस्त कर दिया. इस परिपत्र में बड़े कर्जदारों की किस्त में एक भी दिन की चूक होने पर उसे एनसीएलटी में भेजने का प्रावधान था. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 35-एए की संवैधानिक मान्यता को बरकरार रखा है. यह धारा केंद्र सरकार को चूककर्ताओं के खिलाफ प्रत्यक्ष या रिजर्व बैंक को निर्देश देकर कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है.

धारा 35-एए केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक को इस बात के लिए प्राधिकृत करने की शक्ति देती है कि वह किसी बैंकिंग कंपनी या बैंकिंग कंपनियों को किसी चूककर्ता के खिलाफ दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत समाधान प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दे सके.

मई 2017 में बैंकिंग नियमन अधिनियम में संशोधन करके धारा 35-एए और 35-एबी को जोड़ा गया है. आरबीआई का 12 फरवरी 2018 के परिपत्र के तहत बैंकों को 2,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक के ऋणों के ममले में एक दिन की चूक पर 180 दिन के भीतर समाधान निकालने करना जरूरी था. ऐसा नहीं होने पर मामले मो एनसीएलटी में भेजना पड़ता था.

सूत्रों के अनुसार उच्चतम न्यायालय का इस परिपत्र पर आदेश सरकार की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के समाधान के लिए सरकारी बैंकों को निर्देश देने की शक्तियों को सीमित नहीं करता है. हालांकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बैकिंग उद्योग पर असर को लेकर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है.

विदेशी ब्रोकरेज कंपनी जेफरीज ने इसकी तुलना भारत द्वारा पाकिस्तान में बालाकोट में किए गए हवाई हमले से करते हुए कहा कि यह 'आरबीआई पर बालाकोट हमला' है. कंपनी ने कहा कि न्यायालय का मंगलवार का आदेश एक बड़ा कुठाराघात है क्योंकि अब रिजर्व बैंक 'सामान्य शोधन अक्षमता' कार्रवाइयों के लिए निर्देश नहीं दे पाएगा.

कंपनी ने कहा कि इसे लेकर केंद्रीय बैंक के पास उच्चतम न्यायालय में समीक्षा की अर्जी लगाने या फिर नया परिपत्र लाने के दोनों विकल्प हैं. वहीं जापानी ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा का कहना है कि इस आदेश से बैंकों के समाधान प्रक्रिया तलाशने का लचीलापन बढ़ेगा.

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